अच्छा मानसून पूर्वानुमान सभी के लिए राहत की बात है फिर चाहे वह सीधे तौर पर कृषि से जुड़ा हो या नहीं लेकिन कर्नाटक के कृषक अयप्पा मसागी का मानना है कि वर्षा के पानी के अच्छे उपयोग से 'अन्नदाता' अपनी खेती और फसल का बेहद उत्पादन कर सकते हैंयहां तक कि उन क्षेत्रों में भी, जहां कम वर्षा होती है. कर्नाटक का यह 'कृषि विशेषज्ञ' बारिश के पानी के बेहतरीन उपयोग के बारे में काम कर रहा है. उसने कई दशकों में जो कुछ भी सीखा है, वह लोगों के साथ शेयर करना चाहता है.
अयप्पा की यात्रा लंबी रही है और इसकी शुरुआत तब हुई जब उन्होंने एक बच्चे के रूप में पानी के मूल्य (value) को समझा. अयप्पा याद करते हैं, कैसे उनकी मां को पीने के पानी के लिए संघर्ष करना पड़ता था और इसने कैसे पानी पर स्टडी की उनकी रुचि का जाग्रत किया. वे बताते हैं, "इसका कारण मेरी मां है.बचपन में मां मुझे ले जाती थी और सुबह तीन बजे नदी से पानी लाती थी. मैं उत्तरी कर्नाटक में पला-बढ़ा, जो सूखाग्रस्त क्षेत्र है. जब गरमी आती तो पानी मिलना मुश्किल हो जाता. अगर आप लेट हो गए तो पानी नहीं मिलता था. मैं तब तीन या चार साल का बच्चा था. मैं पानी का बर्तन अपने सर पर रखता और इसे करीब डेढ़ KM लेकर आता था. मुझे चलना पड़ता था. वह मेरी प्रेरक थी."
डिप्लोमा करने के बाद अयप्पा में लार्सन एंड टुब्रो में 23 वर्ष तक काम किया. खेती के अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने छह एकड़ जमीन खरीदी परंतु कुछ सालों के बाद उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ा. वे बताते हैं, "तीन साल तक वहां अच्छी वाटर सप्लाई थी, ऐसे में अच्छी फसल पैदा हुई. इसके बाद 2002-03 में लगातार वर्षों तक सूखा पड़ा. ऐसे में सुपारी (Areca nut) के सभी 3000 पौधे गिर गए, यह पूरी तरह बंजर हो गया. 2002 में मैंने अपनी नौकरी भी छोड़ दी थी, मेरी पत्नी ने भी मुझे उपयोगहीन/बेकार साथी (useless fellow)कहा. "
अयप्पा ने 50 हजार रुपये सैलरी की अपनी नौकरी छोड़ दी और एक एनजीओ के संग अनुभव पाने के लिए केवल पांच हजार रुपये में जुड़ गए. यह देखने के लिए कि क्या वह बढ़ती फसलों और पानी के उपयोग के बारे में और ज्यादा जानकारी हासिल कर सकते हैं. बेंगलुरू लौटने के बाद ऑक्सफेम फैलोशिप ने सीखने की प्रक्रिया में उनकी मदद की. उन्होंने तुमकुर जिले में तीन एकड़ जमीन खरीदी. अयप्पा ने वर्षा के जल के साथ प्रयोग किया और परीक्षणों और गलतियों के माध्यम से जाना कि क्या कारगर हुआ और क्या नहीं? इस निष्कर्ष पर पहुंचने के पहले नारियल लगाने के लिए विभिन्न आकार के गड्ढों की कोशिश की और पाया कि 4 फीट बाय 4 फीट ने सबसे अच्छा काम किया. उन्होंने मिट्टी के डिब्बों और नालियों के साथ वर्षा के पानी को अवरुद्ध कर दिया जो सोक पिट और बोरवेल रिचार्जिंग पद्धतियों का इस्तेमाल करते थे ताकि बहते हुए पानी की गति धीमी हो जाए और वहां रुक जाए जहां वे इसे पहुंचाना चाहते हैं.
अयप्पा बताते हैं, "यह सूखाग्रस्त क्षेत्र है. जब मैंने यह जमीन खरीदी तो लोग पूछते थे कि तुम यहां क्यों आ रहे हो? बारिश नहीं, पानी नहीं...अब वही गांव वाले कह रहे हैं-यह तो वैकुंठ है. "खेती के लिए सारी खाद खेत से ही उत्पन्न होती है. वे कहते हैं, "सभी पशुधन मेरे कृषि अपशिष्ट खाते हैं. उनके गोबर-मूत्र का उपयोग खाद बनाने में किया जाता है. हम 10-15 दिनों के लिए गोबर और मूत्र, अंडे और मूंगफली के खोल का उपयाोग करते हैं फिर इसे filter करते हैं . यह एकमात्र खाद है जिसका मैं उपयोग कर रहा हूं."
अयप्पा उद्योगों और घरों में जल योजना के लिए सलाहकार के रूप में भी काम करते हैं मगर उनका प्रमुख लक्ष्य किसानों के पानी के उपयोग में सुधार लाना है. वे प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करते हैं और हरसंभव तरीके से इसका प्रचार-प्रसार करते हैं. अयप्पा बताते हैं, "सोशल मीडिया, पुस्तकों और प्रिंट मीडिया के माध्यम से. मेरा प्रशिक्षण केंद्र है, मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों को जल योद्धाओं (water warriors) को ट्रेनिंग देना चाहता हूं और कृषकों को शिक्षित करना चाहता हूं. मैं हर माह तीन से चार कार्यक्रम आयोजित कर रहा हूं." जिस युवा लड़के ने उत्तरी कर्नाटक के शुष्क इलाके में रहते हुए पानी के महत्व को समझा, वह अब 60 के दशक में है . अयप्पा दूसरों को समझाते रहते हैं कि प्रकृति द्वारा हमें प्रदत्त वर्षा जल का सर्वोत्तम तरीके से उपयोग करने का क्या महत्व है.