ट्विटर ने कर्नाटक हाईकोर्ट से कंटेट ब्लॉक करने से संबंधित केंद्र के कुछ आदेशों को 'पलटने' का आग्रह किया है. मामले से जुड़े सूत्रों के अनुसार, ट्वटिर ने तर्क देते हुए कहा है कि यह आदेश मनमाने हैं और सत्ता के दुरुपयोग को दर्शाते हैं. केंद्र सरकार और अमेरिकी सोशल मीडिया दिग्गज के बीच जारी टकराव की यह नवीनतम कड़ी है.
सूत्रों के अनुसार, इस मामले में ट्विटर के कई खातों और इसके कंटेंट को ब्लॉक करने का आदेश है..
-असीमित और मनमाना
-कंटेंट प्रवर्तकों (content originators) को नोटिस देने में नाकाम
-कई मामले में असंगतपूर्ण
ट्विटर का कहना है, "कई चीजें राजनीतिक कंटेंट से संबंधित हो सकती है जो राजनीतिक पार्टियों के आधिकारिक हैंडल से पोस्ट किए जाते हैं." उसके अनुसार, इस कंटेंट को ब्लॉक करना यूजर की अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है. ट्विटर का कहना है कि यह खुलेपन और पारदर्शिता के सिद्धांतों के लिए प्रतिबद्ध है.
मामले से जुड़े सूत्रों के अनुसार, सरकार पर केस का ट्वटिर का आधार यह है ..
1. ब्लॉक करने के कई आदेश आईटी एक्ट के सेक्शन 69A के अंतर्गत प्रक्रियागत और मूलभूत रूप से अधूरे हैं जो सरकार को भारत की संप्रभुता, अखंडता, रक्षा, सुरक्षा और अन्य देशों के साथ दोस्ताना संबंधों के लिए पहुंच को प्रतिबंधित करने की अनुमति देता है.
यूजर्स को नोटिस न देना भी एक खामी है
2. सेक्शन 69A के तहत ब्लॉकिंग की न्यूनतम आवश्यकता को पूरा नहीं किया गया है. चूंकि कुछ कंटेट की प्रकृति सियासी भाषण, आलोचना और समाचार योग्य सामग्री की तरह हो सकती है, ऐसे में कंटेंट ब्लॉक के ये आदेश सेक्शन 69A के प्रावधानों की कसौटी पर खरे नहीं उतरते.
3. शक्ति का असंगतपूर्ण उपयोग
ट्विटर का मानना है कि खाते के आधार पर ब्लॉकिंग सैद्धांतिक रूप से असंगत उपाय है और यह संविधान के तहत यूजर्स के अधिकारों का उल्लंघन है. खासतौर पर तब, जब यूआरएल और अकाउंट को ब्लॉक करने का कारण सेक्शन 69A को भी पूरी तरह संतुष्ट नहीं करता. इसका तर्क है, यहां तक कि इलेक्ट्रानिक्स और आईटी मंत्रालय ने भी कहा है कि यूजर का पूरे अकाउंट का हटाना आखिरी उपाय होना चाहिए.
भारत में दो करोड़ 30 लाख (23 million) ट्विटर यूजर्स है और यह कंपनी का तीसरा सबसे बड़ा मार्केट है . ट्विटर के इस कानूनी कदम पर सरकार ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि सोशल मीडिया को जवाबदेह बनाना बेहद जरूरी है.आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, " सोशल मीडिया की जवावदेही वैश्विक स्तर पर वैध सवाल बन गई है. इसे जवाबदेह ठहराना बेहद महत्वपूर्ण है."
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