विधानसभा हंगामा: SC का केरल सरकार को झटका, प्रमुख माकपा नेताओं के खिलाफ वापस नहीं होंगे मामले, चलेगा ट्रायल

सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार की याचिका खारिज कर दी और कहा कि इसमें कोई मेरिट नहीं है.

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SC ने कहा, ट्रायल जारी रखने के फैसले में हाईकोर्ट बिल्कुल सही था
नई दिल्ली:

Kerala Assembly Ruckus Case: केरल सरकार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से बड़ा झटका लगा है. SC ने फैसला दिया है कि 2015 केरल विधानसभा (Kerala Assembly) में हंगामे के लिए प्रमुख माकपा नेताओं के खिलाफ मामले वापस नहीं होंगे और उनके खिलाफ ट्रायल चलेगा. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगाई. केरल सरकार द्वारा 2015 में केरल विधानसभा में हंगामे के लिए प्रमुख माकपा नेताओं के खिलाफ मामलों को वापस लेने की अनुमति मांगने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार की याचिका खारिज कर दी और कहा कि इसमें कोई मेरिट नहीं है. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने फैसला सुनाते हुए कहा कि विधायकों के लिए छूट आपराधिक कानूनों के खिलाफ इम्यूनिटी तक नहीं बढ़ाई जा सकती है.सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने का एक कथित कार्य सदन के सदस्यों के रूप में कार्यों के निर्वहन के लिए आवश्यक नहीं है. SC ने कहा कि हाईकोर्ट ट्रायल जारी रखने के फैसले में बिल्कुल सही था

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि चुने हुए लोग कानून से ऊपर नहीं हो सकते और उन्हे उनके अपराध के लिए छूट नही हो सकती.फैसले में कहा गया है कि विधायकों को विशेषाधिकार इसलिए दिया गया कि आप लोगो के लिए काम करें, असेंबली में तोडफ़ोड़ करने का अधिकार नही दिया गया है. आपके विशेषाधिकार विधायको को आपराधिक कानून से संरक्षण नही देते हैं.सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विशेषाधिकार और प्रतिरक्षा आपराधिक कानून से छूट का दावा करने का गेट नहीं है.यह नागरिकों के साथ विश्वासघात होगा. जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने निर्णय दिया की विधायकों का विशेषाधिकार कुछ भी करने और बच निकलने के लिए नहीं है. जनता की सेवा में कोई अड़चन न आए, इसके लिए संविधान ने जन प्रतिनिधियों को विशेषाधिकार प्रदान किए हैं न कि मनमानी, अनुशासनहीनता और अन्य उच्छृंखलता के लिए. इन उपद्रवी विधायकों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेना जनहित और लोक न्याय के विरुद्ध होगा. ट्रायल कोर्ट ने इनकी अर्जी ठुकरा कर बिल्कुल सही किया है क्योंकि केरल सरकार की अर्जी, दावों और तर्कों में कोई दम नहीं है. इस फैसले के असर बहुत दूर तक जाने के आसार हैं

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गौरतलब है कि 15 जुलाई को SC ने मामले में फैसला सुरक्षित रखा था. सुनवाई के दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने केरल सरकार से पूछा, क्या यह जनहित में था या लोक न्याय की सेवा में कि मुकदमों को वापस लेने की मांग की गई जबकि विधायकों ने लोकतंत्र के गर्भगृह को क्षतिग्रस्त कर दिया था?दरअसल पिछली सुनवाई में संसद और विधानसभा में सदस्यों द्वारा हंगामा करने और तोड़फोड़ करने की घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसी घटनाओं को माफ नहीं किया जा सकता. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि यह स्वीकार्य व्यवहार नहीं है. प्रथम दृष्टया हमें इस तरह के व्यवहार पर सख्त रुख अपनाना होगा. यह स्वीकार्य व्यवहार नहीं है. केरल के मामले का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सदन में माइक फेंकने वाले विधायक का व्यवहार देखिए. उसे मुकदमे का सामना करना पड़ेगा. जस्टिस एमआर शाह ने कहा कि वे विधायक हैं, वे लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. अब विधानसभा में तो छोडिए, संसद में भी हंगामा होने लगा है. सदस्य ये नहीं सोचते कि इसका जनता पर क्या असर पड़ेगा. 

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दरअसल जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पीठकेरल सरकार द्वारा 2015 में केरल विधानसभा में हंगामे के लिए प्रमुख माकपा नेताओं के खिलाफ मामलों को वापस लेने की अनुमति मांगने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है. जब राज्य में वर्तमान सत्तारूढ़ दल विपक्ष में था.जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि आरोपियों को सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान की रोकथाम अधिनियम के तहत मुकदमे का सामना करना चाहिए. इस तरह के व्यवहार को माफ नहीं किया जा सकता है. ये याचिका केरल हाईकोर्ट के 12 मार्च, 2021 के आदेश के खिलाफ दाखिल की गई है, जिसने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा मौजूदा मंत्रियों सहित अभियुक्तों के खिलाफ मुकदमा वापस लेने की अनुमति मांगने के आदेश के खिलाफ राज्य की याचिका को खारिज कर दिया था. 
 

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