उत्तराखंड के रुड़की में एक छोटे से चर्च पर करीब 200 दक्षिणपंथी हिंदुत्व चरमपंथियों की भीड़ ने दो महीने पहले कथित तौर पर हमला कर दिया था, लेकिन इस मामले में अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है. 3 अक्टूबर की सुबह हुए हमले के कुछ घंटों के भीतर ही हमलावरों के नाम पर प्राथमिकी दर्ज की गई थी. प्राथमिकी 65 वर्षीय साधना पॉर्टर ने दर्ज करवाई थी, जो कि इस चर्च को चला रही हैं. साधना के पादरी पति डीआर लांस की कोरोना की पहली लहर में मौत हो गई थी, अब वह अपनी बेटियों के साथ इस तीन दशक पुराने चर्च को चला रही हैं.
उन्होंने बताया, 'हम सुबह करीब 10 बजे चर्च के अंदर अपनी प्रार्थना सभा शुरू ही कर रहे थे कि तभी एक भीड़ अंदर आ गई. उन्होंने दीवार से क्रॉस उतारा और उसके टुकड़े कर दिए. उन्होंने मेरे दिवंगत पति की तस्वीर भी उतार दी.'
चर्च जाने वाले कई लोग घायल हो गए, एक तो इतनी बुरी तरह से जख्मी हो गए थे कि उन्हें देहरादून के एक अस्पताल में रेफर करना पड़ा.
प्राथमिकी में, पोर्टर ने दावा किया कि हमलावरों में उनके वे पड़ोसी भी थे, जो कि लंबे समय से वहां रह रहे थे. भीड़ में कम से कम तीन लोग ऐसे शामिल थे जो भाजपा के साथ जुड़े हुए हैं.
उन लोगों में से एक का नाम सीमा गोयल है, जो साधना पोर्टर से सिर्फ पांच मिनट की दूरी पर रहती हैं. पोर्टर की बेटी ईवा कहती हैं कि उन्होंने सीमा गोयल को भीड़ का नेतृत्व करते देखा. सीमा गोयल भाजपा महिला मोर्चा का हिस्सा हैं और उन्हें स्थानीय भाजपा विधायक प्रदीप बत्रा द्वारा फेसबुक पर पोस्ट की गई तस्वीरों में उत्तराखंड में आगामी चुनावों के लिए प्रचार करते देखा जा सकता है.
सीमा गोयल ने कैमरे पर एनडीटीवी से बात करने से इनकार कर दिया, लेकिन कहा कि वह गलती से इसमें फंस गई हैं, लेकिन इसमें शामिल नहीं थी.
एफआईआर में नामजद सागर गोयल भी भाजपा युवा मोर्चा का हिस्सा हैं. गोयल के एक फेसबुक पोस्ट के अनुसार, वह भी चुनाव प्रचार में शामिल थीं और 2 नवंबर को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात की थी. वह टिप्पणी के लिए अपने आवास पर नहीं मिलीं.
प्राथमिकी में नामित एक अन्य स्थानीय भाजपा नेता धीर सिंह ने इस बात से इनकार किया कि वह हिंसा में शामिल था. अजीत नाम के एक स्थानीय चर्च जाने वाले का कहना है कि धीर सिंह ने उसे मारा, जातिवादी गालियों का इस्तेमाल किया और उसका फोन छीन लिया.
धीर सिंह ने कहा, 'मैं 56 साल का हूं. मैं हिंसा में कैसे शामिल हो सकता हूं? मुझे डिस्क की समस्या है. मेरा दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल से इलाज चल रहा है.'
जब जांच अधिकारी विवेक कुमार से पूछा गया कि दो महीने में कोई गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई, तो उन्होंने कहा, "जांच जारी है और जो तथ्य सामने आएंगे हम कार्रवाई करेंगे." उन्होंने आगे टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
पुलिस की निष्क्रियता ने राजनीतिक प्रभाव पर सवाल खड़े कर दिए हैं. उत्तराखंड में फरवरी 2022 में चुनाव होने हैं और तथाकथित अवैध धर्मांतरण सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा उठाए गए मुद्दों में से एक है. उत्तराखंड सरकार ने साल 2018 में जबरन धर्मांतरण विरोधी विधेयक पारित किया था.
चर्च पर हमले के 24 घंटे से ज्यादा समय के बाद, साधना पोर्टर और चर्च जाने वालों के खिलाफ सोनम नाम की एक महिला ने प्राथमिकी दर्ज करवाई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसे और चार अन्य राहुल, कविता वाल्मीकि, मोहित और सरिता त्यागी को जबरन ईसाई धर्म में कबूल करवा रहे थे.
सोनम और अन्य का दावा है कि उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए लाखों रुपये की पेशकश की गई थी. सोनम ने आरोप लगाया कि जब उन्होंने धर्म परिवर्तन से इनकार किया, तो चर्च जाने वालों ने उन्हें मारा और जातिवादी गालियों का इस्तेमाल किया. हालांकि, साधना पोर्टर ने इन आरोपों का खंडन किया है.
साधना पोर्टर ने कहा, 'मैं एक पेंशनभोगी हूं और मेरी एक बेटी सॉफ्टवेयर इंजीनियर है. इस तरह हम अपने खर्चें पूरे करते हैं. हमारे पास इतना पैसा है ही नहीं. हममें से कोई भी सोनम नाम की किसी महिला से कभी नहीं मिला.'
इसके अलावा, अवैध धर्मांतरण के दावों में कई विरोधाभास हैं, खासकर उस समय के बारे में जब सोनम और अन्य चर्च में मौजूद थे.
सोनम की ओर से दर्ज कराई गई प्राथमिकी में उनका कहना है कि वह सुबह आठ बजे चार अन्य लोगों के साथ पहुंचीं. उन्होंने सुबह 8:30-9 बजे निकलने की कोशिश की, लेकिन चर्च जाने वालों ने उन पर हमला कर दिया.
लेकिन दो अन्य शिकायतकर्ताओं से एनडीटीवी ने फोन पर संपर्क किया, उनमें सोनम के पति राहुल और उनके दोस्त मोहित हैं, जिन्होंने अलग-अलग समय बताया. राहुल का कहना है कि वह सुबह 11:30 बजे चर्च पहुंचे और वहां पहुंचने पर चर्च जाने वालों ने उनके साथ गाली-गलौज की. मोहित का कहना है कि वह सुबह 10:30 से 11 बजे के बीच पहुंचे थे.
इसके अलावा, उनमें से कुछ का दावा है कि वे 11 बजे के आसपास चर्च पहुंचे. जबकि साधना पोर्टर और स्थानीय पुलिस के अनुसार, हमला सुबह 10 बजे शुरू हुआ और सुबह 10:30 बजे तक खत्म हो गया. इस वक्त तक पुलिस वहां पहुंच चुकी थी. वह और अन्य चर्च जाने वाले 11:15 बजे प्राथमिकी दर्ज करने के लिए पुलिस स्टेशन के लिए रवाना हुए थे.
यह देखते हुए कि कई आरोपी उनके पड़ोसी हैं, साधना पोर्टर को पुलिस सुरक्षा दी गई है. लेकिन वह कहती है कि उन्हें न्याय चाहिए. उन्होंने कहा, 'मैं डरी हुई हूं, मैं और मेरी दो बेटियां ही रहती हैं. मैं यहां से जा नहीं सकती, क्योंकि मेरा घर यहां है, हमारा चर्च यहां है. हमारी जिंदगी यहां है.'