संभल में बुलडोजर कार्रवाई (Bulldozer Action in Sambhal) को लेकर दायर अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सुनवाई से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को इलाहाबाद हाईकोर्ट (High Court) जाने को कहा है. जस्टिस बी आर गवई ने कहा कि आप हाईकोर्ट जा सकते हैं. अगर अफसरों ने कुछ गलत किया है तो जेल भेजिए. संभल निवासी मोहम्मद गयूर की ओर से याचिक दायर की गई थी.
याचिका में की गई ये मांग
संभल निवासी मोहम्मद गयूर की ओर से दायर याचिका पर आरोप लगाया था कि देश भर में बुलडोजर कार्रवाई को लेकर पिछले साल नवंबर को दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवहेलना करके उनकी फैक्ट्री को ढहाया गया है. बुलडोजर कार्रवाई से पहले न तो कोई नोटिस दिया गया और न ही अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया. याचिका में संभल के डीएम राजेंद्र पेंसिया, एसडीएम, CDO और तहसीलदार को पक्षकार बनाकर उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की मांग की गई थी.
इससे पहले याचिकाकर्ता मोहम्मद गयूर की ओर से पेश हुए वकील ने सुनवाई के लिए कुछ समय का स्थगन मांगा था और कहा कि बहस करने वाले वकील व्यक्तिगत परेशानी में हैं. उन्होंने पीठ से मामले को एक सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया था. तब पीठ ने कहा कि याचिका एक सप्ताह बाद सुनवाई के लिए पेश की जाए. अधिवक्ता चांद कुरैशी के माध्यम से दायर अपनी याचिका में याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत के 13 नवंबर के फैसले का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है.
सूचना दिए बिना बुलडोजर चलाने के आदेश
इस फैसले में अखिल भारतीय दिशा-निर्देश निर्धारित करके कहा गया था कि बिना कारण बताओ नोटिस के किसी भी संपत्ति को ध्वस्त नहीं किया जाना चाहिए और प्रभावितों को जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए. याचिका में दावा किया गया है कि उत्तर प्रदेश के संभल में अधिकारियों ने याचिकाकर्ता या उसके परिवार के सदस्यों को कोई पूर्व सूचना और अवसर दिए बिना 10-11 जनवरी को उसकी संपत्ति के एक हिस्से पर बुलडोजर चला दिया.
जमीन से जुड़े कागज होने का किया दावा
याचिका में कहा गया है, “याचिकाकर्ता ने कहा है कि उसके और परिवार के सदस्यों के पास संपत्ति के सभी आवश्यक दस्तावेज, स्वीकृत नक्शे और अन्य संबंधित दस्तावेज थे, लेकिन अवमानना करने वाले अधिकारी याचिकाकर्ता की संपत्ति के परिसर में आए और उक्त संपत्ति को ध्वस्त करना शुरू कर दिया.” नवंबर 2024 के अपने फैसले में उच्चतम न्यायालय ने कई निर्देश पारित करते हुए स्पष्ट किया था कि अगर सड़क, गली, फुटपाथ, रेलवे लाइन से सटे या किसी नदी या जल निकायों जैसे सार्वजनिक स्थान पर कोई अनधिकृत संरचना है तो ये निर्देश लागू नहीं होंगे और उन मामलों में भी लागू नहीं होंगे जहां अदालत ने ध्वस्तीकरण का आदेश दिया हो.