- भूपति ने 60 से अधिक साथियों के साथ महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में सरेंडर किया है
- भूपति पर महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में 1 से 10 करोड़ तक का इनाम घोषित था
- लगातार सुरक्षाबलों के ऑपरेशन क्लीन अप और एनकाउंटर के डर से भूपति ने हथियार डालने को अंतिम विकल्प माना था
पांच राज्यों में नक्सली हमलों के मास्टरमाइंड 'भूपति' ने घुटने टेक दिए हैं. मोस्टवांटेड नक्सली टॉप कमांडर भूपति ने 60 से ज्यादा साथियों के साथ सरेंडर कर दिया है. भूपति का असली नाम मल्लोजुला वेणुगोपाल राव है, वो माओवादी संगठन की केंद्रीय कमेटी का सदस्य और पोलित ब्यूरो का फायरब्रांड मेंबर रहा है. भूपति के अलावा वह कई नामों से जाना जाता है, जैसे—सोनू, सोनू दादा, वेणुगोपाल, अभय, मास्टर, विवेक और वेणु.
सिर पर था 1 करोड़ से लेकर 10 करोड़ तक का इनाम
भूपति पर महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, ओडिशा और आंध्र प्रदेश समेत कई राज्यों में अलग-अलग आंकड़ों में देखें तो 1 करोड़ से 10 करोड़ तक का इनाम घोषित था. उसे नक्सली आंदोलन के सबसे वरिष्ठ, प्रभावशाली नेताओं और रणनीतिकारों में से एक माना जाता था. वो 40 वर्षों से संगठन में सक्रिय था और छत्तीसगढ़-महाराष्ट्र-तेलंगाना के 'रेड कॉरिडोर' में अभियानों का संचालन करता था और भाकपा (माओवादी) का प्रवक्ता भी था.
69 वर्षीय भूपति ने बी कॉम तक की पढ़ाई की है
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) या भाकपा माओवादी भारत का प्रमुख भूमिगत नक्सली संगठन है. इसकी स्थापना दो खूंखार नक्सली संगठनों के आपसी विलय के बाद हुई. 22 जून,2009 को भारत सरकार ने भाकपा माओवादी को आतंकवादी संगठन घोषित करते हुए इसे प्रतिबंधित कर दिया. 69 वर्षीय भूपति ने बी कॉम तक की पढ़ाई की है.
पांच राज्यों में हमलों का मास्टरमाइंड
नक्सली कमांडर मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ भूपति ने करीब 40 वर्षों तक 'रेड कॉरिडोर' में आतंक फैलाया और कई बड़े हमलों की साजिश रचने और उन्हें अंजाम देने में शामिल रहा है. भूपति संगठन की सेंट्रल मिलिट्री कमीशन का सदस्य था, जिसका मतलब है कि वो हमलों की योजना बनाने और उन्हें मंजूरी देने वाली सर्वोच्च संस्था में शामिल था, चूंकि भूपति संगठन के शीर्ष नेतृत्व में था, इसलिए उसके खिलाफ दर्ज मामलों में उन सभी बड़े हमलों और साजिशों में शामिल होने का आरोप है, जो उसके सक्रिय क्षेत्रों में हुए, जैसे भूपति पांच राज्यों में हमलों का मास्टरमाइंड बताया जाता है. भूपति पर मुख्य रूप से छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तेलंगाना, ओडिशा और आंध्र प्रदेश राज्यों में हुए कई बड़े हमलों और साजिशों में शामिल होने का आरोप है.
नरसंहारों की योजना बनाने वाली शीर्ष कमेटी का रहा हिस्सा
संगठन के भीतर उसकी हैसियत को देखते हुए साफ है कि वो उन सभी बड़े सैन्य फैसलों और नरसंहारों की योजना बनाने वाली शीर्ष कमेटी का हिस्सा रहा है, जो पिछले दो दशकों में इन पांच राज्यों में हुए हैं. भूपति, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित माड डिवीजन में विशेष रूप से सक्रिय था. छत्तीसगढ़-महाराष्ट्र-तेलंगाना रेड कॉरिडोर के साथ-साथ सुरक्षाबलों पर घात लगाकर किए गए हमले और आईईडी विस्फोटों की कई बड़ी घटनाओं का मुख्य योजनाकार, भूपति ही रहा है. ये ऐसे हमले थे, जिनमें सीआरपीएफ, एसटीएफ और डीआरजी के दर्जनों जवानों की शहादत हुई. भूपति को माओवादी संगठन में सबसे प्रभावशाली रणनीतिकारों में से एक माना जाता था, जिसने लंबे समय तक महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ सीमा पर प्लेटून अभियानों को चलाया. ये प्लाटून ही छोटे-बड़े हमलों को सीधे अंजाम देती थीं. भूपति मारे गए कुख्यात नक्सली नेता मल्लोजुला कोटेश्वर राव उर्फ “किशेनजी” का भाई है, जो खुद संगठन का एक बड़ा कमांडर था. दोनों भाई लंबे समय तक नक्सली आंदोलन के प्रमुख चेहरे रहे.
