आंध्र प्रदेश में आरोपों की जांच के फैसले पर रोक लगाने का हाईकोर्ट का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने किया रद्द

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रथम दृष्टया यह मानते हुए कि आरोप राजनीति से प्रेरित हैं, जांच पर रोक लगी दी थी

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सुप्रीम कोर्ट.
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के उन अंतरिम आदेशों को रद्द कर दिया जिसमें अमरावती को राज्य की राजधानी के रूप में स्थापित करने के लिए तेलुगू देशम पार्टी (TDP) की पिछली सरकार के दौरान भ्रष्टाचार और गड़बड़ी के आरोपों की जांच करने के राज्य सरकार के फैसले पर रोक लगा दी गई थी. हाईकोर्ट ने प्रथम दृष्टया यह मानते हुए कि वे राजनीति से प्रेरित थे, जांच को स्टे कर दिया था. 

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि हमारी प्रथम दृष्टया यह राय है कि दो शासनादेशों के कारण कार्यवाही पर रोक लगाते हुए हाईकोर्ट द्वारा दिए गए कुछ तर्क उचित नहीं हैं. विशेष रूप से, हाईकोर्ट का यह मानना कि नई सरकार को पिछली सरकार के फैसलों को पूरी तरह से पलटने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.

वाईएसआर जगन मोहन रेड्डी सरकार द्वारा दायर अपील पर कार्रवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट को अंतरिम रोक नहीं लगानी चाहिए थी. इसकी आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि पूरा मामला प्री मैच्योर था. इस कारण हम हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हैं. 

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को तीन महीने की अवधि के भीतर रिट याचिका को अंतिम रूप से निपटाने का निर्देश दिया है. पीठ ने यह स्पष्ट किया कि हमने मामले के गुण-दोष पर कुछ भी नहीं कहा है. लिहाजा हाईकोर्ट से अपेक्षा की जाती है कि वह हमारे आदेश में की गई किसी भी टिप्पणी से प्रभावित हुए बिना कानून के अनुसार मेरिट के आधार पर याचिका का फैसला करे. 

शीर्ष अदालत ने आंध्र प्रदेश के वकील की उस बात पर सहमति जताई कि हाईकोर्ट ने दो जीओ की गलत व्याख्या की है और पिछली सरकार के फैसलों को पलटने के तौर पर देखा. पीठ ने कहा कि यदि दो आदेशों पर विचार किया जाए तो यह देखा जा सकता है कि इसे पिछली सरकार द्वारा लिए गए पहले के निर्णयों को पलटना और पिछली सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों की समीक्षा करना नहीं कहा जा सकता है.

पीठ ने कहा कि उप-समिति और एसआईटी का गठन पिछली सरकार के भ्रष्टाचार और गलत कार्यों के आरोपों की जांच के लिए किया गया है. शीर्ष अदालत ने यह भी माना कि हाईकोर्ट ने इस तथ्य को नजरंदाज कर दिया कि राज्य सरकार ने 23 मार्च, 2020 को एक पत्र द्वारा केंद्र सरकार से अनुरोध किया था कि मामला सीबीआई को भेजा जाए. अभी तक केंद्र की ओर से मंजूरी नहीं दी गई है. 

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शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट के समक्ष कार्यवाही के लिए केंद्र सरकार उचित और आवश्यक पक्षकार है. एक अलग आदेश में हाईकोर्ट ने 16 सितंबर, 2020 को केंद्र सरकार और प्रवर्तन निदेशालय को कार्यवाही में पक्षकार बनाने की राज्य सरकार की मांग को खारिज कर दिया था.

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