- सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम समुदाय में पति द्वारा वकील द्वारा तलाक भेजने की प्रथा पर कड़ा रुख अपनाया और सवाल उठाए
- महिला पत्रकार के मामले में पति ने बिना हस्ताक्षर के तलाक नोटिस वकील के जरिए भेजा और दूसरी शादी कर ली
- कोर्ट ने इस प्रथा को आधुनिक समाज की गरिमा के खिलाफ बताते हुए महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की आवश्यकता जताई
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मुस्लिम समुदाय में पति द्वारा स्वयं उपस्थित हुए बिना वकील के माध्यम से पत्नी को तलाक भेजने की बढ़ती प्रथा 'तलाक-ए-हसन' पर कड़ा रुख अपनाया. कोर्ट ने पूछा कि क्या एक सभ्य समाज इस प्रथा को मान सकता है? सुप्रीम कोर्ट एक मुस्लिम महिला पत्रकार का मामला सुन रहा था, जो पहले एक टीवी चैनल में काम करती थीं. उन्होंने कोर्ट को बताया कि उनके पति, जो स्वयं वकील हैं, ने उन्हें 11 पन्नों का तलाक नोटिस वकील से भिजवाया, जिसमें पति के हस्ताक्षर तक नहीं थे. नोटिस वकील ने स्वयं 'तलाक' बोलकर भेजा था. इस दौरान पति दूसरी शादी कर चुका है, जबकि महिला अपने 5 वर्षीय बच्चे के साथ बिना वैध तलाक के कई कानूनी और सामाजिक मुश्किलों का सामना कर रही है. बच्चे का स्कूल एडमिशन, पासपोर्ट और अपनी वैवाहिक स्थिति को लेकर गंभीर दिक्कतें झेल रही है.
क्या एक सभ्य समाज इस प्रथा को मान सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं को वकील के ज़रिए दिए जा रहे तलाक पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि आधुनिक समाज में महिलाओं की गरिमा के साथ इस तरह का व्यवहार कैसे जारी रह सकता है? जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एन.के. सिंह की पीठ ने तलाक की इस पद्धति पर गंभीर सवाल उठाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'क्या यह कोई मान्य प्रथा हो सकती है? नए-नए आविष्कार क्यों किए जा रहे हैं? पति में इतना अहंकार है कि वह तलाक की बात भी पत्नी से सीधे कहने में सक्षम नहीं? यह महिला तो पत्रकार है और लड़ रही है, लेकिन गरीब महिलाओं का क्या होगा? क्या एक सभ्य समाज इस प्रथा को मान सकता है?' कोर्ट ने महिला की हिम्मत की सराहना की और कहा कि हम इस महिला को सलाम करते हैं, जो अपने अधिकार के लिए संघर्ष कर रही है.
क्या अहंकार इतना है कि तलाक भी खुद नहीं दे सकता?
पति की ओर से वरिष्ठ वकील एम.आर. शमशाद ने कहा, 'इस्लाम में यह आम प्रथा है. इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने पलटकर पूछा- कैसे यह आम प्रथा हो सकती है कि तलाक पति की बजाय कोई और दे? अगर धार्मिक प्रथा का पालन करना है, तो पूरी प्रक्रिया वैसी होनी चाहिए जैसी निर्धारित है. अगर कल पति अपने एडवोकेट को ही नकार दे, तब क्या होगा? तलाक की मान्यता पर सवाल उठाते हुए कोर्ट ने यह भी पूछा कि वकील को महिला का पता कैसे मिला, जिस पर जवाब मिला कि पति ने बताया.
जस्टिस सूर्यकांत ने सवाल किया- तो पति ने खुद सीधे पत्र क्यों नहीं लिखा? क्या अहंकार इतना है कि तलाक भी खुद नहीं दे सकता? कोर्ट ने कहा कि यदि इस प्रकार के तलाक को मान्यता मिलती रही, तो किसी भी महिला की वैवाहिक स्थिति संदेह में पड़ सकती है. अगर एक गरीब महिला गलती से दोबारा शादी कर ले, तो क्या उसे ‘पोलिएंड्री' (एक समय में एक से अधिक पुरुषों से विवाह करने की प्रथा) के आरोप झेलने होंगे? कोर्ट ने कहा कि यदि पति तलाक-ए-हसन के तहत तलाक देना चाहता है, तो पूरी धार्मिक प्रक्रिया का ठीक-ठीक पालन होना अनिवार्य है.
महिला पक्ष ने बताया कि पति की गलती बताने के बाद भी उसने अहंकार वश कोई सुधार नहीं किया, उल्टा दूसरी शादी कर ली. यह सुन सुप्रीम कोर्ट ने कठोर टिप्पणी करते हुए कहा, 'उसे बुलाएंगे और बिना शर्त जो महिला चाहती है, वह प्रदान करेंगे.














