Bihar Political Crisis: बिहार में सत्ता के बने नए समीकरणों का केंद्र की राजनीति पर ज्यादा असर भले न हो लेकिन राज्य की सियासत का इससे प्रभावित होना तय है. बिहार के सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने आज बीजेपी और एनडीए के साथ गठबंधन तोड़ने का ऐलान किया है और राज्यपाल के साथ मिलकर सीएम पद से इस्तीफा दे दिया है. नए सियासी समीकरणों के अंतर्गत वे नए सिरे से सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे जिसमें उनके सहयोगी संभवत: राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, वामदल और जीतनराम मांझी की 'हम' होगी.
मजे की बात यह कि नीतीश पहले भी , जेडीयू और कांग्रेस के साथ राज्य में सरकार बना चुके हैं लेकिन बाद में वे और जेडीयू पुराने सहयोगी बीजेपी की ओर लौट आए थे. वर्ष 2017 तक आरजेडी के तेजस्वी यादव और उनके भाई तेज प्रताप यादव, नीतीश कुमार की सरकार में मंत्री थे. जेडीयू, लालू यादव की पार्टी आरजेडी और कांग्रेस के सहयोग से 2015 में यह सरकार बनी थी. बाद में नीतीश ने तेजस्वी और उनके भाई तेजप्रताप पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए गठबंधन खत्म कर लिया था और बीजेपी के पास वापस लौट गए थे. आइए जानते हैं कि नीतीश के एनडीए से अलग होने और बिहार में बनने वाले नए सियासी गठजोड़ से भविष्य में कैसी स्थितियां निर्मित हो सकती हैं...
1. केंद्र में सत्तारुढ़ एनडीए के बारे में बात करें तो इसके दलों की संख्या धीरे-धीरे कम हो रही है. एक समय इसके खास जोड़ीदार रहे शिवसेना, अकाली दल और अब जेडीयू अब इससे हट गए हैं. आम चुनाव 2024 में होने हैं. ऐसे समय जब विपक्ष, बीजेपी नीत एनडीए के खिलाफ लामबंदी में जुटा है. शिवसेना, अकाली दल और अब जेडीयू के बीजेपी से 'छिटकने' से महाराष्ट्र, पंजाब और बिहार में पार्टी की सीटों की संख्या में कमी आ सकती है. हाालांकि महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के बागी गुट को बीजेपी ने अपने साथ लाकर डैमेज कंट्रोल की कोशिश की है लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि शिवसेना को 'खांटी वोटर' अपनी निष्ठा बाल ठाकरे पुत्र उद्धव ठाकरे के साथ रखता है या फिर शिंदे गुट की ओर शिफ्ट होता है. महाराष्ट्र की ही तरह बिहार की भी राष्ट्रीय राजनीति में अच्छी धमक है. लोकसभा के 543 सदस्यों में से 40 सदस्य यहीं से चुने जाते हैं. जेडीयू का साथ छूटने से बीजेपी अकेली पड़ गई है और आम चुनावों में उसका सामना एकजुट विपक्ष (अगर सीटों के अलॉटमेंट पर बात बनीं तो ) से हो सकता है. 2019 के आम चुनाव में बिहार में एनडीए ने क्लीन स्वीप करते हुए 40 में से 39 सीटें फतह की थीं जबकि आरजेडी एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. एनडीए की इन सीटों में बीजेपी को 17, जेडीयू को 16 और एलजेपी को 6 सीटें मिलीं थीं. आम चुनाव 2022 में जेडीयू के साथ न होने और बिखराव का सामना कर रहे एलजेपी की ताकत कम होने से एनडीए की सीटें कम हो सकती है. केवल 'मोदी मैजिक' चलने की स्थिति में ही यह स्थिति बदल सकती है.
2. बिहार विधानसभा की बात करें तो 2020 के चुनाव में 243 सीटों में से नीतीश की पार्टी JDU ने 45 सीटों पर जीत हासिल की थी. जबकि BJP ने 77 सीटों पर विजय मिली थीं. लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल ने 79 सीटें और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 19 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि हम को 4 सीटें मिली थी. बहुमत का आंकड़ा 122 है. जेडीयू और बीजेपी का गठजोड़, सत्ता में वापसी को बेताब आरजेडी का मुकाबला करने के लिहाज से 2020 में मुफीद साबित हुआ था लेकिन अगले विधानसभा चुनाव में यह स्थिति बदल सकती है. जाहिर है आरजेडी को अब जेडीयू का साथ भी मिल गया है. आरजेडी-जेडीयू और कांग्रेस का गठजोड़ विधानसभा चुनाव में बीजेपी की संभावनाओं का कबाड़ा कर सकता है.
बहरहाल, इन पहलुओं पर विचार करते हुए हमें इस बात पर भी ध्यान रखना होगा कि जेडीयू-आरजेडी की यह जुगलबंदी आम चुनाव 2024 और बिहार में अगले विधानसभा चुनाव तक चलती है या फिर पिछली बार की ही तरह यह मेल अल्पकालीन साबित होता है. जाहिर है, बीजेपी तो यही उम्मीद कर रही होगी.
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