सुप्रीम कोर्ट ने यूपी में अवैध धर्मांतरण के मामले में आरोपी मौलाना कलीम सिद्दीकी की जमानत (Maulana Kaleem Siddiqui) को चुनौती देने वाली याचिका पर अतिरिक्त दस्तावेजों के साथ जवाब दाखिल करने की अनुमति दी. अदालत ने कलीम की तरफ से उसकी स्वास्थ्य स्थितियों का विवरण रिकॉर्ड में दर्ज करने के लिए हलफनामा दायर करने की भी अनुमति दी है. अब मामले पर 2 अप्रैल को सुनवाई होगी. पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि देश में धर्म परिवर्तन की इजाजत है, लेकिन प्रलोभन, बल या धोखाधड़ी के जरिए धर्मपरिवर्तन की इजाजत कानून नहीं देता.सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से धर्मांतरण रैकेट चलाने के आरोपी के खिलाफ लगे आरोपो से संबंधित विवरण देने को कहा था.
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अवैध धर्मांतरण मामले में हुई थी मौलाना कलीम की गिरफ्तारी
उत्तर प्रदेश एटीएस (Uttar Pradesh ATS) ने मौलाना कलीम सिद्दीकी को सितंबर, 2021 में गिरफ्तार किया था. साल 2023 में राहत देते हुए इलाहाबाद HC ने जमानत शर्तों में बदलाव करते हुए उसे भाई के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए जमानत दे दी थी. उसे अवैध धर्मांतरण का देशव्यापी सिंडीकेट चलाने और धर्मांतरण के लिए विदेशों से हवाला के जरिये फंडिंग का आरोपी पाया गया था.एटीएस के अनुसार, देशभर में कई मदरसों की फंडिंग कर धर्मांतरण का अवैध नेटवर्क तैयार किया गया. अब उसकी जमानत को चुनौती दी गई है.
मौलाना कलीम पर मदरसों की फंडिंग का भी आरोप
जानकारी के मुताबिक, मौलाना कलीम मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के फुलत का रहने वाला है. उसकी प्राथमिक शिक्षा भी वहीं के मदरसे में हुई. मेरठ के कॉलेज से बीएससी और पीएमटी प्रवेश परीक्षा पास करने के बाद इस्लामी साहित्यकारों के प्रभावित होने बाद उसने एमबीबीएस करने के बजाय दारूल उलूम नदवतुल उलमा, लखनऊ में दाखिला ले लिया था. एटीएस के मुताबिक, यह भी तथ्य सामने आए हैं कि मौलाना अपना ट्रस्ट संचालित करने के अलावा तमाम मदरसों की फंडिंग भी करता था, जिसके लिए उसे विदेशों से भारी धनराशि हवाला व अन्य अवैध माध्यमों के जरिये भेजी जाती थी.
डर और लालच देकर धर्मांतरण के लिए करता था मजबूर
एटीएस के मुताबिक, मौलाना इन मदरसों की आड़ में इंसानियत का पैगाम देने के बहाने लोगों को जन्नत और जहन्नुम जैसी बातों का भय दिखाकर लालच देकर इस्लाम स्वीकार करने के लिए प्रेरित करता था.धर्मांतरण के लिए कलीम का खुल का लिखा साहित्य प्रयोग किया जाता था. यह साहित्य प्रिंट और ऑनलाइन दोनों रूप में उपलब्ध है. मौलाना करीम लोगों के बीच इस विश्वास को जागृत कर रहा था कि शरीयत के अनुसार बनी व्यवस्था ही न्याय दे सकती है.