आपराधिक मामलों (Criminal Cases) को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अहम फैसला किया है. कोर्ट ने गिरफ्तारी के बाद हाउस अरेस्ट (House Arrest) को भी मान्यता दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी के बाद न्यायिक हिरासत या पुलिस हिरासत के साथ-साथ हाउस अरेस्ट भी किया जा सकता है. हाउस अरेस्ट सीआरपीसी की धारा-167 के तहत आता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ''हम मानते हैं कि अदालतें धारा 167 के तहत उचित मामलों में हाउस अरेस्ट का आदेश दे सकती हैं. इसके लिए उम्र, स्वास्थ्य स्थिति और अभियुक्त का इतिहास, अपराध की प्रकृति, हिरासत के अन्य रूपों की आवश्यकता और हाउस अरेस्ट की शर्तों को लागू करने की क्षमता जैसे मानदंडों को इंगित कर सकते हैं.''
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतें इसे योग्य और उपयुक्त मामलों में देने के लिए स्वतंत्र होंगी. सजा के बाद के मामलों के संबंध में, हम इसे विधायिका के लिए खुला छोड़ देंगे. हमने जेलों में भीड़भाड़ की समस्याओं और जेलों को बनाए रखने में राज्य की लागत की ओर इशारा किया है.
जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस के एम जोसेफ की पीठ ने गौतम नवलखा के मामले में ये आदेश जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाउस अरेस्ट का मतलब न्यायिक हिरासत ही है. आरोपी की उम्र, इतिहास, स्वास्थ्य, अपराध की प्रकृति पर अदालतें हाउस अरेस्ट का फैसला ले सकती हैं.
गौतम नवलखा की जमानत याचिका खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव मामले में मंगलवार को एक्टिविस्ट गौतम नवलखा की जमानत याचिका खारिज कर दी है. जिसके बाद अब बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रहेगा. हाईकोर्ट ने कहा था कि 2018 में घर में नजरबंदी के दौरान बिताए गए 34 दिन डिफॉल्ट जमानत के लिए नहीं गिने जा सकते हैं. बताते चलें कि 26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने नवलखा और NIA की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था. साथ ही सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने NIA को नोटिस जारी किया था. नवलखा ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है. हाईकोर्ट ने डिफॉल्ट जमानत देने से इनकार किया था.
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