सामान्य परिवार का मनोज जरांगे कैसे बना मराठा आरक्षण आंदोलन का सबसे बड़ा चेहरा?

मनोज जरांगे ने मराठा आरक्षण आंदोलन की मुहिम 2011 से शुरू की. 2023 में अब तक उन्होंने 30 से ज्यादा बार आरक्षण के लिए आंदोलन किया. जरांगे को मराठा आरक्षण आंदोलन का बड़ा चेहरा माना जाता है. मराठवाड़ा क्षेत्र में उनका बहुत सम्मान है. 2016 से 2018 तक जालना में मराठा आरक्षण आंदोलन का नेतृत्व भी मनोज जरांगे ने ही किया था.

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CM एकनाथ शिंदे की अपील के बाद जरांगे ने 8 दिनों की भूख हड़ताल खत्म कर दी है.

मुंबई:

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन (Maratha Reservation) हिंसक रूप ले चुका है. मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग करते हुए 40 वर्षीय मनोज जरांगे पाटिल (Manoj Jarange Patil) ने 2014 के बाद से कई आंदोलन किए हैं, जो ज्यादा चर्चा में नहीं रहे. उनके ज्यादातर प्रदर्शनों की गूंज जालना जिले से बाहर नहीं जा पाई. हाल में उनकी भूख हड़ताल ने महाराष्ट्र (Maharashtra Protest) में हलचल मचा दी है. हिंसक प्रदर्शनों के बीच मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) ने आंदोलनकारी नेता मनोज जरांगे से बातचीत की और मराठा समुदाय को कुनबी जाति की कैटेगरी में शामिल करने का वादा किया है. सीएम शिंदे के आश्वासन के बाद मनोज जरांगे पाटिल ने आमरण अनशन खत्म कर दिया है.

मनोज जरांगे ने मराठा आंदोलन की मुहिम 2011 से शुरू की. 2023 में अब तक उन्होंने 30 से ज्यादा बार आरक्षण के लिए आंदोलन किया. जरांगे को मराठा आरक्षण आंदोलन का बड़ा चेहरा माना जाता है. मराठवाड़ा क्षेत्र में उनका बहुत सम्मान है. 2016 से 2018 तक जालना में मराठा आरक्षण आंदोलन का नेतृत्व भी मनोज जरांगे ने ही किया था.

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आइए जानते हैं कि कैसे सामान्य परिवार के साधारण युवक जरांगे इतने बड़े आंदोलन के इतना बड़ा चेहरा बना गए? कैसे उन्होंने  पूरे राज्य की सियासत में उठापटक मचा दी:-

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कौन हैं मनोज जरांगे पाटिल?
42 साल के मनोज जरांगे पाटिल मूल रूप से महाराष्ट्र के बीड जिले के रहने वाले हैं. तकरीबन 20 साल पहले सूखे से त्रस्त होकर उनके पिता जालना के अंकुश नगर की मोहिते बस्ती में आकर बस गए थे. 4 बेटों में सबसे छोटे मनोज जरांगे आज मराठा समाज का बड़ा नेता बन चुके हैं. मराठा समुदाय के आरक्षण के प्रबल समर्थक मनोज जरांगे पाटिल अक्सर उन प्रतिनिधिमंडलों के हिस्सा रहे हैं, जिन्होंने आरक्षण की मांग के लिए राज्य के विभिन्न नेताओं से मुलाकात की है.

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12वीं क्लास में रहते हुए छोड़ी पढ़ाई
साल 2010 में जरांगे 12वीं क्लास में थे, तभी उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी थी. फिर वे आंदोलन से जुड़ गए. उन्होंने अपनी आजीविका चलाने के लिए एक होटल में भी काम किया. बीते 12 साल में जरांगे ने 30 से ज्यादा बार आरक्षण आंदोलन किया है. साल 2016 से 2018 तक भी उन्होंने जालना में आरक्षण आंदोलन का नेतृत्व किया. 

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विचारधारा के मतभेद के चलते छोड़ दी कांग्रेस
शुरू में मनोज जरांगे कांग्रेस के एक कार्यकर्ता थे. राजनीति में भी हाथ आजमाते हुए उन्होंने जालना जिले के युवा कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे. लेकिन विचारधारा के मतभेद के चलते जल्दी ही पार्टी से इस्तीफा दे दिया. बाद में मराठा समुदाय के सशक्तीकरण के लिए पार्टी से अलग होकर 'शिवबा संगठन' नाम की खुद की संस्था बना ली. 

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आंदोलन के लिए बेची 2 एकड़ जमीन
मनोज जरांगे के परिवार की आर्थिक स्थिति कुछ खास नहीं थी. उनके परिवार में माता-पिता, पत्नी, तीन भाई और चार बच्चे हैं. जब संगठन चलाने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे, तब उन्होंने अपनी 2 एकड़ जमीन बेच दी थी. मनोज के नेतृत्व में साल 2021 में जालना के पिंपलगांव में तीन महीने तक आरक्षण के लिए धरना दिया था. 

समर्पण के मुरीद हैं लोग
मराठा आरक्षण आंदोलन का केंद्र बन चुके अंतरवाली सराटी गांव के सरपंच पांडुरंग तारख का कहना है कि समाज के प्रति जरांगे का नि:स्वार्थ भाव उनकी लोकप्रियता का बड़ा कारण है. उन पर भरोसा करने की वजह है कि उन्हे पैसा नही चाहिए. उन्हें कुछ भी नही चाहिए. उन्हें समाज के लिए काम करना है.

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मनोज जरांगे के साथ पिछले सात आंदोलनों में साथी रहे पिंपल गांव के गणेश महाराज बोचरे बताते हैं कि मनोज की ईमानदारी सबसे बड़ी पूंजी है. उन्होंने कहा, "उनकी ईमानदारी हमारे दिल में घर कर चुकी है. समाज के लिए वो जो भी करते हैं, पूरे दिल और नि:स्वार्थ भावना से करते हैं. वो कभी समाज के काम में पीछे नहीं हटते."

परिवार को उनके समर्पण पर गर्व
मनोज जरांगे की अनिश्चित भूख हड़ताल से उनकी जान को खतरा है, लेकिन ना तो पिता को और न ही उनकी पत्नी को इस बात की फिक्र थी. दोनों का यही कहना था कि वो समाज के लिए लड़ रहे है. समाज के युवकों को उच्च शिक्षा का मौका मिले, अच्छी नौकरी मिले... वो इसके लिए लड़ रहे हैं. इस लड़ाई में परिवार के सभी लोग उनके साथ हैं.
 

मनोज जरांगे की पत्नी सुमित्रा पारिवारिक खेत पर काम करती हैं. उन्होंने कहा, "जब से उन्होंने भूख हड़ताल शुरू की है, तब से हम उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं. लेकिन हमें अपने समुदाय के प्रति उनके समर्पण पर गर्व भी है." 

इस बीच महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ने कहा- "सर्वदलीय बैठक में सभी दलों के नेता इस बात पर सहमत हुए कि मराठा समुदाय को आरक्षण मिलना चाहिए. यह निर्णय लिया गया कि आरक्षण कानून के दायरे में और अन्य समुदाय के साथ अन्याय किए बिना होना चाहिए."

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