उद्योगपति जिसने मुआवजा लिया, उसे जमीन वापसी का हक नहीं... सिंगूर जमीन मामले पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

2016 में सुप्रीम कोर्ट ने सिंगूर परियोजना की अधिग्रहण प्रक्रिया को अवैध घोषित करते हुए किसानों को जमीन लौटाने का निर्देश दिया था. इसके तुरंत बाद, शांति सेरामिक्स ने भी अपनी जमीन की वापसी की मांग की, जिसे पश्चिम बंगाल सरकार ने खारिज कर दिया.

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  • सुप्रीम कोर्ट ने सिंगूर जमीन मामले में मुआवज़ा स्वीकार करने वाले उद्योगपति को जमीन वापसी का अधिकार नहीं दिया
  • शांति सेरामिक्स ने मुआवजा स्वीकार कर लिया था पर बाद में जमीन लौटाने की मांग की, जिसे राज्य सरकार ने खारिज किया
  • हाईकोर्ट ने जमीन लौटाने का आदेश दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश पलट कर राज्य सरकार की अपील स्वीकार की
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नई दिल्ली:

सिंगूर जमीन मामले में SC का अहम फैसला - किसान और उद्योगपति के बीच समानता नहीं की जा सकती,  मुआवज़ा लेने वाले उद्योगपति को ज़मीन वापसी का हक नहीं 

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसले में कहा कि वे उद्योगपति या व्यावसायिक संस्थान, जिन्होंने सिंगूर में टाटा की प्रस्तावित नैनो कार परियोजना के लिए अपनी जमीन के अधिग्रहण पर मुआवज़ा स्वीकार कर लिया था, अब किसानों के साथ “मुफ़्त सवारी” नहीं कर सकते जिन्हें अदालत ने 2016 में उनकी जमीन वापस लौटाने का आदेश दिया था.

यह मामला शांति सेरामिक्स प्राइवेट लिमिटेड से जुड़ा है, जिसने 2001 में जमीन खरीदी थी और वहां सिरेमिक इंसुलेटर निर्माण इकाई स्थापित की थी. जुलाई 2006 में भूमि अधिग्रहण अधिकारी (LAC) ने सिंगूर परियोजना के लिए अधिग्रहण प्रक्रिया शुरू की और कंपनी ने ₹14.54 करोड़ का मुआवज़ा जमीन और संरचना के एवज में बिना किसी आपत्ति के स्वीकार कर लिया.

2016 में सुप्रीम कोर्ट ने सिंगूर परियोजना की अधिग्रहण प्रक्रिया को अवैध घोषित करते हुए किसानों को जमीन लौटाने का निर्देश दिया था. इसके तुरंत बाद, शांति सेरामिक्स ने भी अपनी जमीन की वापसी की मांग की, जिसे पश्चिम बंगाल सरकार ने खारिज कर दिया. कंपनी को हालांकि कलकत्ता हाईकोर्ट की एकल पीठ और डिवीजन बेंच से राहत मिल गई, जिन्होंने कहा कि जब अधिग्रहण रद्द हो गया है, तो सभी जमीनें मूल मालिकों को लौटाई जानी चाहिए. लेकिन अब जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने राज्य सरकार की अपील स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट के आदेश को पलट दिया है.

अदालत ने कहा कि किसान और उद्योगपति के बीच समानता नहीं की जा सकती. सजस्टिस सूर्यकांत ने फैसले में लिखा, वंचित तबकों को निर्धनता से बचाने के लिए जो राहत दी गई थी, उसे वित्तीय रूप से सक्षम औद्योगिक संस्थानों तक नहीं बढ़ाया जा सकता. सिंगूर भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाली जनहित याचिका का उद्देश्य उन किसानों की आजीविका बचाना था जिनका जीवन उस अधिग्रहण से उजड़ने वाला था.

इसे शांति सेरामिक्स जैसे व्यावसायिक संस्थानों तक बढ़ाना उस राहत की भावना के विपरीत होगा. अदालत ने कहा कि जब सिंगूर अधिग्रहण को लेकर किसान अदालत पहुंचे, तो वे “प्रतिनिधिक याचिका” के तहत सभी कृषकों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. लेकिन शांति सेरामिक्स जैसे उद्योगपति, जिनके पास कानूनी और आर्थिक साधन मौजूद थे, ने उस समय कोई कानूनी चुनौती नहीं दी और एक दशक से अधिक समय तक मौन रहे.

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जिस पक्ष ने मुआवजा लेकर अधिग्रहण को चुनौती नहीं दी और वर्षों तक निष्क्रिय रहा, वह अब दूसरों द्वारा प्राप्त राहत का लाभ नहीं उठा सकता. वाणिज्यिक स्थिति, राहत का स्वरूप और बीच के वर्षों में हुई व्यावहारिक परिस्थितियां,  ये सभी इस दावे को अस्वीकार्य बनाती हैं. अदालत ने स्पष्ट किया कि अब संबंधित भूमि राज्य सरकार के स्वामित्व में ही रहेगी.

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