चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट के जज केएम जोसेफ ने खुद को अलग कर लिया है. मामले में दूसरी बेंच का गठन करने के लिए CJI के पास भेजा गया है. याचिकाकर्ता की तरफ से प्रशांत भूषण अदालत में पक्ष रख रहे हैं. प्रशांत भूषण ने कहा कि हमने संविधान पीठ के फैसले के तहत इस नियुक्ति को चुनौती दी है. ऐसी टिप्पणियां हैं कि पूरी कवायद जल्दबाजी में, एक दिन के भीतर की गई थी. उन्होंने कहा कि पूरी प्रक्रिया दुर्भावनापूर्ण थी. चारों नाम किस आधार पर उठाये और उन नामों में से उनका नाम किस आधार पर चुना गया? भूषण ने कहा कि अनुच्छेद 14 का उल्लंघन हुआ है.
वहीं जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा कि हो सकता है कि यह हड़बड़ी में किया गया हो, जैसा कि आप कहते हैं अनुचित हड़बड़ी... लेकिन नियम का उल्लंघन क्या है? चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक व्यवस्था प्रचलित थी. आप सिर्फ हमारे फैसले पर भरोसा नहीं कर सकते.
क्या है पूरा मामला?
पारदर्शिता बढ़ाने के लिए सीईसी और ईसी के चयन के तरीके में सुधार लाते हुए 3 मार्च के फैसले में, जस्टिस जोसेफ की अगुवाई वाली बेंच ने 1985 के पंजाब कैडर के आईएएस अधिकारी अरुण गोयल की रिक्ति के खिलाफ चुनाव आयुक्त की सरकार की जल्दबाजी में नियुक्ति पर सवाल उठाया था. उन्होंने कहा था कि कहा था कि ये नियुक्ति बिजली की गति से की गई जब अदालत मामले की सुनवाई कर रही थी.
याचिका में क्या कहा गया है?
सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है. याचिका में भारत के चुनाव आयुक्त के रूप में गोयल की नियुक्ति को रद्द करने की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि ये नियुक्ति मनमानी है और संस्थागत अखंडता और भारत के चुनाव आयोग की स्वतंत्रता का उल्लंघन है और समानता के अधिकार का उल्लंघन है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) द्वारा दायर की गई याचिका में कहा गया है. याचिका में गोयल की नियुक्ति को गैर कानूनी, मनमानी और त्रुटिपूर्ण बताते हुए रद्द करने की गुहार लगाई गई है.
एडीआर की तरफ से दायर की गई है याचिका
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर की ओर से दखिल इस जनहित याचिका में कहा गया है कि अरुण गोयल की नियुक्ति कानून के मुताबिक सही नहीं है. साथ ही निर्वाचन आयोग की सांस्थानिक स्वायत्तता का भी उल्लंघन है. इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 14 और 324(2) के साथ साथ निर्वाचन आयोग (आयुक्तों की कार्यप्रणाली और कार्यकारी शक्तियां) एक्ट 1991 का भी उल्लंघन है. जनहित याचिका से पहले एडीआर ने निर्वाचन आयुक्तों की मौजूदा नियुक्ति प्रक्रिया की संवैधानिक वैधता को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी
याचिका के अनुसार, भारत सरकार ने गोयल की नियुक्ति की पुष्टि करते हुए कहा था कि चूंकि वह तैयार किए गए पैनल में चार व्यक्तियों में सबसे कम उम्र के थे, इसलिए चुनाव आयोग में उनका कार्यकाल सबसे लंबा होगा. याचिका में तर्क दिया गया है कि उम्र के आधार पर गोयल की नियुक्ति को सही ठहराने के लिए जानबूझकर एक दोषपूर्ण पैनल बनाया गया था. इसके अलावा, 160 अधिकारी ऐसे थे जो 1985 बैच के थे और उनमें से कुछ गोयल से छोटे थे. हालांकि, इस बारे में कोई स्पष्टीकरण दिए बिना कि जो अधिकारी गोयल से उम्र में छोटे थे और जिनका पूरा कार्यकाल छह साल का होगा, सरकार ने गोयल को नियुक्त किया याचिका में कहा गया है कि केंद्र और चुनाव आयोग ने "अपने स्वयं के लाभों के लिए सावधानीपूर्वक आयोजित 'चयन प्रक्रिया' में चूक की है.
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