"सपा ने अखिलेश को नेता माना, यूपी की जनता ने नहीं": जाने-माने राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर

राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा कि इससे ये साफ है कि सपा के नेताओं ने उन्हें अपना नेता मान लिया है लेकिन यूपी की जनता अखिलेश को अपना नेता कब मानेगी, इसके लिए उन्हें प्रयास करना पड़ेगा.

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प्रशांत किशोर ( फाइल फोटो )

देश में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) अब ज्यादा दिन दूर नहीं रह गए हैं. ऐसे में तमाम पार्टियों अपने उम्मीदवार घोषित करने में लगी है. इन चुनावों में एक बार फिर से परिवारवार की राजनीति चर्चा में है. इस मुद्दे पर राय रखते हुए जाने-माने राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के राजनीतिक सफर पर भी बात की. उन्होंने कहा कि अखिलेश समाजवादी पार्टी के नेता हैं, वो मुलायम सिंह के बाद नेता बने हैं. लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि अखिलेश यादव की अगुवाई में सपा लोकसभा और विधानसभा चुनाव नहीं जीती है. आखिरी चुनाव सपा तब जीती थी, जब मुलायम सिंह यादव मौजूद थे और अखिलेश पार्टी का चेहरा था. इसके बाद अखिलेश अकेले लड़े हों या फिर गठबंधन में, वो सफलता हासिल नहीं सके हैं.

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राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा कि इससे ये साफ है कि सपा के नेताओं ने उन्हें अपना नेता मान लिया है लेकिन यूपी की जनता अखिलेश को अपना नेता कब मानेगी? इसके लिए उन्हें प्रयास करना पड़ेगा. इसी तरह तेजस्वी, लालू यादव के लड़के हैं तो उन्हें राजद अपना नेता मान लेगी मगर बिहार की जनता ने उन्हें अपनाया हो, ये तो नहीं कहा जा सकता. यही बात स्टालिन और गांधी परिवार पर भी लागू होती है. जनता परिवारवाद को खुद रिजेक्ट कर देगी, इस पर ज्यादा बहस की जरूरत नहीं. बीजेपी भी यहीं कर रही है, बस बीजेपी आपको थोड़ा बेहतर इसलिए दिख रही है अभी वो नए-नए सत्ता में आए हैं. उनकी अगली पीढ़ी अब आएगी, प्रेशर तो अब बनना शुरू होगा. बीजेपी ने बहुत सारी बातें चाल, चरित्र को लेकर कही, और जब वो सत्ता में आए तब सब डाइलुट होता दिख रहा है.

जेपी के आंदोलन में जो सबसे ज्यादा वंशवाद के खिलाफ खड़े हुए हैं वो खुद परिवार की पार्टी चला रहे हैं. इसी के साथ किशोर ने कहा, ‘‘लेकिन राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को ऐसा लगता है कि वह सब कुछ जानते हैं. यदि ऐसा लगता है कि आपको मदद की आवश्यकता नहीं है तो कोई भी आपकी मदद नहीं कर सकता. उन्हें लगता है कि वह सही हैं और वह मानते हैं कि उन्हें ऐसे व्यक्ति की जरूरत है जो उनकी सोच को मूर्त रूप दे सके, यह संभव नहीं है.'' 

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