सुप्रीम कोर्ट ने मप्र सरकार में छह महिला न्यायाधीशों की सेवाएं समाप्त करने का लिया संज्ञान

शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किये गये इस मामले की कार्यालय रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश राज्य न्यायिक सेवा के तीन पूर्व सिविल न्यायाधीशों, संवर्ग-2 (जूनियर डिवीजन) ने शीर्ष अदालत को अर्जी भेजी है. उन्होंने कहा कि बर्खास्तगी इस तथ्य के बावजूद हुई कि कोविड-19 के प्रकोप के कारण उनके काम का मात्रात्मक मूल्यांकन नहीं किया जा सका.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने असंतोषजनक प्रदर्शन के कारण मध्य प्रदेश सरकार द्वारा छह महिला सिविल न्यायाधीशों की सेवाएं समाप्त कर दिये जाने का शुक्रवार को संज्ञान लिया और संबंधित उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी करके जवाब तलब किया. न्यायालय ने बर्खास्त न्यायिक अधिकारियों को भी नोटिस जारी किये और उन्हें अपना पक्ष रिकॉर्ड पर रखने को कहा.

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने मामले का संज्ञान लिया है. इस मामले को रिट याचिका मानने का निर्णय लिया गया है.

पीठ ने इस मामले में सहायता के लिए अधिवक्ता गौरव अग्रवाल को न्यायमित्र नियुक्त किया है. अग्रवाल ने कहा कि पिछले साल छह न्यायिक अधिकारियों को बर्खास्त किया गया था, जिनमें से तीन ने शीर्ष अदालत को अपनी अर्जी भेजी है, लेकिन इन्होंने अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर की है, जो अभी लंबित हैं.

उन्होंने कहा कि तीन पूर्व न्यायिक अधिकारियों ने पिछले वर्ष शीर्ष अदालत में रिट याचिका दायर की थी, लेकिन बाद में उन्होंने उसे वापस ले लिया था. न्यायमूर्ति करोल ने कहा कि चूंकि यह मामला उच्च न्यायालय में लंबित है तो सबसे पहले यह निर्धारण करना होगा कि क्या शीर्ष अदालत इसकी सुनवाई कर सकती है.

छह पूर्व न्यायिक अधिकारियों में से एक ने मामले में पक्षकार बनाये जाने की याचिका दायर की है. इनकी ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी.एस. पटवालिया ने कहा कि चूंकि शीर्ष अदालत ने मामले का संज्ञान लिया है, इसलिए उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को एक नोटिस जारी किया जाना आवश्यक है.

अग्रवाल ने दलील दी कि जब शीर्ष अदालत में दायर रिट याचिका वापस ले ली गयी थी, तब तीन पीड़ित अधिकारियों को इस बात की जानकारी नहीं थी कि उच्चतम न्यायालय ने इस मामले का संज्ञान पहले ही ले लिया था. उन्होंने कहा कि इन पीड़ित अधिकारियों को भी नोटिस जारी किया जाना चाहिए ताकि उनका पक्ष जाना जा सके और उनके पास उपलब्ध दस्तावेज या सामग्री रिकॉर्ड पर लाया जा सके.

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शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किये गये इस मामले की कार्यालय रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश राज्य न्यायिक सेवा के तीन पूर्व सिविल न्यायाधीशों, संवर्ग-2 (जूनियर डिवीजन) ने शीर्ष अदालत को अर्जी भेजी है. उन्होंने कहा कि बर्खास्तगी इस तथ्य के बावजूद हुई कि कोविड-19 के प्रकोप के कारण उनके काम का मात्रात्मक मूल्यांकन नहीं किया जा सका.

कार्यालय रिपोर्ट में आगे कहा गया है, ‘‘अर्जी में कहा गया है कि इन न्यायिक अधिकारियों को तीन अन्य महिला (न्यायिक) अधिकारियों के साथ मध्य प्रदेश न्यायिक सेवाओं में नियुक्त किया गया था. आरोप है कि उन्हें निर्धारित मानकों के अनुरूप याचिकाओं का निपटारा नहीं होने के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है.'

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राज्य के कानून विभाग द्वारा एक प्रशासनिक समिति और एक पूर्ण अदालत की बैठक में परिवीक्षा अवधि के दौरान उनके प्रदर्शन को असंतोषजनक पाए जाने के बाद जून 2023 में बर्खास्तगी आदेश पारित किए गए थे.

पूर्व न्यायाधीशों में से एक ने मामले में पक्षकार बनाये जाने की अर्जी अधिवक्ता चारू माथुर के माध्यम से दायर की है, जिसमें कहा गया है कि चार साल का बेदाग सेवा रिकॉर्ड होने और किसी भी प्रतिकूल टिप्पणी का सामना नहीं करने के बावजूद, उन्हें कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना बर्खास्त कर दिया गया.

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उन्होंने आरोप लगाया कि सेवा से उनकी बर्खास्तगी संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता का अधिकार) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.

अपनी अर्जी में उन्होंने कहा है यदि कार्य के मात्रात्मक मूल्यांकन में उनके मातृत्व और बाल देखभाल अवकाश की अवधि को भी शामिल किया जाता है तो यह उनके साथ गंभीर अन्याय होगा.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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