US Recession: संयुक्त राज्य अमेरिका में जल्द ही गंभीर आर्थिक मंदी देखी जा सकती है. एक शीर्ष अर्थशास्त्री ने कहा है कि यह न केवल भारत के सर्विस सेक्टर को प्रभावित करेगा, जो देश की जीडीपी (GDP) का एक प्रमुख घटक है, बल्कि बॉन्ड और इक्विटी मार्केट में भी काफी अस्थिरता लाएगा. एनडीटीवी के साथ हुई खास बातचीत में एक्सिस बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) के पार्ट-टाइम चेयरपर्सन नीलकंठ मिश्रा ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका को इस साल मंदी में प्रवेश करने की उम्मीद है.
उन्होंने कहा कि ऐसा सोचा गया था कि इसकी जीडीपी वृद्धि (GDP Growth) गिर जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. लोगों को लगा कि सितंबर के अंत तक सॉफ्ट लैंडिंग होगी और मंदी नहीं आएगी.
राजकोषीय घाटा बढ़ने से टल सकती है मंदी की आशंका
नीलकंठ मिश्रा ने कहा, "हमारा विश्लेषण कहता है कि इस वर्ष उनका राजकोषीय घाटा उनके सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 4% बढ़ गया है. उन्होंने 1 डॉलर ट्रिलियन का लक्ष्य रखा था. उनका वित्तीय वर्ष 30 सितंबर को 2 ट्रिलियन डॉलर के आंकड़े के साथ समाप्त हुआ. अगर राजकोषीय घाटा इतना अधिक है तो मंदी हो ही नहीं सकती.
हालांकि, उनके लिए समस्या यह है कि अगर वे राजकोषीय घाटा (fiscal deficit) नहीं बढ़ाते हैं, तो वे अर्थव्यवस्था की वृद्धि को बनाए नहीं रख सकते.
अमेरिकी अर्थव्यवस्था के मंदी में जाने के पीछे कई वजह
उन्होंने अमेरिका को चेतावनी देते हुए कहा,"भले ही वे अगले साल राजकोषीय घाटे को स्थिर रखने में कामयाब रहे, जो कि अपने आप में एक समस्या है, अर्थव्यवस्था मंदी में चली जाएगी. राजकोषीय घाटा इतना अधिक होने के कारण कोई भी अमेरिकी बॉन्ड खरीदना नहीं चाहता है.ब्याज दरें बढ़ रही हैं इसकी वजह से इससे दुनिया भर में मांग में कमी आने वाली है. इसलिए, जो मंदी आएगी वह बहुत गहरी हो सकती है."
जानें अमेरिका में मंदी आने से भारत पर क्या होगा असर
अमेरिका में मंदी आने से भारत पर इसका प्रभाव किस तरह पड़ सकता है..इसके जवाब में नीलकंठ मिश्रा ने कहा कि यह प्रभाव चार तरीकों से महसूस किया जा सकता है. भारत सर्विस ग्रोथ जो कि पहले से सुस्त है, वह और धीमी हो जाएगी.
उन्होंने कहा, "अगर अमेरिका में मंदी आती है तो हमारा आईटी सर्विस इंडस्ट्री और हमारा व्यावसायिक सेवा निर्यात प्रभावित हो सकता है. सेवा निर्यात भारत के निर्यात का 10% हिस्सा है. अगर उनमें बहुत अधिक गिरावट आती है, तो हम जीडीपी वृद्धि में 1% तक की गिरावट देख सकते हैं."