लोकसभा चुनाव में आधी आबादी पर फोकस, जरूर देखें महिला शक्ति पर बनी शॉर्ट फिल्म 'जूती'

नेशनल अवॉर्ड विजेता निर्देशक शालिनी शाह (National Award winning director Shalini Shah) इन दिनों अपनी फिल्म 'समोसा एंड सन्स' को लेकर चर्चा में हैं पर लगभग छह साल पहले उन्होंने शॉर्ट फिल्म 'जूती' बनाई थी.

विज्ञापन
Read Time: 5 mins
यह फ़िल्म गोवा इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में दिखाई जा चुकी है.

पहाड़ में पानी की समस्या, महिलाओं के ऊपर परिवार की सारी जिम्मेदारी होने के बावजूद उनके साथ सही व्यवहार न होना आम है. महिलाओं को मौका मिले तो वह समाज बदल सकती हैं, इस थीम पर बनी शॉर्ट फिल्म 'जूती' (Jooti) मात्र दस मिनट की है पर इन दस मिनटों में ही यह दर्शकों तक महिला शक्ति से जुड़ा अपना संदेश पहुंचा देती है. चुनाव (Election) के दिनों में इस शॉर्ट फिल्म को एक बार देखना तो बनता ही है.

नेशनल अवॉर्ड विजेता निर्देशक शालिनी शाह (National Award winning director Shalini Shah) इन दिनों अपनी फिल्म 'समोसा एंड सन्स' को लेकर चर्चा में हैं पर लगभग छह साल पहले उन्होंने शॉर्ट फिल्म 'जूती' बनाई थी, यह फ़िल्म तब गोवा इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में दिखाई गई और अभी यह फ़िल्म के लेखक दीपक तिरुआ के यूट्यूब पेज पर उपलब्ध है.

3 किरदारों पर लिखी कहानी और फ़िल्म के कलाकार दोनों ही दमदार

फ़िल्म की कहानी बसु नाम की महिला के इर्द गिर्द घूमती है, जिसका पति गजुवा शराबी है और वह पैसों के लिए अपनी पत्नी को एक ठेकेदार के कहने पर आरक्षित सीट से ग्राम प्रधान बनवा देता है. ठेकेदार, बसु को मोहरा बनाकर गांव में आई सरकारी योजनाओं से लाभ उठाना चाहता था पर खुद मुश्किलों को झेली बसु, गांव की अन्य महिलाओं का दर्द समझती है और प्रधान बनते ही अपनी नारी शक्ति का रूप दिखा देती है.

Advertisement

कहानी के लेखक दीपक तिरुआ ने इस कहानी को मुख्य रूप से तीन किरदारों को लेकर ही लिखा है. कहानी के साथ बसु का पात्र हमें बदलता दिखता है, जो एक आम पहाड़ी कामकाजी महिला से नेता के रूप में हमारे सामने आती है. बसु का पात्र निभाने वाली दिव्या ने अपने अभिनय से सबसे ज्यादा प्रभावित किया है. 'मेरी तरफ आंख उठा कर भी देखा न तूने यहीं पर भस्म कर दूंगी मैं' बोलते दिव्या वही पहाड़ी महिला लगती हैं, जिनके ऊपर पूरे परिवार की जिम्मेदारी होती है पर फिर भी पहाड़ों में उन्हें कभी उचित सम्मान नही मिला. इन सब के बीच जब उन्हें गुस्सा आता है तो इन महिलाओं के गुस्से से कोई नही बच पाता. 

Advertisement

ठेकेदार बने सुशील शर्मा ने भी अपने किरदार को बिल्कुल जीवंत तरीके से निभाया है. प्रधान के सामने अपना एक पैर कुर्सी पर रखते ' तू मेरे सामने नेतागिरी करती है' कहते वह पहाड़ में ठेकेदारों की लूट खसोट के जीते जागते उदाहरण लगते हैं.
प्रधान बसु के पति बने गजुवा का किरदार निभाने वाले चंदन बिष्ट के पास इन दस मिनटों में करने के लिए ज्यादा कुछ नही था. फिर भी शराब पीकर बर्बाद होते पहाड़ी युवा के किरदार में उनका काम याद रह जाता है.  बसु और गजुवा के बीच की लड़ाई, पहाड़ों की सच्चाई है. जहां अपने शराबी पति से तंग महिलाएं उनसे प्रताड़ित भी होते रहती हैं. 

