बिहार की बोचहां विधान सीट पर राष्ट्रीय जनता दल जीत गई. लेकिन भाजपा की इतनी करारी हार होगी वो सबके अनुमान से कहीं अधिक रहा. निश्चित रूप से भाजपा हार की समीक्षा करेगी, बीजेपी ये कह कर पल्ला झाड़ रही हैं लेकिन मतदाताओं ने भाजपा और उसके उम्मीदवार को साफ़ शब्दों में रिजेक्ट किया तो सवाल हैं आख़िर इसके क्या कारण हैं. सबसे पहला कारण है कि बिहार भाजपा के वर्तमान में जो नीति निर्धारक हैं उनका अहंकार और अति आत्मविश्वास. ख़ासकर केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव, केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय, बिहार भाजपा के अध्यक्ष डॉक्टर संजय जायसवाल ने जैसे सारे निर्णय बिना ज़मीनी हक़ीक़त को मद्देनज़र ना रखकर करना शुरू किया हैं, असल में ये चुनावी परिणाम उसी का नतीजा हैं.
इसके अलावा अपने परंपरागत वोटर ख़ासकर ऊंची जाति के भूमिहार वोटर को भाजपा के एक स्थानीय इलाक़े से आने वाले दबंग मंत्री रामसूरत राय लगातार अपमानित कर रहे थे. इस वर्ग के लोगों ने मन मार के राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार अमर पासवान को जीताकर साफ़ साफ़ संदेश दिया है कि आप एक हाथ से अपमानित कर वोट की उम्मीद नहीं कर सकते हैं. दूसरा भाजपा के बिहार नेतृत्व का वीआईपी पार्टी और उसके सुप्रीमो मुकेश मल्लाह के साथ किया गया बर्ताव भी राजनीतिक रूप से आत्मघाती साबित हुआ. यूपी चुनाव के बाद भाजपा अपने अहंकार में उन्हें सबक़ सिखाने के लिए उनके तीन विधायकों को पार्टी में मिला तो लिया. लेकिन इस बात को अनदेखा किया कि मल्लाह जाति के वोटर जो एनडीए के कट्टर समर्थक रहे हैं उनके ऊपर इसका कितना विपरीत असर होगा.
प्रचार के दौरान स्थानीय सांसद अजय निषाद को कई गांव में प्रवेश नहीं करने दिया गया. मंत्रिमंडल से मुकेश साहनी की बर्ख़ास्तगी से उनके समाज के लोगों में काफ़ी नाराज़गी हैं. इसलिए हार के बाद भी मुकेश साहनी इस बात से खुश होंगे कि भाजपा से उन्होंने अपना हिसाब किताब बराबर कर लिया . तीसरा बिहार में एनडीए में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा ये बात किसी से छिपी नहीं. लेकिन यहां का परिणाम इस बात को दर्शाता हैं कि सहयोगियों के प्रति भाजपा का रवैया अब वोटर को पसंद नहीं क्योंकि उन्हें अब तेजस्वी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनता दल से परहेज़ नहीं. ये बात किसी से छिपी नहीं भाजपा ने नीतीश से लेके वीआईपी के मुकेश साहनी और चिराग़ पासवान बिहार में सभी सहयोगियों को निपटाने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी. लेकिन बीजेपी ये भूल जाती है कि नेता को मिला लेने से उस दल के परंपरा गत वोट उसके साथ आने से रहे.