ICAR-CIRCOT के शताब्दी वर्ष समारोह में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने किसानों की समस्याओं को लेकर कृषि मंत्री से कुछ सवाल पूछे हैं. उन्होंने अपने संबोधन में कहा, 'कृषि मंत्री महोदय आपके लिए हर क्षण महत्वपूर्ण है. भारत के दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के तौर पर मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि कृपया मुझे बताएं कि क्या किसान से कोई वादा किया गया था और वह पूरा क्यों नहीं हुआ? हम वादा पूरा करने के लिए क्या कर रहे हैं? पिछले साल भी एक आंदोलन हुआ था और इस साल भी एक आंदोलन है और समय बीतता जा रहा है, लेकिन हम कुछ नहीं कर रहे हैं.'
समारोह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि माननीय कृषि मंत्री जी मुझे थोड़ा दुख हो रहा है. मेरी चिंता यह है कि यह पहल अब तक क्यों नहीं हुई. मुझे सरदार पटेल और देश को एकजुट करने की उनकी जिम्मेदारी की याद आती है, जिसे उन्होंने बहुत अच्छे से निभाया. ये चुनौती आज आपके सामने है और इसे भारत की एकता से कम नहीं समझना चाहिए.
उपराष्ट्रपति ने कहा कि किसानों से तुरंत बातचीत तुरंत होनी चाहिए. क्या पिछले कृषि मंत्रियों ने कोई लिखित वादा किया था? यदि हां, तो उनका क्या हुआ. किसानों के आंदोलन पर बात करते हुए कहा कि हम अपने ही लोगों से नहीं लड़ सकते, हम उन्हें इस स्थिति में नहीं डाल सकते जहां उन्हें अपने दम पर लड़ने के लिए छोड़ दिया जाए. हमें भारत की आत्मा को परेशान नहीं करना चाहिए, हमें उसके दिल को ठेस नहीं पहुंचानी चाहिए.
उपराष्ट्रपति ने कहा, “कृषि मंत्री जी, मुझे तकलीफ हो रही है. मेरी चिंता यह है कि अब तक यह पहल क्यों नहीं हुई. आप कृषि और ग्रामीण विकास मंत्री हैं. मुझे सरदार पटेल की याद आती है, उनका जो उत्तरदायित्व था देश को एकजुट करने का, उन्होंने इसे बखूबी निभाया. यह चुनौती आज आपके सामने है, और इसे भारत की एकता से कम मत समझिए. किसानों से वार्ता तुरंत होनी चाहिए, और हम सबको यह जानना चाहिए, क्या किसानों से कोई वादा किया गया था. कृषि मंत्री जी, क्या पिछले कृषि मंत्रियों ने कोई लिखित वादा किया था. अगर किया था, तो उसका क्या हुआ."
आंदोलित किसानों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए उन्होंने कहा, "हम अपने लोगों से नहीं लड़ सकते, हम उन्हें इस स्थिति में नहीं डाल सकते कि वे अकेले संघर्ष करें. हम यह विचारधारा नहीं रख सकते कि उनका संघर्ष सीमित रहेगा, और वे अंतत: थक जाएंगे. हमें भारत की आत्मा को परेशान नहीं करना चाहिए, हमें उनके दिल को चोट नहीं पहुंचानी चाहिए. क्या हम किसान और सरकार के बीच एक सीमा रेखा बना सकते हैं? जिनको गले लगाना चाहिए, उन्हें दूर नहीं किया जा सकता."
न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उपराष्ट्रपति ने कहा, “आज किसान को केवल एक काम सौंप दिया गया है, खेतों में अनाज उगाना और फिर उसकी सही कीमत पर बिक्री के बारे में सोचना. मुझे समझ में नहीं आता कि हम क्यों ऐसा फॉर्मूला नहीं बना सकते, जिसमें अर्थशास्त्रियों और थिंक टैंक के साथ विचार-विमर्श करके हमारे किसानों को पुरस्कृत किया जा सके. हम उन्हें उनका हक भी नहीं दे रहे, पुरस्कृत करना तो दूर की बात है. हमने जो वादा किया था, उसे देने में भी कंजूसी कर रहे हैं, और मुझे समझ में नहीं आता कि किसानों से वार्ता क्यों नहीं हो रही है. हमारी मानसिकता सकारात्मक होनी चाहिए."
उन्होंने कहा, “यह बहुत संकीर्ण आकलन है कि किसान आंदोलन का मतलब केवल वे लोग हैं जो सड़कों पर हैं. नहीं, किसान का बेटा आज अधिकारी है, किसान का बेटा सरकारी कर्मचारी है. लाल बहादुर शास्त्री जी ने क्यों कहा था - जय जवान, जय किसान. उस जय किसान के साथ हमारा रवैया वही होना चाहिए, जैसा लाल बहादुर शास्त्री ने कल्पना की थी. मेरी पीड़ा यह है कि किसान और उनके हितैषी आज चुप हैं, बोलने से कतराते हैं. देश की कोई ताकत किसान की आवाज को दबा नहीं सकती. यदि कोई राष्ट्र किसान की सहनशीलता परखने की कोशिश करेगा, तो उसे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी."