पीएम नरेंद्र मोदी रविवार को ‘प्रोजेक्ट टाइगर' के 50 साल पूरे होने के मौके पर देश में बाघों की आबादी के नवीनतम आंकड़े जारी किए साथ ही उन्होंने ‘अमृत काल' के दौरान बाघ संरक्षण के लिए सरकार का दृष्टिकोण भी पेश किया और इंटरनेशनल बिग कैट्स अलायंस (आईबीसीए) की शुरुआत भी की.
इधर, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और राजस्थान के लोग बेसब्री से आंकड़ों का इंतजार कर रहे हैं. कारण ये है कि लास्ट अकाउंटेड टाइगर सेंसस में एमपी नंबर 1 था. आज संभव है कर्नाटक नंबर 1 हो जाए. चूंकि राजस्थान में भी बाघों की अच्छी संख्या है. ऐसे में उसे भी अच्छे रैंक की उम्मीद है.
गौरतलब है कि टाइगर स्टेट राजस्थान और मध्य प्रदेश में कुछ सालों पहले यहां के टाइगर रिजर्वों में टाइगर मारे गए थे. ये सभी शिकारियों के शिकार हो गए थे. इस घटना के बाद दोनों रिजर्वों में बाघों को बचाने का काम जारी है. लेकिन अभी भी इनके सामने चुनौती बहुत है.
सरिस्का टाइगर रिजर्व की स्थिति
भारत की पहली टाइगर रिलोकेशन परियोजना के तहत साल 2008 में 28 जून को एयरफोर्स का एमआई 17 हेलीकॉप्टर सरिस्का (राजस्थान) के जंगलों में उतरा. यह किसी युद्ध अभियान से कम नहीं था. दरअसल, साल 2003 और 2004 के दौरान सरिस्का के 16 बाघ की आबादी अवैध शिकार के कारण समाप्त हो गई थी.
जनवरी 2005 तक जंगलों में सन्नाटा छा गया था. सरिस्का से बाघ पूरी तरह गायब हो गए थे. ऐसे में राजस्थान ने अवैध शिकार और वन्यजीव आपातकाल के खिलाफ रेड अलर्ट घोषित किया. फिर प्रोजेक्ट टाइगर के तहत 4 साल बाद 2008 में बाघ पुनर्वास कार्यक्रम शुरू हुआ. रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान से बाघों को हवाई जहाज से उठाकर सरिस्का में स्थानांतरित कर दिया गया.
एक बाघ और दो बाघिनों को बसाया गया. बाघ विशेषज्ञ चिंतित थे. लेकिन साल 2012 में सरिस्का में दो बाघ शावक देखे गए. साल 2014 में दो और शावक दिखे. फिर बेबी बूम शुरू हो गया था. आज सरिस्का में 27 बाघ हैं. हालांकि, बाघ विशेषज्ञों का मानना है कि सरिस्का बाघ का जीन पूल रणथंभौर जैसा ही है और बाघों के लंबे समय तक स्वस्थ रहने के लिए ब्लड लाइन का मिश्रण आवश्यक है.
शायद मध्य प्रदेश से राजस्थान में बाघों का स्थानांतरण करना कारगर साबित हो सकता है.राजस्थान में आज लगभग 100 बाघ हैं. रणथंभौर में 70 और सरिस्का में 27. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता तभी संभव है जब मानव आवास को अभयारण्यों से बाहर कर दिया जाए. राजस्थान सरकार अब बाघों को कोटा के पास मुकुंदरा में स्थानांतरित करने पर विचार कर रही है. लेकिन क्या वे सरिस्का की सफलता को दोहरा पाएंगे?
मध्यप्रदेश को फिर से नंबर 1 बनने की उम्मीद
इधर, एक सवाल ये भी है कि बाघों की सबसे बड़ी आबादी का घर होने के कारण जिस मध्य प्रदेश को 2018 में 'टाइगर स्टेट' से सम्मानित किया गया था, क्या वो राज्य अपनी स्थिति को बरकरार रख पाएगा ? सीएम शिवराज सिंह का कहना है कि हम टाइगर स्टेट, गिद्ध स्टेट, लेपर्ड स्टेट और अब चीता स्टेट भी हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 52 साल बाद मप्र को चीता तोहफे में दिया. चीता सियाया और फ्रेडी के चार शावकों का जन्म हुआ, छह महीने बाद उन्हें देश में बड़ी बिल्ली को फिर से बसाने की सरकार की योजना के हिस्से के रूप में भारत के दूसरे हिस्से में ले जाया गया.
नए निवासियों का स्वागत करने के बाद, टाइगर स्टेट बाघों की जनगणना रिपोर्ट का बेसब्री से इंतजार कर रहा है, जो प्रधानमंत्री द्वारा मैसूरु में जारी की जाएगी. हालांकि, इस साल लैंडस्केप के हिसाब से आंकड़े जारी होने की संभावना है. लेकिन मध्यप्रदेश देश में टाइगर स्टेट का खिताब बरकरार रखने की उम्मीद कर रहा है.
राज्य को उम्मीद है कि इस बार बाघों की संख्या लगभग 700 होगी. राज्य विधानसभा में एक लिखित उत्तर में सरकार ने स्वीकार किया कि 2022 में मध्य प्रदेश में 10 बाघों का अवैध शिकार किया गया था, उनमें से अधिकांश को बिजली के तार में करंट लग गया था.
वहीं, 2020 से 2022 के बीच मप्र के टाइगर रिजर्व में विभिन्न कारणों से कम से कम 72 बाघों और 43 तेंदुओं की मौत हुई है. 2022 के दौरान मध्य प्रदेश में दर्ज 34 बाघों में से, सबसे बड़ा नुकसान बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व को हुआ, जहां 12 महीने की अवधि में नौ बड़ी बिल्लियों की मौत हुई, इसके बाद एनटीसीए के अनुसार पेंच (पांच) और कान्हा (चार) का स्थान रहा.
हालांकि, राष्ट्रीय उद्यानों में बाघों की सुरक्षा के लिए स्टेट टाइगर स्ट्राइक फोर्स, स्मार्ट पेट्रोलिंग और डॉग-स्क्वायड के साथ, अधिकारी कह रहे हैं कि चिंता करने का कोई कारण नहीं है.
मध्य प्रदेश, जो छह बाघ अभयारण्यों - कान्हा, बांधवगढ़, पेंच, सतपुड़ा, पन्ना और संजय-डुबरी का घर है. ऐसे में 30 से अधिक बाघ की मौत चिंता का विषय बना हुआ है. लेकिन विशेषज्ञ कह रहे हैं कि उनकी मौत से मध्य प्रदेश के टाइगर स्टेट का टैग बरकरार रखने की संभावना प्रभावित नहीं होगी.
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