सत्ता के चकाचौंध वाले गलियारों से लेकर भारतीय राजनीति का मैदान हमेशा से ही एक ऐसा युद्धक्षेत्र रहा है, जहां अपने विरोधियों पर भारी दिखने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला हर शब्द कुल्हाडी के उस वार की तरह होता है, जो लक्ष्य साधने के बजाय कभी-कभी खुद के पांव पर पड़ जाता है. कांग्रेस पार्टी, जो आजकल अपने ही नेताओं के 'सेल्फ गोल' से हारती नजर आती है. दरअसल ये वे नेता हैं, जो पार्टी के शुभचिंतक तो जरूर हैं, लेकिन उनके बयान कांग्रेस के लिए जी का जंजाल बन गए. कांग्रेसियों के ये बयान सुनते ही विपक्षी दल मौका लपक लेते हैं और उन्हें ऐसा भुनाते हैं कि कांंग्रेस को मुंह की खानी पड़ती है. मणिशंकर अय्यर से लेकर सैम पित्रोदा तक, ये नाम कांग्रेस के लिए एक ऐसा दर्द हैं, जो चुनावी मौसम में हर बार उभर आता है. आइए, कुछ ऐसे विवादास्पद बयानों के बारे में जानें, जहां बयानबाजी ने चुनावी हार को न केवल गहरा किया, बल्कि पार्टी को लंबे समय तक बदनाम भी कर दिया.
मणिशंकर अय्यर का पहला सेल्फ गोल
यह कहानी शुरू होती है 2014 के लोकसभा चुनावों से, जब भारत की राजनीति में नरेंद्र मोदी का सूरज की तरह उदय हो रहा था. गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी, अपनी 'चायवाली' पृष्ठभूमि को एक ताकत और पहचान बना चुके थे. लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर को यह पसंद न आया. बस फिर क्या था एक रैली में अय्यर ने इसी बात पर चुटकी ली, तब उन्होंने कहा कि मोदी प्रधानमंत्री नहीं बन सकते. वे चाय बेचने आ सकते हैं, मयूर भवन में चाय स्टॉल खोल सकते हैं. यह बयान जैसे आग में घी का काम कर गया. मोदी ने इसे पकड़ लिया और 'चाय पे चर्चा' अभियान चला दिया. अचानक, चायवाला एक राजनीतिक ब्रांड बन गया, जो एलीट कांग्रेस के खिलाफ लड़ रहा था. कुछ लोगों का मानना है कि इस बयान ने मोदी को 'आम आदमी' का पर्याय बना दिया. हालांकि पार्टी ने तुरंत अय्यर से दूरी बना ली थीं. लेकिन तब तक कांग्रेस को काफी नुकसान हो चुका था.
अय्यर का दूसरा बयान
2017 के गुजरात विधानसभा चुनावों में अय्यर फिर मैदान में उतरे, जहां भारतीय जनता में एंटी-इनकंबेंसी, पाटीदार आंदोलन और दलित विद्रोह के बीच मोदी घरेलू मैदान बचाने की कोशिश में लगे थे, तभी एक बार फिर से मणिशंकर अय्यर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मोदी को फिर से अमर्यादित शब्द कहे. तब उनका ये बयान गुजराती अस्मिता को छू गया. इस बयान पर भी कांग्रेस की जमकर फजीहत हुई. तब बीजेपी ने गुजरात की जनता से 'अपमान का बदला' लेने को कहा. तब भारतीय जनता पार्टी ने 99 सीटें जीतीं, जबकि 2012 में 115 थीं, लेकिन कांग्रेस को महज 77 मिलीं. तब भी विश्लेषकों ने कहा कि अय्यर के बयान ने बीजेपी का 'गुजराती गौरव' का मुद्दा ज्यादा हावी कर दिया, जिससे वे बच निकले.
सैम पित्रोदा का 2019 का तूफान
अब कहानी का टर्न लेते हैं सैम पित्रोदा की ओर, जो राजीव गांधी के सलाहकार रहे हैं और गांधी परिवार के करीबियों में से एक है. साल 2019 के लोकसभा चुनावों में पित्रोदा ने 1984 के सिख विरोधी दंगों पर कहा, "हुआ तो हुआ. अब क्या? बताओ उन्होंने पांच साल में क्या किया?" उनके इस बयान ने सिखों के वर्षो पुराने जख्मों पर नमक छिड़क दिया. बीजेपी भला ये मौका कहां चूकने वाली थी, उसने इसे 'कांग्रेस की अहंकारी मानसिकता' का प्रतीक बना दिया. पंजाब में कांग्रेस की सहयोगी अकाली दल ने गठबंधन तोड़ा. हालांकि कांग्रेस इस बयान को निजी बताकर उनके इस बयान से किनारा करती रही, लेकिन तब तक काफी नुकसान हो चुका था.
