टिपरा मोथा : एक नई क्षेत्रीय पार्टी का उदय, त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में जीतीं 13 सीटें 

टिपरा मोथा ने 42 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 13 सीटों पर उसने जीत हासिल की. पार्टी को लगभग 19 प्रतिशत मत मिले. क्षेत्रीय पार्टी के उम्मीदवार सुबोध देब बर्मा ने चरिलाम निर्वाचन क्षेत्र में उपमुख्यमंत्री जिष्णु देव वर्मा को 850 से अधिक मतों से हराया. 

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त्रिपुरा चुनाव में टिपरा मोथा को करीब 19 प्रतिशत मत मिले. (फाइल)
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  • टिपरा मोथा ने 42 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, 13 पर मिली जीत
  • TTAADC चुनावों से टिपरा मोथा का चुनावी राजनीति में प्रवेश
  • टिपरा मोथा नेतृत्‍व के लिए विधायकों को संभाले रखना चुनौती
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अगरतला :

त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में बिना किसी सहयोगी दल के चुनाव लड़ने वाली और 13 सीटें जीतने वाली नई क्षेत्रीय पार्टी टिपरा मोथा ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)-इंडि‍जिनियस फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) और वाम-कांग्रेस गठबंधन के मत प्रतिशत में महत्वपूर्ण पैठ बनाई. वर्ष 2021 में ग्रेटर टिपरालैंड की मांग को लेकर गठित इस पार्टी का मुख्य जोर राज्य की 60 विधानसभा सीटों में से जनजातीय बहुल 20 सीटों पर रहा. जनजातीय लोगों ने इस नयी नवेली पार्टी पर भरोसा भी किया. टिपरा मोथा ने 42 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 13 सीटों पर उसने जीत हासिल की. पार्टी को लगभग 19 प्रतिशत मत मिले. क्षेत्रीय पार्टी के उम्मीदवार सुबोध देब बर्मा ने चरिलाम निर्वाचन क्षेत्र में उपमुख्यमंत्री जिष्णु देव वर्मा को 850 से अधिक मतों से हराया. 

भाजपा-आईपीएफटी गठबंधन ने बृहस्पतिवार को 60 सदस्यीय विधानसभा में 33 सीटें जीतकर सत्ता तो बरकरार रखी लेकिन 2018 के मुकाबले उसे 10 सीटों का नुकसान हुआ. ऐसे में उसके पास एक स्पष्ट बहुमत है. इस स्थिति में उसे टिपरा मोथा से मदद लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी. 

भगवा पार्टी ने 55 सीटों पर चुनाव लड़ा और 32 सीटों पर जीत हासिल की, जो 2018 की तुलना में तीन कम है. पार्टी को 38.97 प्रतिशत मत मिले. आपसी गुटबाजी से प्रभावित आईपीएफटी केवल एक सीट पर विजयी होने में कामयाब रही, जबकि पांच साल पहले उसे आठ सीटें मिली थीं. इस बार उसका मत प्रतिशत महज 1.26 फीसदी रहा. 

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पूर्ववर्ती राजघराने के वंशज प्रद्योत किशोर देबबर्मा ने बनाई पार्टी 

दो साल पहले पूर्ववर्ती राजघराने के वंशज प्रद्योत किशोर देबबर्मा द्वारा गठित नई पार्टी ने वाम-कांग्रेस गठबंधन के जनजातीय मतों में भी सेंध लगाई है. इस गठबंधन को कुल 14 सीटें हासिल हुईं. वर्ष 2021 में त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (टीटीएएडीसी) चुनावों में भागीदारी के साथ टिपरा मोथा का चुनावी राजनीति में प्रवेश हुआ था. इस चुनाव में 28 में से 18 सीटों पर भारी जीत के साथ उसने एक छाप छोड़ी थी. 

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माणिक साहा को मुख्यमंत्री बनाया जाना भाजपा के लिए ‘चमत्कार'

वरिष्ठ पत्रकार संजीब देब ने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि क्षेत्रीय पार्टी का भविष्य उज्ज्वल होगा क्योंकि टिपरा मोथा के नेतृत्व के लिए अगले पांच साल में पार्टी के सभी विधायकों को पार्टी के भीतर संभाले रखना चुनौती होगी.''

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उन्होंने कहा कि पिछले साल बिप्लब कुमार देब की जगह माणिक साहा को मुख्यमंत्री बनाया जाना भाजपा के लिए सत्ता विरोधी लहर को कम करने के लिए ‘‘चमत्कार'' साबित हुआ. 

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वर्ष 2018 के विधानसभा चुनावों में आईपीएफटी की लोकप्रियता पर सवार भाजपा ने राज्य की राजनीति के इतिहास में पहली बार 10 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटें जीतीं और उसकी सहयोगी आईपीएफटी ने वामपंथी दलों की हार सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई थी. उसने इस चुनाव में आठ सीटों पर परचम लहराया था. 

32 सीटों पर जीत भाजपा के लिए चेतावनी भी

सांसद और भाजपा की प्रदेश इकाई के उपाध्यक्ष रेबती त्रिपुरा ने कहा, ‘‘हालांकि भाजपा ने 60 सदस्यीय विधानसभा में साधारण बहुमत हासिल किया है, लेकिन पार्टी को संगठन को मजबूत करने के लिए पहाड़ी इलाकों में कड़ी मेहनत करने की जरूरत है. 32 सीटों पर जीत भाजपा के लिए एक चेतावनी भी है. हमें अगले पांच वर्षों में जनजातीय क्षेत्र में पैठ बनाने के लिए एक टीम के रूप में काम करने की आवश्यकता है.''

बिना किसी सहयोगी के चुनाव लड़ा और रचा इतिहास

आशारामबाड़ी विधानसभा सीट से चुनाव जीतने वाले टिपरा मोथा के नेता अनिमेष देबबर्मा ने दावा किया कि पार्टी ने बिना किसी सहयोगी के चुनाव लड़ा और एक इतिहास रचा क्योंकि इससे पहले 60 सदस्यीय विधानसभा में किसी भी क्षेत्रीय पार्टी ने इतनी सीटें नहीं जीती हैं. 

उन्होंने दावा किया कि अस्सी के दशक के अंत में त्रिपुरा उपजाति युवा समिति (टीयूजेएस) ने कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ा और आठ सीटें जीतीं जबकि आईपीएफटी ने भी 2018 के विधानसभा चुनावों में इतनी ही सीटें जीतीं. 

उन्होंने कहा, ‘‘हमारा लक्ष्य था कि हम सरकार गठन में एक निर्णायक कारक बनें लेकिन भाजपा ने बहुमत हासिल कर लिया. हमने चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया और यह पूर्वोत्तर में क्षेत्रीय दलों के लिए एक प्रेरणा होगी कि कैसे एक क्षेत्रीय पार्टी चुनाव लड़ कर अच्छी संख्या में सीटें हासिल कर सकती है.''

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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