देश कोरोना से उबर रहा, महंगाई और बेरोजगारी आम लोगों को जीने नहीं दे रही

मिडिल क्लास पर बेरोजगारी और महंगाई की दोहरी मार, 'बहुत हुई महंगाई की मार' का नारा देकर सत्ता में आई मोदी सरकार महंगाई पर कोई लगाम क्यों नहीं लगा पा रही?

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प्रतीकात्मक फोटो.
Quick Take
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लोगों के पास बच्चो की स्कूल फीस देने के लिए भी पैसा नहीं
बेरोजगारी से परेशान लोग आत्महत्या कर रहे
मजदूरों को न दिहाड़ी मिल रही और न पेट भर खाना
नई दिल्ली:

देश में कोरोना (Coronavirus) की मार के बाद आम आदमीं बेरोज़गारी (Unemployment) और महंगाई (Inflation) की दोहरी मार झेल रहा है. रसोई गैस के दाम पिछले 6 महीने 140 रुपये प्रति सिलेंडर बढ़ चुके हैं. पेट्रोल की क़ीमत 100 रुपये के ऊपर है, खाने का तेल 200 रुपये लीटर है. ऐसे में आम आदमी बीजेपी सरकार से पूछ रहा है कि बहुत हुई महंगाई की मार का नारा देकर सत्ता में आई मोदी सरकार महंगाई पर कोई लगाम क्यों नहीं लगा पा रही? 

53 साल की रीना कार के आंसू हर उस आम आदमी के आंसू हैं जो इस वक्त बेरोजगारी और महंगाई के बीच पिस रहा है. रीना कार के पति का पिछले महीने कोविड संबंधी जटिलता के चलते देहांत हो गया. जिंदगी भर ग्रहणी रहीं रीना को समझ नहीं आ रहा कि वे घर कैसे चलाएं.. हालात यह है कि उनके पास इंजीनियरिंग कर रही बेटी की फीस देने के लिए भी पैसा नहीं है.

रीना कार ने कहा कि ''ठीक एक महीने पहले मेरे पति की मौत हो गई. मुझे नहीं पता कि घर कैसे चलाऊं..दो जवान बेटियां, फीस भरने के पैसे नहीं हैं. AC है पर इस गर्मी में चलाते नहीं कि बिजली का बिल आएगा. ऊपर से महंगाई.. तेल दो सौ, हर चीज़ महंगी, खाना भी एक वक्त बना रही हूं.''

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कोरोना के चलते करोड़ों लोग बेरोजगार हुए हैं, सैकड़ों हर रोज आत्महत्या कर रहे हैं. पिछले महीने की 18 तारीख को बेरोजगार 32 साल के राकेश दास ने नोएडा के एक होटल में नाइट्रोजन गैस सूंघकर आत्महत्या कर ली. सुसाइड नोट में राकेश दास ने लिखा है कि ''नौकरी जाने के बाद वे कर्ज से परेशान हो चुका हूं. पांच लाख रुपये से ज्यादा का कर्जा हो चुका है और इसे चुकाने के लिए कोई नौकरी भी नहीं है..इसके चलते आत्महत्या कर रहा हूं.''

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नोएडा के एडीसीपी रणविजय सिंह ने कहा कि ''राकेश दास रिलायंस जिओ कंपनी में काम करता था. पांच माह पूर्व उसकी नौकरी छूट गई थी, इस कारण उसे आर्थिक तंगी हो गई थी. उसकी पत्नी ने दो महीने पहले ही बच्चे को जन्म दिया था और इस प्रक्रिया में भी करीब डेढ़ लाख रुपये खर्च हो गए थे.''

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सोचिए, अगर मिडिल क्लॉस का ये हाल है तो गरीबों का इस कमरतोड़ महंगाई में क्या हो रहा होगा. दिल्ली की इस भीषण गर्मी में हर लेबर चौक पर मजदूर अपने औजार लिए बैठे हैं.. न दिहाड़ी मिल रही और न पेट भर खाना. 50 साल के मजदूर राजकेश्वर ने तो अपने बच्चे का स्कूल से नाम कटवा दिया है. वे कहते हैं कि जब खाने का ही पैसा नहीं है तो स्कूल की फीस कहां से भरेंगे? राजकेश्वर ने कहा कि ''हर चीज महंगी है. बच्चे का नाम कटवा दिए, पहली में था. यहां खाने का पैसा तो कमा नहीं पा रहे तो पढ़ाने का पैसा कहां से लाएं.''

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देश तो कोरोना से उबर रहा है लेकिन महंगाई और बेरोजगारी आम आदमी को जीने नहीं दे रही. देश का मिडिल क्लास ईमानदारी से टैक्स भरता है, बिजली का बिल भरता है, आपदा में मदद के लिए भी आगे आता है लेकिन सरकार से मिडिल क्लॉस को न कोई सब्सिडी मिलती है न कोई राहत पैकेज. और मिडिल क्लास को ये चाहिए भी नहीं. अपनी मेहनत से, आत्मसम्मान से जीने वाला मिडिल क्लास चाहता है महंगाई से राहत और रोज़गार.

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