कोर्ट जिस दिन जमानत पर रिहाई के आदेश दे, उसी दिन पूरी होनी चाहिए सारी प्रक्रिया : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को साफ किया है कि कि जिस दिन जमानत (Bail) पर रिहाई का आदेश अदालत दे, उसी दिन जमानत की कार्यवाही पूरी हो जानी चाहिए.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा संबंधित जेल रिहाई के कागजात उसी दिन कैदी को दिये जाने चाहिये. 
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को साफ किया है कि कि जिस दिन जमानत (Bail) पर रिहाई का आदेश अदालत दे, उसी दिन जमानत की कार्यवाही पूरी हो जानी चाहिए. उसी दिन जमानत के आदेश संबंधी कागजात संबंधित जेल भी भेजे जाएं. संबंधित जेल रिहाई के कागजात उसी दिन कैदी को दें. यह आदेश जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस एस रवींद्र भट  और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने दिया है. आपराधिक ट्रायल में खामियों को लेकर स्वत: संज्ञान मामले में ये आदेश जारी किए गए हैं.

सुनवाई करने वाली पीठ ने कहा कि जमानत मंजूर करने से संबंधित नियमों के तहत गैर जमानती मामलों में साधारणतया जमानत की अर्जी पर पहली सुनवाई के तीन से सात दिनों में अदालत को हां या ना का फैसला ले लेना चाहिए. अगर इस अवधि में जमानत अर्जी का निपटारा न हो पाए तो अदालत को आदेश में समुचित कारण बताने चाहिए कि देरी की वजह क्या है? आरोपी को आदेश की प्रति, जमानत अर्जी का जवाब और पुलिस की स्टेटस रिपोर्ट भी आदेश जारी करते समय मौजूद रहनी चाहिए .

इस मामले में पीठ ने एमिकस क्यूरी सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा की सिफारिशों में सीआरपीसी के नियम यानी धारा 17 को और स्पष्ट करने की गुजारिश पर ये व्यवस्था दी. लूथरा ने कई मामलों के हवाले से कोर्ट को बताया कि कोर्ट का जमानत आदेश घोषित होने के बावजूद अक्सर जेल प्रशासन तक इसकी जानकारी समय से नहीं पहुंच पाती. जेल प्रशासन को पता ही नहीं होता कि विचाराधीन कैदी को जमानत मिली भी है या नहीं. कैदी  तो श्योरटी आदि भरने के चक्कर में रहते है और समय निकल जाता है. जब ये सब कुछ खानापूर्ती होती है तब रिहाई का आदेश जेल पहुंच पाता है.

बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने पिछले बरस 20 अप्रैल को सभी हाई कोर्ट को निर्देश दिया था कि तीनों एमिकस सीनियर एडवोकेट आर बसंत, सिद्धार्थ लूथरा और के परमेश्वर के बनाए अपराधिक प्रक्रिया कानून के संशोधित मसौदे पर छह महीने में अमल शुरू करें. इस मसौदे को सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अप्रैल में ही मंजूरी दे दी थी. लेकिन कई हाईकोर्ट ने अब तक इस दिशा में कोई कारगर और ठोस पहल नहीं की. अदालत ने कहा था कि इसमें राज्य सरकारों की भी सकारात्मक इच्छाशक्ति के साथ सक्रिय भागीदारी जरूरी है.

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