क्यों हथियार डालने पर मजबूर हुआ मोस्ट वांटेड नक्सली?
भूपति ने अब अपने 60 से अधिक साथियों के साथ महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के पुलिस मुख्यालय में सरेंडर किया है. सरेंडर के समय इन नक्सलियों ने 50 से अधिक हथियार, जिनमें एके-47 और इंसास राइफलें भी शामिल हैं, पुलिस को सौंप दिए हैं. नक्सली कमांडर मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ भूपति के आत्मसमर्पण के पीछे कई आंतरिक और बाहरी कारण बताए जा रहे हैं, जिन्होंने उसे हथियार डालने पर मजबूर कर दिया . बताया जा रहा है कि भूपति सुरक्षाबलों के लगातार एक्शन और एनकाउंटर के डर से घिरा हुआ था. सुरक्षाबलों, खासकर महाराष्ट्र के C-60 कमांडो और मल्टी-स्टेट फोर्सेज द्वारा गढ़चिरौली और अबूझमाड़ जैसे नक्सल गढ़ों में लगातार चलाए जा रहे “ऑपरेशन क्लीन अप” के कारण भूपति और उसके साथी पूरी तरह से घिर चुके थे.
पत्र में भूपति ने लिखा था एनकाउंटर के खौफ के चलते सरेंडर आखिरी विकल्प
भूपति ने अपने साथियों को लिखे पत्र में भी इस बात का जिक्र किया था कि एनकाउंटर के खौफ के चलते सरेंडर ही आखिरी विकल्प बचा है. उसने संगठन के भीतर और प्रेस नोट के जरिए ये अपील की थी कि हिंसा का रास्ता छोड़कर शांति और संवाद की ओर रुख करना चाहिए, हालांकि, भूपति के शांति वार्ता के प्रस्ताव को माओवादी केंद्रीय कमेटी ने खारिज कर दिया था. इस प्रस्ताव को लेकर संगठन में जबरदस्त आपसी मतभेद पैदा हुए. केंद्रीय कमेटी ने उसके खिलाफ चेतावनी तक जारी कर दी थी. भूपति के साथ सरेंडर करने वाले 60 से अधिक कैडरों ने उसके शांति प्रस्ताव का समर्थन किया था, जो संगठन में बढ़ते विभाजन को दर्शाता है. लंबे समय से नक्सलवाद प्रभावित इलाकों में संगठन का जनसमर्थन कम होता जा रहा था.
भूपति ने खुद भी अपने बयानों में घटते जन समर्थन और सैकड़ों कार्यकर्ताओं के मारे जाने का हवाला दिया था, जिसे उसने सरेंडर का एक मुख्य कारण बताया. भूपति की पत्नी तारका यानी विमला चंद्र सिदाम, जो खुद एक करोड़ की इनामी नक्सली थी, उसने करीब एक साल पहले ही पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था. माना जाता है कि परिवार के मुख्यधारा में लौटने से भूपति पर भी आत्मसमर्पण करने का मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ गया था. भूपति का सरेंडर, उसके साथ 10 डिवीजनल कमांडर और बड़ी संख्या में कैडरों का हथियार डालना, नक्सल आंदोलन के लिए एक बहुत बड़ा झटका माना जा रहा है. इसके साथ ही, महाराष्ट्र में करीब 50 साल पुराने माओवादी विद्रोह के खत्म होने का संकेत मिला है.
गृहमंत्री अमित शाह के 'नक्सल मुक्त 2026' लक्ष्य में भूपति का सरेंडर बेहद अहम
गृहमंत्री अमित शाह ने देश को मार्च 2026 तक नक्सलवाद से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है. नक्सली कमांडर मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ भूपति का अपने 60 से अधिक कैडरों के साथ सरेंडर इस लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में एक बेहद अहम और ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है. भूपति का गढ़ महाराष्ट्र का गढ़चिरौली जिला था, जो दशकों से माओवादी विद्रोह का केंद्र रहा है. इस क्षेत्र के शीर्ष नेता का सरेंडर होना, महाराष्ट्र में 50 साल पुराने माओवादी विद्रोह के खात्मे का संकेत देता है. इस सरेंडर से बाकी बचे हुए नक्सलियों, खासकर निचले स्तर के कैडरों को सीधा संदेश जाता है कि जब उनका सबसे बड़ा और अनुभवी नेता हथियार डाल सकता है तो उनके पास भागने या छिपने का कोई रास्ता नहीं बचा है. इससे अन्य नक्सलियों को भी सरेंडर करने के लिए प्रोत्साहन और हिम्मत मिलेगी. ये सरेंडर छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तेलंगाना जैसे राज्यों के लिए एक बड़ा शांति संकेत है कि नक्सलवाद का सबसे खूंखार चेहरा अब मुख्यधारा में लौट आया है, जिससे इन क्षेत्रों में विकास और सुरक्षा की उम्मीदें बढ़ गई हैं.