नए संसद भवन के लिए सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आज

सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच सुनाएगी फैसला

विज्ञापन
Read Time: 26 mins
प्रस्तावित नए संसद भवन की डिजाइन.
नई दिल्ली:

सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट (Central Vista project) पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का फैसला कल आएगा. जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच सुबह 10.30 बजे फैसला सुनाएगी. दस दिसंबर को प्रधानमंत्री ने नए संसद भवन (Parliament Building) का शिलान्यास किया था. सात दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उसे शिलान्यास करने पर कोई आपत्ति नहीं है लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक कोई निर्माण, तोड़फोड़ या पेड़ गिराने का काम ना हो. सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल विस्टा की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा है.

सुप्रीम कोर्ट ने पांच नवंबर को 20 हजार करोड़ के सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था. सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि ये प्रोजेक्ट कानून के मुताबिक है या नहीं, प्रोजेक्ट पर रोक लगाई जाए या नहीं. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि 20 हजार करोड़ रुपये के सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पैसे की बर्बादी नहीं है, बल्कि इससे पैसों की बचत होगी. इस प्रोजेक्ट से सालाना करीब एक हजार करोड़ रुपये की बचत होगी, जो फिलहाल दस इमारतों में चल रहे मंत्रालयों के किराये पर खर्च होते हैं. साथ ही इस प्रोजेक्ट से मंत्रालयों के बीच समन्वय में भी सुधार होगा. 

जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वर्तमान संसद भवन गंभीर आग और जगह की भारी कमी का सामना कर रहा था. 
उन्होंने कहा कि प्रोजेक्ट के तहत हैरिटेज बिल्डिंग को संरक्षित किया जाएगा. मेहता ने कहा कि मौजूदा संसद भवन 1927 में बना था जिसका उद्देश्य विधान परिषद के भवन का निर्माण था न कि दो सदन का था.

Advertisement

उन्होंने कहा कि जब लोकसभा और राज्यसभा का संयुक्त सत्र आयोजित होता है, तो सदस्य प्लास्टिक की कुर्सियों पर बैठते हैं. इससे सदन की गरिमा कम होती है. केंद्र सरकार ने सेंट्रल विस्टा के पुनर्विकास में पर्यावरण संबंधी चिंताओं का पूरा ध्यान रखा है.

Advertisement

मेहता ने कहा कि नए संसद भवन की समय सीमा 2022 है. उन्होंने कहा कि संसद का स्वामित्व लोकसभा सचिवालय के पास रहेगा. कई लोकसभा अध्यक्षों के अलावा अन्य लोगों ने यह संकेत दिया था कि वर्तमान संरचना अपर्याप्त है. उन्होंने कहा कि एक अलग स्वतंत्र अध्ययन की आवश्यकता नहीं है. मेहता ने यह भी कहा कि नई संसद होनी चाहिए या नहीं, यह एक नीतिगत निर्णय है, जो सरकार को लेना होता है.

Advertisement

केंद्र की प्रस्तावित सेंट्रल विस्टा योजना को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर ली है. अदालत ने कहा था कि फिलहाल प्रोजेक्ट पर काम नहीं रुकेगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्राधिकरण को कानून के मुताबिक काम करने से कैसे रोक सकते हैं. अगर अदालत के मामले की सुनवाई के दौरान सरकार प्रोजेक्ट पर काम जारी रखती है तो ये उसके जोखिम और कीमत पर है.  

Advertisement

दरअसल सुप्रीम कोर्ट में केंद्र द्वारा विस्टा के पुनर्विकास योजना के बारे में भूमि उपयोग में बदलाव को अधिसूचित करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है. केंद्र की ये योजना 20 हजार करोड़ रुपये की है. 20 मार्च, 2020 को केंद्र ने संसद, राष्ट्रपति भवन, इंडिया गेट, नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक जैसी संरचनाओं द्वारा चिह्नित लुटियंस दिल्ली के केंद्र में लगभग 86 एकड़ भूमि से संबंधित भूमि उपयोग में बदलाव को अधिसूचित किया.

आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी मार्च 2020 की अधिसूचना को रद्द करने के लिए अदालत से आग्रह करते हुए याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह निर्णय अनुच्छेद 21 के तहत एक नागरिक के जीने के अधिकार के विस्तारित संस्करण का उल्लंघन है. इसे एक क्रूर कदम बताते हुए याचिकाकर्ता सूरी का दावा है कि यह लोगों को अत्यधिक क़ीमती खुली जमीन और ग्रीन इलाके का आनंद लेने से वंचित करेगा.

सेंट्रल विस्टा में संसद भवन, राष्ट्रपति भवन, उत्तर और दक्षिण ब्लॉक की इमारतें, जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों और इंडिया गेट जैसी प्रतिष्ठित इमारतें हैं. केंद्र सरकार एक नया संसद भवन, एक नया आवासीय परिसर बनाकर उसका पुनर्विकास करने का प्रस्ताव कर रही है जिसमें प्रधान मंत्री और उपराष्ट्रपति के अलावा कई नए कार्यालय भवन होंगे.

दिल्ली हाईकोर्ट में राजीव शकधर की एकल पीठ ने 11 फरवरी को आदेश दिया था कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को भूमि उपयोग में प्रस्तावित परिवर्तनों को सूचित करने से पहले उच्च न्यायालय का रुख करना चाहिए. आदेश दो याचिकाओं में पारित किया गया, एक राजीव सूरी द्वारा दायर किया गया और दूसरा लेफ्टिनेंट कर्नल अनुज श्रीवास्तव द्वारा.

सूरी ने सरकार द्वारा प्रस्तावित परिवर्तनों को इस आधार पर चुनौती दी कि इसमें भूमि उपयोग में बदलाव और जनसंख्या घनत्व के मानक शामिल हैं और इस तरह के बदलाव लाने के लिए डीडीए अपेक्षित शक्ति के साथ निहित नहीं है. हालांकि बाद में डिवीजन बेंच ने आदेश पर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले को बड़ा सार्वजनिक हित देखते हुए अपने पास सुनवाई के लिए रख लिया.

Featured Video Of The Day
Jhansi Medical College Fire: हादसे के बाद अपने बच्चे की तलाश में दर-दर भटक रही ये मां
Topics mentioned in this article