Advertisement

शॉर्ट फिल्म का छायांकन और बैकग्राउंड स्कोर बेहद प्रभावशाली

फ़िल्म के डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी राजेश शाह हैं, जो बॉलीवुड की बहुत सी फिल्मों से जुड़े रहे हैं और उन्होंने अपने काम से इस शॉर्ट फिल्म को दिखने में शानदार बना दिया है. ड्रोन कैमरे से फिल्माए गए भवालीगांव के आसपास पहाड़ों के दृश्य शानदार लगते हैं, फ़िल्म में एक दृश्य खासा ध्यान खींचता है, जब हमें उसमें गाय बंधी दिखती है और साथ ही एक पुरुष लकड़ी काट रहा होता है. यह दिखाते राजेश शाह दर्शकों तक पहाड़ के जीवन की छाप छोड़ जाते हैं, जहां पशुपालन मुख्य व्यवसाय है और लोग मेहनत कर के अपने परिवार का गुजारा करते हैं. आग जलाने के लिए मारी फूंक इतनी स्पष्ट सुनाई देती है कि उस पूरी प्रक्रिया को दर्शकों के मन में उतार देती है.

Advertisement

पटकथा लेखन और संवाद में अव्वल रही यह शॉर्ट फिल्म.

कहानी के साथ फ़िल्म के संवाद और पटकथा भी दीपक तिरुआ के लिखे हुए हैं. यह दोनों प्रभावित करते हैं,  चुनाव जीतने के बाद ढोल नगाड़े बजने वाला दृश्य हो या बसु का इसके बाद हवाई चप्पल उतार कर जूती पहनना. पटकथा लेखन ने फ़िल्म को प्रभावशाली बना दिया है. प्रधान चुने जाने के बाद बसु लोगों के सामने नीचे बैठ रही होती है, उसे कुर्सी में बैठने के लिए कहा जाता है और एक दृश्य में बसु शीशे के सामने खड़े होकर नेताओं की तरह दिखने के लिए हाथ जोड़कर प्रैक्टिस करती है, पटकथा लेखन का यह काम आपको दीपक तिरुआ का फैन बना सकता है.

एक संवाद किस तरह फ़िल्म के मुख्य पात्र को बदल सकता है, यह हम बसु को गांव की महिला द्वारा कहे गए शब्दों से समझ सकते हैं. 'ओ बसु दी, क्या फायदा हुआ तेरा प्रधान बनने का पानी तो आज भी हमको दो मील दूर से लाना पड़ रहा है'.
'गज्जू दा का बूता है, चुनाव चिन्ह जूता है' नारा भी कमाल का लिखा गया है.

पोस्टर के जरिए सन्देश पहुंचाती निर्देशक

फ़िल्म की निर्देशक शालिनी शाह महिलाओं के मुद्दे अपने अलग ही अंदाज़ में दिखाती आई हैं. उनकी हाल ही में आई फ़िल्म 'समोसा एंड सन्स' में वह दुकान के बाहर उसका नाम बदल कर महिला सशक्तिकरण का उदाहरण देती हैं, ठीक वही काम उन्होंने इस शॉर्ट फ़िल्म में किया था.

यहां पोस्टर के ज़रिए वह यह दिखाती हैं कि अधिकतर महिलाओं को उनके पति के नाम पर चुनाव में उठाया जाता है और वह बस नाम का ही पद लेती हैं. पोस्टर में लिखा दिखता है 'गजुवा की दुल्हैणी ( बाइफ ) को वोट दें'.

Featured Video Of The Day
Meerapur Assembly Seat इस बार किसे चुनेंगी, क्या कहता है यहां का सियासी समीकरण? | UP By Elections
Topics mentioned in this article