अरावली की पहाड़ियों की रक्षा के लिए क्यों जरूरी हैं ग्रीन वॉल परियोजना?

अरावली को बचाने के लिए कई सालों से प्रयास जारी है. अब केंद्र सरकार की निगरानी से उम्मीद है कि ग्रीन वॉल परियोजना के जरिए चीजें बदलेंगी और पर्यावरण दिवस पर सिर्फ पेड़ लगाकर खानापूर्ति ना होकर लोगों को असल में भी स्वच्छ हवा मिले.

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अरावली विश्व की सबसे पुरानी पहाड़ी में से एक है.

विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर अरावली ग्रीन वॉल परियोजना की शुरुआत की गई. प्रधानमंत्री मोदी ने एक पेड़ मां के नाम पहल के तहत इसकी शुरुआत की. अरावली को बचना बहुत जरूरी है जिसके कारण ही सरकार ने अरावली ग्रीन वॉल परियोजना की शुरुआत की जो कई सालों से रुकी हुई थी. अफ्रीका की सहारा के लिए शुरू हुआ ग्रीन वॉल से प्रेरित होकर गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली में लगभग 64 लाख हेक्टेयर भूमि को शामिल करते हुए अरावली की पहाड़ियों के आसपास 5 किलोमीटर का बफर जोन बनाया जाना है. 

अरावली विश्व की सबसे पुरानी पहाड़ी में से एक है. करीब 700 किलोमीटर फैले इस पहाड़ी को सेंट्रल इंडिया का फेफड़ा भी कहा जाता है. लेकिन अवैध अतिक्रमण, पेड़ो की कटाई और प्राकृतिक संसाधनों के शोषण ने इस पहाड़ी को लूट लिया. साल 1999-2019 के बीच अरावली के वन क्षेत्र में 0.9% की गिरावट आई है. साथ ही 1975 से शहरी विस्तार और खनन के कारण सेंट्रल रेंज में 32% की भारी गिरावट दर्ज की गई. 

अरावली को लेकर सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंधों के बावजूद राजस्थान में अरावली की पहाड़ियों का 25% हिस्सा खत्म कर दिया गया. साल 2018 में कोर्ट ने अरावली को लेकर हो रही सुनवाई पर कहा था कि, दिल्ली, राजस्थान और हरियाणा की सीमा वाले इलाकों से 31 पहाड़ गायब हो गए. आखिर जनता में तो हनुमान की शक्ति नहीं आ सकती कि वो पहाड़ ही ले उड़ें. ऐसे में इसकी वजह सिर्फ और सिर्फ अवैध खनन ही है. कोर्ट के पूछने पर राजस्थान सरकार ने माना कि अरावली में 115.34 हेक्टेयर जमीन पर खनन हुआ.  

राजस्थान में तांबा, जस्ता और संगमरमर के लिए 4,150 खनन पट्टों में से केवल 288 को ही पर्यावरणीय मंजूरी मिली है. वहीं 2018-19 तक हरियाणा की 8.2% भूमि बंजर हो गई और 2019 तक अरावली का 8% यानी 5,772.7 वर्ग किमी नष्ट हो गया. अतिक्रमण के कारण ही साहिबी और लूनी जैसी नदियों सूख गई और मिट्टी को नष्ट कर दिया, भूजल को समाप्त कर दिया.

ग्रीन वॉल परियोजना का उद्देश्य हैं -

भूमि पुनर्स्थापन: परियोजना का उद्देश्य अरावली क्षेत्र में 8 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि को पुनः हरित बनाना है, जिससे भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया को रोका जा सके.

जलवायु परिवर्तन से निपटना: यह परियोजना कार्बन उत्सर्जन को कम करने, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को नियंत्रित करने और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में सहायक होगी.

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स्थानीय समुदायों की भागीदारी: स्थानीय समुदायों को वृक्षारोपण, जल संरक्षण और सतत कृषि प्रथाओं में शामिल करके उनके जीवन स्तर में सुधार किया जाएगा.

सेव अरावली ट्रस्ट के कैलाश बिधूड़ी कहते हैं, स्वच्छ हवा और पानी के लिए अरावली को बचाना बहुत जरूरी है. वो कहते हैं दिल्ली एनसीआर के इलाके के लिए अरावली बहुत जरूरी हैं लेकिन कई सालों से इसको दोहन किया जा रहा हैं और कोई सरकार इसपर कार्रवाई नहीं करती. 

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वह आगे कहते हैं कि पंजाब लैंड प्रिजर्वेशन एक्ट (PLPA) के तहत अरावली पहाड़ी का इलाका सुरक्षित हैं लेकिन भूमाफिया धीरे-धीरे करके इन जमीनों को बेचते गए और अब यहां अवैध फॉर्महाउस, मैरिजगार्डन, आश्रम और गौशालाएं बन गई है. कई मामले सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट, एनजीटी में अरावली को लेकर चल रहा है. अब उम्मीद हैं कि केंद्र सरकार के इस मुहिम से अरावली को बचाया जा सकें. अगर राज्य सरकारें और केंद्र सरकार मिल जाए तो इसे सही किया जा सकता है. 

बता दें कि अरावली को बचाने के लिए कई सालों से प्रयास जारी है. अब केंद्र सरकार की निगरानी से उम्मीद है कि ग्रीन वॉल परियोजना के जरिए चीजें बदलेंगी और पर्यावरण दिवस पर सिर्फ पेड़ लगाकर खानापूर्ति ना होकर लोगों को असल में भी स्वच्छ हवा मिले.

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