सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर केंद्र और सुप्रीम कोर्ट आमने-सामने है. सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम की सिफारिश के बावजूद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति न करने को लेकर केंद्र सरकार को जमकर फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केंद्र द्वारा नामों को लंबित रखना मंजूर नहीं है. सरकार न तो नामों की नियुक्ति करती है और न ही अपनी आपत्ति के बारे में बताती है. सरकार के पास 10 नाम भी लंबित हैं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने दोहराया है. इस मामले के लेकर सुप्रीम कोर्ट ने लॉ सेकेट्री को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम द्वारा प्रस्तावित जजों के नाम को मंजूरी देने में केंद्र में देरी को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की. इस दौरान वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि जस्टिस दीपांकर दत्ता के नाम का प्रस्ताव रखे हुए 5 सप्ताह हो चुके हैं और इतने दिनों में मंजूरी मिल जानी चाहिए थी. जस्टिस संजय कौल ने कहा कि हमारी समझ ये बाहर है कि ये क्यों हो रहा है.
जजों की नियुक्ति के निर्देशों का हो रहा उल्लंघन
सुप्रीम कोर्ट ने कहा हाईकोर्ट में नियुक्तियों में महत्वपूर्ण देरी के चलते सुप्रीम कोर्ट को 2021 में आदेश पारित कर समयसीमा दी थी, जिसमें प्रक्रिया पूरी की जानी चाहिए. यदि इस प्रक्रिया में और देरी होती है, तो यह बार के सदस्यों द्वारा बेंच में पदोन्नति स्वीकार करने की प्रक्रिया में देरी करती है. कोर्ट का कहना है कि छह महीने पहले नाम भेजने की समय अवधि की कल्पना इस सिद्धांत पर की गई थी कि इतनी ही समयावधि काफी होगी. लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि कई अवसरों पर निर्देशों का उल्लंघन किया जा रहा है.
कॉलेजियम द्वारा मंजूरी देने के बावजूद नहीं हुईं नियुक्तियां
सरकार के पास 11 मामले लंबित हैं, जिन्हें कॉलेजियम द्वारा मंजूरी दे दी गई थी, लेकिन अभी तक नियुक्तियां नहीं हुई हैं. इनमें सितंबर 2021 का सबसे पुराना मामला है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उन मामलों में पुनर्विचार की मांग की गई है, जहां सरकार ने दूसरी बार दोहराने के बावजूद नामों को मंज़ूरी नहीं दी है. इस बीच कई लोगों ने अपने नाम वापस ले लिए और कोर्ट ने बेंच पर एक प्रतिष्ठित व्यक्ति को रखने का अवसर खो दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के इस रवैये पर जाहिर की नाराजगी
केंद्र सरकार के खिलाफ नाराजगी जाहिर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दूसरी बार सिफारिश दोहराने के बाद नियुक्ति जारी की जानी चाहिए. इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में यह भी कहा है कि नामों को होल्ड पर रखना स्वीकार्य नहीं है. यह एक तरह का उपकरण बनता जा रहा है, जो इन व्यक्तियों को अपना नाम वापस लेने के लिए मजबूर करता है जो पहले हुआ है. कॉलेजियम द्वारा प्रस्तावित नामों में शामिल जयतोष नाम के व्यक्ति का हाल ही में निधन भी हो गया है.
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि जब तक सक्षम जजों द्वारा पीठ को सुशोभित नहीं किया जाता है, तब तक कानून और न्याय की प्रक्रिया ही प्रभावित होती है. हम देरी के कारणों को समझने में असमर्थ हैं.