बात दिसंबर 2014 की है. माले के वाटर और सीवरेज कंपनी में भयंकर आग लग गई. इससे यहां के वाटर डिस्टिलेशन प्लांट (Water Distillation Plant) में गड़बड़ी पैदा हो गई. पीने के साफ़ पानी की आपूर्ति रूक गई. चारों तरफ़ समुद्र से घिरे मालदीव के पास पीने के पानी का कोई प्राकृतिक ज़रिया नहीं है. वह पूरी तरह से डिस्टिलेशन प्लांट से मिलने वाले पानी पर निर्भर है. जैसे ही प्लांट बंद हुआ, मालदीव में पीने के पानी के लिए हाहाकार मच गया. मालदीव की सरकार ने 4 दिसंबर 2014 को भारत सरकार से अनुरोध किया. भारत ने ऑपरेशन नीर शुरु किया. यानि मालदीव को पीने का पानी पहुंचाने का अभियान.
मदद के लिए आगे आया था भारतीय नौसेना
भारतीय नौसेना ने INS सुकन्या को कोच्ची के तट से रवाना किया. हर दिन 20 टन पानी साफ़ करने की क्षमता वाले पोत INS सुकन्या पर 35 टन ताज़ा पानी माले भेजा गया. इसके अलावा 7 दिसंबर 2014 को INS दीपक 1000 टन पानी लेकर माले पहुंचा. इस बीच भारतीय वायुसेना के C17 ग्लोब मास्टर-3 और IL-76 जैसे हवाई जहाज़ों में पानी भर कर सैंकड़ों टन पानी माले पहुंचाया गया. मदद अमेरिका और चीन जैसे देशों से भी पहुंची लेकिन भारत ने जिस तेज़ी के साथ ऑपरेशन नीर चला कर मालदीव की प्यास बुझाई वह अपने आप में एक इतिहास है.इस घटना ने बताया कि नज़दीकी पड़ोसी होने के नाते मालदीव के लिए भारत कितनी अहमियत रखता है.
मालदीव में भारतीयों की है अच्छी संख्या
मालदीव की आबादी 5 लाख 20 हज़ार से कुछ अधिक है. एक आंकड़े के मुताबिक़ मालदीव में क़रीब 30 हज़ार भारतीय रहते हैं. इनमें से 22 हज़ार तो सिर्फ़ माले में रहते हैं. इनमें नर्स, टीचर, डाक्टर से लेकर अकाउंटेंट्स, इंजीनियर और मैनेजर्स तक के पेशे में हैं. एक बड़ी तादाद कामगारों की भी है जो स्किल्ड और नॉन स्किल्ड दोनों हैं. इनमें तकनीशियन, टेलर्स, प्लंबर्, और दूसरे मज़दूरी करने वाले शामिल हैं. कुछ टूरिज़्म के बिजनेस में भी हैं. समुद्र दूरी के लिहाज़ से नज़दीक होने की वजह से मालदीव में केरल और तमिलनाडु के भारतीयों की तादाद अधिक है.
भारत ने राजनीतिक तौर पर भी कई बार की है मालदीव की मदद
भारत और मालदीव के बीच पीपुल टू पीपल कॉन्टैक्ट का अपना इतिहास तो है ही. भारत ने राजनीतिक तौर पर कई अहम मोड़ों पर मालदीव की मदद की है. 1988 में मालदीव में तख़्ता पलट की कोशिश को सेना भेज कर नाकाम किया. इसके बाद भारतीय तुरंत भारतीय सेना को वापस बुला भी लिया गया ताकि यहां भारत अपना प्रभुत्व दिखाता नज़र न आए. 2004 की सुनामी में भी मालदीव की सबसे पहले मदद करने वाला देश भारत रहा. 2020 जनवरी में जब मालदीव में खसरा के फ़ैलने का ख़तरा था भारत ने तुरंत इसकी वैक्सीन के 30 हज़ार डोज़ेज मालदीव भेजे.
कोविड के समय भी भारत ने की थी मदद
कोविड के समय भारत मालदीव की मदद करने वाले पहला देश था. मौजूदा राष्ट्रपति मोइज्ज़ू बेशक चीन से नज़दीकी दिखा रहे हों लेकिन वे मालदीव को भौगोलिक तौर पर चीन के नज़दीक नहीं ले जा सकते. ख़ासतौर पर विपदा के समय भारत ही मालदीव के लोगों की मदद के लिए सबसे पहले आता है.
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