"सहनशीलता है अच्छे विवाह की नींव, छोटे-मोटे झगड़ों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश न करें" : दहेज मालमे पर SC

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि महिला, उसके माता-पिता और रिश्तेदारों के दिमाग में सबसे पहली चीज जो आती है वह है पुलिस, जैसे कि यह वह सभी बुराईयों का रामबाण इलाज हो.

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फाइल फोटो
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि सहनशीलता और सम्मान ही एक अच्छे विवाह की नींव हैं और छोटे-मोटे झगड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बताया जाना चाहिए. अदालत की यह टिप्पणी एक महिला द्वारा अपने पति के खिलाफ दायर दहेज-उत्पीड़न के मामले को रद्द करते हुए आई है. कोर्ट ने कहा, "एक अच्छे विवाह की नींव सहनशीलता, समायोजन और एक-दूसरे का सम्मान करना है. एक-दूसरे की गलतियों को एक निश्चित सहनीय सीमा तक सहन करना हर विवाह में अंतर्निहित होना चाहिए. छोटी-मोटी नोक-झोंक, छोटे-मोटे मतभेद सांसारिक मामले हैं और इन्हें बढ़ा-चढ़ाकर पेश नहीं किया जाना चाहिए."

अदालत ने कहा कि कई बार, एक विवाहित महिला के माता-पिता और करीबी रिश्तेदार बात का बतंगड़ बना देते हैं और स्थिति को बचाने और शादी को बचाने के बजाय, उनके कदम छोटी-छोटी बातों पर वैवाहिक बंधन को पूरी तरह से नष्ट कर देते हैं.

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि महिला, उसके माता-पिता और रिश्तेदारों के दिमाग में सबसे पहली चीज जो आती है वह है पुलिस, जैसे कि यह वह सभी बुराईयों का रामबाण इलाज हो. पीठ ने कहा कि मामला पुलिस तक पहुंचते ही पति-पत्नी के बीच सुलह की उचित संभावना भी नष्ट हो जाती है. 

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पीठ ने कहा, "अदालत को इस बात की सराहना करनी चाहिए कि प्रत्येक विशेष मामले में क्रूरता का निर्धारण करते समय सभी झगड़ों को हमेशा पक्षों की शारीरिक और मानसिक स्थितियों, उनके चरित्र और सामाजिक स्थिति को ध्यान में रखते तौला जाना चाहिए. एक बहुत ही तकनीकी और हाइपर -संवेदनशील दृष्टिकोण विवाह संस्था के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है." कोर्ट ने कहा कि शादी के टूटने से जिनपर सबसे अधिक प्रभाव होता है, वो बच्चे होते हैं. 

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पीठ ने कहा, "पति-पत्नी अपने दिल में इतना ज़हर लेकर लड़ते हैं कि वे एक पल के लिए भी नहीं सोचते कि अगर शादी खत्म हो जाएगी, तो उनके बच्चों पर क्या असर होगा. जहां तक उनके पालन-पोषण की बात है तो बच्चों के पालन-पोषण में तलाक एक बहुत ही संदिग्ध भूमिका निभाता है." उन्होंने कहा, "हम ऐसा क्यों कह रहे हैं इसका एकमात्र कारण यह है कि पूरे मामले को नाजुक ढंग से संभालने के बजाय, आपराधिक कार्यवाही शुरू करने से एक-दूसरे के लिए नफरत के अलावा कुछ नहीं आएगा. पति और उसके द्वारा वास्तविक दुर्व्यवहार और उत्पीड़न के मामले हो सकते हैं. पत्नी के प्रति परिवार के सदस्यों के इस तरह के दुर्व्यवहार या उत्पीड़न की डिग्री अलग-अलग हो सकती है." 

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इसमें कहा गया, "सभी मामलों में, जहां पत्नी उत्पीड़न या दुर्व्यवहार की शिकायत करती है, आईपीसी की धारा 498ए को यांत्रिक रूप से लागू नहीं किया जा सकता है. कोई भी एफआईआर आईपीसी की धारा 506 (2) और 323 के बिना पूरी नहीं होती है. हर वैवाहिक आचरण, जो परेशानी का कारण बन सकता है दूसरे के लिए, यह क्रूरता की श्रेणी में नहीं आता है, पति-पत्नी के बीच रोजमर्रा की शादीशुदा जिंदगी में होने वाली छोटी-मोटी चिड़चिड़ाहट, झगड़े भी क्रूरता की श्रेणी में नहीं आ सकते हैं."

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उसकी पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर के अनुसार, व्यक्ति और उसके परिवार के सदस्यों ने कथित तौर पर दहेज की मांग की और उसे मानसिक और शारीरिक आघात पहुंचाया. हालांकि, शादी के कुछ समय बाद, पति और उसके परिवार ने कथित तौर पर उसे झूठे बहाने से परेशान करना शुरू कर दिया कि वह एक पत्नी और बहू के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रही और उस पर अधिक दहेज के लिए दबाव डाला.

पीठ ने कहा कि एफआईआर और आरोपपत्र को पढ़ने से पता चलता है कि महिला द्वारा लगाए गए आरोप काफी अस्पष्ट, सामान्य और व्यापक हैं, जिनमें आपराधिक आचरण का कोई उदाहरण नहीं दिया गया है. पीठ ने कहा, "यह भी ध्यान रखना उचित है कि एफआईआर में, कथित अपराध या अपराधों की कोई विशिष्ट तारीख या समय का खुलासा नहीं किया गया है. यहां तक कि पुलिस ने अपीलकर्ता (पति) के परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ कार्यवाही को रद्द करना उचित समझा. इस प्रकार, हमारा विचार है कि प्रतिवादी नंबर 2 (महिला) द्वारा दर्ज की गई एफआईआर तलाक की याचिका और घरेलू हिंसा के मामले के जवाबी हमले के अलावा कुछ नहीं थी."

उन्होंने कहा, "उपरोक्त कारणों से, हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि यदि अपीलकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी जाती है, तो यह कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग और न्याय के मखौल से कम नहीं होगा."

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