"अभी भी बहुत कुछ है मिलना बाकी...": NDTV से बोला समलैंगिक जोड़ा सयंतिका-निकिता

NDTV से बातचीत के दौरान सयंतिका मजूमदार और निकिता ने कहा कि बहुत से लोगों को लगता है कि ये कॉन्सेप्ट पश्चिमी देशों से आया है. और ये सिर्फ शहरों का ही मामला है. लेकिन ऐसा है नहीं. इस तरह का प्यार सिर्फ शहरों तक ही सीमित नहीं है.

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समलैंगिक शादी को लेकर सयंतिका और निकिता ने रखे अपने विचार

नई दिल्ली:

देश में इन दिनों समलैंगिक शादी को लेकर जोरदार बहस चल रही है. कुछ लोग इसके खिलाफ अपनी आवाज उठा रहे हैं तो एक वर्ग ऐसा ही भी है जो इसे निजी अधिकार बताकर इसके लिए विशेष कानून बनाने की मांग कर रहा है. बहरहाल, ये मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है और कोर्ट के फैसले के बाद ही स्थिति साफ हो पाएगी कि समलैंगिक शादी को लेकर आगे किस तरह के कानून बनाए जाएंगे. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई के बीच NDTV ने सयंतिका मजूमदार और निकिता (समलैंगिक युगल) से उनके अधिकारों और समाज में उनकी स्वीकार्यता को लेकर बात की. आइये जानते हैं NDTV से खास बातचीत के दौरान इन्होंने कौन से मुद्दों पर अपनी बात रखी..

ये सिर्फ शहरों का नहीं, हर जगह का मामला है

NDTV से बातचीत के दौरान सयंतिका मजूमदार और निकिता ने कहा कि बहुत से लोगों को लगता है कि ये कॉन्सेप्ट पश्चिमी देशों से आया है. और ये सिर्फ शहरों का ही मामला है. लेकिन ऐसा है नहीं. हमारा प्यार जो है या जो हमारा रिश्ता है वो सिर्फ शहरों तक ही बंधा नहीं है. हमारे जैसे लोग गांव में भी होते हैं. वो छोटे शहरों में भी होते हैं और हर जगह भी होते हैं. मैं ऐसे बहुत से जोड़ों को जानती हूं जिन्होंने अपने परिवार से लड़कर शादी तक की है लेकिन उन्हें कानूनी तौर पर मान्यता तक नहीं है. वहीं निकिता ने कहा कि प्यार कोई पिनकोड देखकर तो होता नहीं है ना. प्यार तो सब जगह है. 

अपने आप को अपनाना ही सबसे बड़ी चुनौती

निकिता ने कहा कि पहले तो अपने आप को अपनाना ही सबसे बड़ी चुनौती होती है. खुदको स्वीकारना की मैं जैसी हूं, मुझे जिससे भी प्यार है हमे वो स्वीकार करना ही बड़ी चुनौती है. हमे खुदको ये समझना ही अहम होता है कि हम हैं क्या और हम अपने लिए क्या चाहते हैं. जिन्होंने ये देखा नहीं है उन्हें ये अलग लगता है लेकिन ऐसा है नहीं. हमारा प्यार भी दूसरों की तरह ही है. 

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हमारे रिश्ते को भी वैसा ही सम्मान मिले

सयंतिका ने कहा कि बात इस चीज की नहीं है कि हमारा प्यार शहर का है या गांव का है. बात ये है कि हमारे रिश्ते को भी सेम दर्जा मिलना चाहिए जो एक समान्य कपल को मिलता है. क्योंकि भारत के नागरिक होने के नाते हमारे पास भी वही समान्य अधिकार मिलने का हक है, जो एक समान्य नागरिक के पास हैं. हम भी दूसरों की तरह ही टैक्स दे रहे हैं, हम भी समाज के बाकि लोगों की तरफ देश के विकास में सहयोग कर रहे हैं. तो हमशे वो अधिकार क्यों छीना जा रहा है. शादी कभी भी अपने मन से ही होनी चाहिए. 

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धारा 377 के खिलाफ जब कोर्ट ने निर्णय लिया तो हमे हिम्मत मिली

निकिता ने NDTV से कहा कि जब कोर्ट ने धारा 377 के खिलाफ जब निर्णय लिया तो हम जैसे लोगों को हिम्मत मिली. उसके बाद हम जैसे काफी लोगों को ये भी हिम्मत मिली की हम जैसे हैं वैसे ही खुदको अपनाएं और बगैर किसी से छिपे सबके बीच रह सकें. इसके बाद समाज में भी हमे लेकर लोगों के नजरिए में बदलाव दिखा. लोगों ने हमारे रिश्ते को स्वीकार करना भी शुरू कर दिया. अब हम सबके बीच रहते हैं. बैगर किसी डर के. ऐसा नहीं है कि शादी के कानून को लेकर पहले बदलाव नहीं किए गए हैं. पहले के मुकाबले आज तक कानून में कई बदलाव किए जा चुके हैं तो फिर सवाल ये उठता है कि हमारे लिए भी कानून में बदलाव क्यों ना किए जाएं. कानून में बदलाव होता है तो समाज भी हमे अलग तरह से देखता है और हमे स्वीकार कर रहा है. कानून में बदलाव होगा तो ही समाज में भी बदलाव आएगा. 

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