किस्सा: जब पाकिस्तानी महिला पत्रकार ने अटल बिहारी वाजपेयी से कहा- 'मैं आपसे शादी करना चाहती हूं'

लाहौर में एक कार्यक्रम के दौरान मीडिया से बातचीत चल रही थी. इसी बीच एक पाकिस्तानी महिला पत्रकार ने मजाकिया लहजे में अटल बिहारी वाजपेयी से कहा, 'मैं आपसे शादी करना चाहती हूं.' इस पर अटल बिहारी वाजपेयी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, 'मुझे शादी से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन दहेज में मुझे पूरा पाकिस्तान चाहिए.'

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  • अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भारत-पाकिस्तान संबंधों में उनकी सधी हुई राजनीतिक शैली के लिए याद किया जाता है.
  • 1999 के लाहौर दौरे के दौरान एक पाकिस्तानी महिला पत्रकार ने मजाकिया अंदाज में उनसे शादी की इच्छा जताई थी.
  • वाजपेयी ने हंसते हुए जवाब दिया कि शादी में दहेज के तौर पर पूरा पाकिस्तान चाहिए.
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भारत-पाकिस्तान रिश्तों के इतिहास में अटल बिहारी वाजपेयी का नाम सिर्फ एक प्रधानमंत्री के तौर पर नहीं, बल्कि अपने हाजिरजवाब, विनम्र और सधे हुए राजनीतिक अंदाज़ के लिए भी याद किया जाता है. ऐसा ही एक किस्सा 1999 के ऐतिहासिक लाहौर दौरे से जुड़ा है, जो आज भी चर्चा में रहता है.

मजाकिया लहजे में बड़ी बात बोल गईं महिला पत्रकार

दरअसल, लाहौर में एक कार्यक्रम के दौरान मीडिया से बातचीत चल रही थी. इसी बीच एक पाकिस्तानी महिला पत्रकार ने मजाकिया लहजे में अटल बिहारी वाजपेयी से कहा, 'मैं आपसे शादी करना चाहती हूं.'

'दहेज में पाकिस्तान चाहिए'

यह सुनकर वहां मौजूद लोग चौंक गए, लेकिन अटल बिहारी बिल्कुल नहीं हिचके. उन्होंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, 'मुझे शादी से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन दहेज में मुझे पूरा पाकिस्तान चाहिए.'

उनका यह जवाब एक साथ हंसी, तालियों और राजनीतिक संदेश से भरा था. वाजपेयी ने बिना किसी कटुता के यह साफ कर दिया कि कश्मीर या भारत के हितों पर कोई समझौता नहीं हो सकता.

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कौन थी वो महिला पत्रकार?

यह किस्सा बाद में कई नेताओं और पत्रकारों ने दोहराया. रक्षा मंत्री रहे राजनाथ सिंह भी सार्वजनिक मंचों से इसका ज़िक्र कर चुके हैं. हालांकि, दिलचस्प बात यह है कि उस पाकिस्तानी महिला पत्रकार का नाम किसी भी आधिकारिक या मीडिया रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है. सभी रिपोर्ट्स में उन्हें सिर्फ 'एक पाकिस्तानी महिला पत्रकार' के तौर पर ही उल्लेखित किया गया है.

यह घटना अटल बिहारी वाजपेयी की उस राजनीतिक शैली को दिखाती है, जिसमें कटाक्ष भी था, शालीनता भी और राष्ट्रहित का स्पष्ट संकेत भी था. शायद यही वजह है कि दशकों बाद भी ऐसे किस्से सिर्फ याद नहीं किए जाते, बल्कि बार-बार सुनाए जाते हैं.

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