रंगभेद से पाकिस्तान तक पित्रोदा का 2024 का डबल ब्लो
साल 2024 के लोकसभा चुनावों में पित्रोदा ने दो सेल्फ गोल दागे. पहले, उन्होंने भारत की विविधता बताते हुए कहा, "पूर्व के लोग चीनी जैसे, दक्षिण के अफ्रीकी जैसे, उत्तर के अरब जैसे दिखते हैं." बीजेपी ने इसे 'नस्लवादी' करार दिया. चुनाव के बीच में ये बयान भाजपा को 'कांग्रेस भारत को बांटना चाहती है' का नैरेटिव दे गए. कांग्रेस 99 सीटों पर रुकी, जबकि भाजपा 240 पर. जयराम रमेश ने ट्वीट किया कि ये पित्रोदा के निजी विचार हैं. अब 2025 में भी पित्रोदा रुके नहीं. फरवरी में चीन को 'दुश्मन न मानने' का बयान और सितंबर में बिहार चुनावों से पहले पाकिस्तान में 'घर जैसा महसूस हुआ' कहना.
इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के प्रमुख और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के करीबी सैम पित्रोदा के एक बयान ने फिर से सियासी तूफान खड़ा कर दिया है. पित्रोदा ने एक इंटरव्यू में कहा कि जब वे पाकिस्तान गए थे, तो उन्हें वहां घर जैसा महसूस हुआ और ऐसा नहीं लगा कि वे किसी विदेशी देश में हैं. इस बयान पर सत्तारूढ़ दलों और विपक्षी नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी है, जिससे कांग्रेस एक बार फिर विवादों में घिर गई है. अब जब बिहार के चुनाव नजदीक है तो ऐसे में उनके इस बयान का इस्तेमाल तो जरूर होगा.
बिहार में पीएम मोदी की मां को गाली, बनेगा चुनावी मुद्दा
अपनी स्वर्गीय माताजी के प्रति कांग्रेस, आरजेडी के मंच से अत्यंत अभद्र शब्द और गाली को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल ही में बिहार की महिलाओं को संबोधित करते हुए भावुक हो उठे थे. उन्होंने भोजपुरी में कहा था कि बिहार में माई का स्थान देवता-पित्तर से भी ऊपर होता है. उन्होंने इसे केवल अपनी मां का नहीं बल्कि देश की हर मां-बहन और बेटी का अपमान बताया. पीएम का यह संबोधन सुन प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप जायसवाल की आंखें छलछला आईं थी. राज्य भर में महिला बीजेपी कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया है और चार सितंबर को एनडीए ने बिहार बंद बुलाया. यानी संदेश साफ़ है कि पीएम ने इस गाली के जवाब में भावुकता का पुट देकर कुछ ही महीने दूर विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए के प्रचार की पिच तैयार कर दी है.
चौकीदार चोर बयान भी पड़ा भारी
भारतीय राजनीति में नेताओं के बयान हमेशा से जनता को एकजुट करने का हथियार रहे हैं, लेकिन कभी-कभी ये नारे उसी को चोट पहुंचाते हैं, जो इन्हें गढ़ता है. जैसे साल 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस नेता राहुल गांधी का "चौकीदार चोर है" नारा ऐसा ही घातक साबित हुआ. यह कहानी उस नारे की है, जो राफेल डील को लेकर शुरू हुआ. कांग्रेस ने दावा किया कि नरेंद्र मोदी सरकार ने 126 राफेल विमानों की डील में भ्रष्टाचार किया. राहुल गांधी ने इसे जनता तक ले जाने के लिए एक तीखा, लेकिन सरल नारा चुना: "चौकीदार चोर है". उनका यह नारा 2014 में पीएम मोदी के "मैं देश का चौकीदार हूं" के जवाब में था, जिसे उन्होंने अपनी ईमानदार छवि को मजबूत किया था. राहुल की रणनीति थी कि यह नारा भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता को लामबंद करने का काम करेगा. उन्होंने रैलियों, सोशल मीडिया, और प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसे बार-बार दोहराया. लेकिन यह नारा व्यक्तिगत हमले में तब्दील हो गया. भारत की जनता, खासकर ग्रामीण इलाकों में, जहां मोदी की छवि 'ईमानदार' और 'साधारण' थी, इसे गले से नीचे नहीं उतार पाई.