इलाहाबाद हाईकोर्ट परिसर से मस्जिद हटाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट का दखल देने से इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को मस्जिद के लिए दूसरी जगह ज़मीन की मांग के लिए राज्य सरकार के पास अपना पक्ष रखने की इजाज़त दी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कोर्ट परिसर में स्थित एक मस्जिद को खाली करने के निर्देश दिया था. 

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जिस भूमि पर मस्जिद स्थित थी, उसका पट्टा अगले 30 वर्षों के लिए नवीनीकृत किया गया था, जो 2017 में समाप्त हो गया
नई दिल्‍ली:

इलाहाबाद हाईकोर्ट परिसर से मस्जिद हटाने के 2017 के फैसले में दखल देने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में दखल की वजह नज़र नहीं आती है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को परिसर को खाली करने के लिए तीन महीने का समय दिया. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को मस्जिद के लिए दूसरी जगह ज़मीन की मांग के लिए राज्य सरकार के पास अपना पक्ष रखने की इजाज़त दी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कोर्ट परिसर में स्थित एक मस्जिद को खाली करने के निर्देश दिया था. 

मस्जिद को हटाने के लिए तीन महीने का समय
वक्फ मस्जिद हाईकोर्ट और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए जस्टिस एमआर शाह और सीटी रविकुमार की पीठ ने याचिकाकर्ताओं को मस्जिद को हटाने के लिए तीन महीने का समय दिया साथ ही कहा कि अगर आज से 3 महीने की अवधि के भीतर निर्माण नहीं हटाया जाता है, तो हाईकोर्ट सहित अधिकारियों के लिए खुला होगा कि वे उन्हें हटा दें या गिरा दें. पीठ ने याचिकाकर्ताओं को पास के क्षेत्र में वैकल्पिक भूमि के आवंटन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को एक प्रतिनिधित्व देने की भी अनुमति दी है. 

मस्जिद एक सरकारी पट्टे की भूमि पर स्थित
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए आदेश पारित किया कि मस्जिद एक सरकारी पट्टे की भूमि में स्थित है और अनुदान को 2002 में बहुत पहले ही रद्द कर दिया गया था. पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में भूमि की बहाली की पुष्टि की थी और इसलिए, याचिकाकर्ता परिसर पर किसी कानूनी अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं.  

इस तरह निजी मस्जिद को सार्वजनिक मस्जिद में बदल दिया गया...
वक्फ मस्जिद की ओर से उपस्थित वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की वर्तमान इमारत का निर्माण वर्ष 1861 में किया गया था. तब से मुस्लिम वकील, मुस्लिम क्लर्क, मुस्लिम मुवक्किल शुक्रवार को उत्तरी कोने पर नमाज अदा कर रहे थे, वजू की भी व्यवस्था थी. बाद में जिस बरामदे में नमाज पढ़ी जा रही थी, उसके पास जजों के चैंबर बना दिए गए. मुस्लिम वकीलों के प्रतिनिधिमंडल के अनुरोध पर हाईकोर्ट रजिस्ट्रार ने नमाज़ अदा करने के लिए दक्षिणी छोर पर एक और स्थान प्रदान किया. उस समय, एक व्यक्ति, जिसके पास सरकारी अनुदान की जमीन थी, ने उन्हें परिसर में एक निजी मस्जिद में नमाज़ अदा करने के लिए जगह दी. इस प्रकार, निजी मस्जिद को सार्वजनिक मस्जिद में बदल दिया गया. 

1988 के आसपास, जिस भूमि पर मस्जिद स्थित थी, उसका पट्टा अगले 30 वर्षों के लिए नवीनीकृत किया गया था, जो 2017 में समाप्त होना था. हालांकि, 15.12.2000 को, पट्टा रद्द कर दिया गया था, लेकिन नमाज़ अभी भी पढ़ी जा रही है. मस्जिद हाईकोर्ट के बाहर सड़क के उस पार स्थित है और यह कहना गलत है कि यह हाई कोर्ट के परिसर के भीतर स्थित है. 2017 में सरकार बदली तो सब कुछ बदल गया. नई सरकार के आने के दस दिन बाद ही याचिका दाखिल की गई. वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार के लिए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल, ऐश्वर्या भाटी ने जवाब दिया कि  हाईकोर्ट के 500 मीटर के दायरे में एक और मस्जिद मौजूद है. यह मुकदमेबाजी का दूसरा दौर है. वे कोई और आधार नहीं उठा रहे हैं, सिवाय इसके कि सरकार बदल गई है. 

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