अदालतों में सरकारी अफसरों को तलब करने को लेकर व्यापक गाइडलाइन तैयार करेगा सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल SoP में कहा गया है कि इसे सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और अन्य सभी अदालतों के समक्ष सरकार से संबंधित मामलों की सभी अदालती कार्रवाई पर लागू किया जाना चाहिए, जो अपने संबंधित अपीलीय और/या मूल क्षेत्राधिकार के तहत या अदालत की अवमानना से संबंधित कार्यवाही की सुनवाई कर रहे हैं.

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सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली:

अदालतों में सरकारी अफसरों को तलब करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट बड़ा कदम उठा रही है. सुप्रीम कोर्ट इसको लेकर व्यापक गाइडलाइन तैयार करेगा. अफसरों के अदालत में पेश होने के लिए ड्रेस कोड पर भी दिशा-निर्देश जारी होंगे. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के ड्राफ्ट SoP पर फैसला सुरक्षित रखा है. CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि SoP के कुछ हिस्से ऐसे हैं, जैसे सरकार हमें बता रही है कि न्यायिक समीक्षा कैसे की जानी चाहिए.

चीफ जस्टिस ने कहा कि हम इस मुद्दे पर व्यापक दिशा-निर्देश तैयार करेंगे. वीडियो कांफ्रेंसिंग आदि से भी पेशी हो सकती है. उदाहरण के लिए अगर मामला लंबित है तो अफसर को बुलाने की जरूरत नहीं है. हलफनामा दाखिल किया जा सकता है. लेकिन अगर फैसला आ गया है तो ये अवमानना के दायरे में आ सकता है.

सॉलिसिटर SG तुषार मेहता ने कहा कि सरकार की ये मंशा कभी नहीं रही है. कुछ बिंदुओं पर हम भी जोर नहीं देंगे. यदि फ़ाइल से निपटने वाला व्यक्ति आता है तो यह हमेशा अधिक प्रभावी होता है. ऐसे में मुख्य सचिव आदि बड़े अफसरों को तलब करने की जरूरत नहीं है. इससे दूसरे काम सब रुक जाते हैं.

दरअसल केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में SoP के लिए सुझाव दाखिल किए हैं. केंद्र ने कहा है कि इसका लक्ष्य न्यायपालिका और सरकार संबंधों में सुधार लाना है. SC, HC, ट्रायल कोर्ट के लिए ड्राफ्ट SoP है. सरकारी अधिकारियों को केवल असाधारण मामलों में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के लिए कहा जाए. अधिकारियों को तलब करते समय अदालतें संयम बरतें. अधिकारियों को वीडियो कॉंफ्रेसिंग के माध्यम से पेश होने की अनुमति दी जाए.

ड्राफ्ट SoP में कहा गया है :-

  • सरकारी अधिकारियों को केवल असाधारण मामलों में ही व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के लिए कहा जाना चाहिए.
  • अदालतों को सरकारी अधिकारियों को तलब करते समय आवश्यक संयम बरतना चाहिए.
  • अधिकारियों को वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से पेश होने की अनुमति दी जाए.
  • सरकार द्वारा पारित आदेश से संबंधित किसी भी मामले की सुनवाई आदेश की वैधता निर्धारित करने तक सीमित होनी चाहिए.
  • सरकारी वकीलों द्वारा अदालत में दिए गए बयानों के लिए कोई अवमानना मामला शुरू नहीं किया जाना चाहिए.
  • जजों को अपने ही आदेश के विरुद्ध अवमानना की कार्रवाई नहीं करनी चाहिए.
  • नीतिगत मामलों से जुड़े मामलों को आवश्यक कार्रवाई के लिए सरकार के पास भेजा जाना चाहिए.
  • सरकार को अदालत के आदेशों का पालन करने के लिए उचित समय दिया जाना चाहिए.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा केंद्र की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल SoP में कहा गया है कि इसे सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और अन्य सभी अदालतों के समक्ष सरकार से संबंधित मामलों की सभी अदालती कार्रवाई पर लागू किया जाना चाहिए, जो अपने संबंधित अपीलीय और/या मूल क्षेत्राधिकार के तहत या अदालत की अवमानना से संबंधित कार्यवाही की सुनवाई कर रहे हैं.

इस तरह की SoP तब महसूस की गई, जब अप्रैल में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जजों के लिए सेवानिवृत्ति के बाद के कुछ लाभ प्रदान करने के उसके आदेश का पालन करने में विफल रहने के लिए दो अधिकारियों को हिरासत में लेने का आदेश दिया था. 

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हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पर रोक लगा दी, लेकिन उत्तर प्रदेश के वित्त सचिव एसएमए रिज़वी और विशेष सचिव (वित्त) सरयू प्रसाद मिश्रा को पहले ही हिरासत में ले लिया गया था.
 

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