- SIR पर अभियान कोई चुनाव सुधार नहीं है. यह चुनाव आयोग का एक प्रशासनिक कदम है, जो समय -समय पर होता रहता है.
- संसद के दोनों सदनों में चर्चा करवा भी ली जाए तो इसका जवाब कौन देगा.
- ऐसी कई संस्थाएं हैं, जिनके पास संसद के सामने अपना पक्ष रखने का मैकेनिज्म नहीं है.
सरकार और विपक्ष के बीच सहमति बनने के बावजूद आज ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा समय पर शुरू नहीं हो सकी, क्योंकि विपक्ष सरकार से यह ठोस आश्वासन चाहता था कि वह ऑपरेशन सिंदूर पर विशेष चर्चा समाप्त होने के तुरंत बाद बिहार में वोटर लिस्ट के सघन पुनरीक्षण अभियान पर चर्चा कराए. सरकार ने विपक्ष पर धोखा देने का आरोप लगाया था, हालांकि बाद में दो बजे संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजु ने कहा कि अगर नियम अनुमति देते हों और स्पीकर तैयार हो तथा कार्य मंत्रणा समिति में तय हो तो सरकार किसी भी विषय पर चर्चा को तैयार है. सरकार ने सीधे तौर पर यह नहीं कहा कि वह बिहार SIR के मुद्दे पर चर्चा कराएगी, लेकिन विपक्ष को इतना आश्वासन भी पर्याप्त लगा और लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा शुरू हो गई, लेकिन सरकारी सूत्रों ने स्पष्ट कर दिया है कि बिहार में चुनाव आयोग द्वारा चलाए जा रहे मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण अभियान SIR को लेकर संसद में चर्चा नहीं कराई जा सकती. इसके लिए सरकार की ओर से तीन तर्क दिए गए हैं.
पहला कारण यह है कि केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा चलाया जा रहा यह अभियान कोई चुनाव सुधार नहीं है, बल्कि यह एक प्रशासनिक कदम है और चुनाव आयोग समय-समय पर ऐसे कदम उठाता आया है.
दूसरा कारण यह है कि अगर मतदाता सूची के सघन पुनरीक्षण पर संसद के दोनों सदनों में चर्चा करा भी ली जाए तो इसका जवाब कौन देगा. जाहिर-सी बात है कि चुनाव आयोग तो अपना पक्ष रखने के लिए सदन में आ नहीं सकता तो ऐसे में चर्चा के दौरान उठाए गए विपक्ष के सवालों का जवाब कौन देगा. वैसे तो कानून मंत्रालय चुनाव आयोग के लिए नोडल मंत्रालय है, लेकिन वह सामान्यत केवल प्रशासनिक कार्य ही देखता है. नीतिगत मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता.
तीसरा कारण यह बताया गया है कि ऐसी कई संस्थाएं हैं जिनके पास संसद के सामने अपना पक्ष रखने का मैकेनिज्म नहीं है. ऐसे में उन सस्थाओं को लेकर चर्चा नहीं हो सकती. सरकारी सूत्र यह भी बताते हैं कि इससे पहले भी चुनाव आयोग के कामकाज को लेकर चर्चा करने की मांग उठती आई है. 1986 में तत्कालीन स्पीकर बलराम जाखड़ ने इसे लेकर व्यवस्था दी थी. उन्होंने कहा था कि व्यापक चुनाव सुधारों पर तो संसद में चर्चा कराई जा सकती है, लेकिन प्रशासनिक प्रक्रिया और निर्णयों पर चर्चा संभव नहीं है. अब सरकार इन्हीं कारणों को लेकर बिहार मतदाता सूची मामले पर चर्चा न कराने की बात कह रही है हालांकि विपक्ष इस मुद्दे पर बेहद आक्रामक है और यह देखना होगा कि सरकार की दलीलों पर उसकी क्या प्रतिक्रिया रहती है.