बांग्लादेश से आए हिंदू, जैन और बौद्धों को SIR में शामिल का मुद्दा, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और EC को जारी किया नोटिस

इस मामले में याचिकाकर्ता का आरोप है कि उन्होंने 2014 से पहले नागरिकता के लिए आवेदन किया था, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई.

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सुप्रीम कोर्ट ने बांग्लादेश से आए उत्पीड़ित हिंदू, जैन, बौद्ध और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों को SIR (Special Inclusion Register) में शामिल करने की मांग वाली याचिका पर चुनाव आयोग (ECI), केंद्र सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार को नोटिस जारी किया है. यह याचिका NGO ‘आत्मदीप' ने दाखिल की है. इस मामले में याचिकाकर्ता का आरोप है कि उन्होंने 2014 से पहले नागरिकता के लिए आवेदन किया था, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. याचिका में कहा गया है कि चूंकि वे बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न का सामना कर चुके हैं, इसलिए उन्हें नागरिकता मिलनी चाहिए.

सीजेआई सूर्य कांत की अहम टिप्पणी

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम सिर्फ़ इसलिए भेद नहीं कर सकते कि कोई जैन है या बौद्ध. डीम्ड सिटीज़नशिप की अवधारणा लागू करनी होगी. अधिकार तो है, पर हर मामला तथ्यों के हिसाब से परखा जाएगा.

CAA का संरक्षण क्यों नहीं?

सीनियर एडवोकेट करुणा नंदी ने दलील दी कि याचिकाकर्ता मुख्यतः हिंदू हैं, लेकिन बौद्ध और ईसाई भी शामिल हैं. उन्होंने कहा कि हम 2014 से पहले आए, इसलिए CAA का संरक्षण नहीं मिलता. हमें बासुदेव जजमेंट में जो दिया गया है, वही अंतरिम रूप से SIR में लागू होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को अन्य समान मामलों के साथ 9 दिसंबर को सूचीबद्ध किया है.

वकील ने क्या कुछ कहा

वकील करुणा नंदी ने कहा कि शरणार्थियों के हितों के लिए काम करने वाली संस्था ‘आत्मदीप' की ओर से वे कोर्ट आई हैं. करुणा नंदी ने कहा कि बंगाल में रह रहे इन शरणार्थियों में से कुछ को NRC की प्रारंभिक सूची में शामिल किया गया है, जबकि बड़ी संख्या में लोगों को बाहर रखा गया है. उनका अनुरोध था कि जिन्हें सूची में डाला गया है, उन्हें बाहर न निकाला जाए, बल्कि प्रोविजनली रखा जाए और उनके आवेदनों का तेज़ी से निपटारा किया जाए. जिन्हें नागरिकता मिल जाए, उन्हें तुरंत मतदान का अधिकार दिया जाए.

जिन लोगों का नाम सूची में नहीं है, उनके पास जो भी एक्नॉलेजमेंट स्लिप या पुराने दस्तावेज़ हैं, उनके आधार पर भी उन्हें प्रोविजनली संरक्षित रखा जाए और उनकी नागरिकता प्रक्रिया को शीघ्र पूरा किया जाए. संख्या के बारे में पूछे जाने पर करुणा नंदी ने कहा कि फिलहाल कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है और इसका जवाब चुनाव आयोग को ही देना होगा, लेकिन कुछ अनुमानों के अनुसार बंगाल में इस वक्त करीब ढाई करोड़ धार्मिक अल्पसंख्यक (खासकर बांग्लादेश से आए) ऐसे हैं, जो भारतीय नागरिकता के लिए इंतज़ार कर रहे हैं.

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