जानें क्या है तलाक-ए-हसन? सुप्रीम कोर्ट 4 दिन बाद मुस्लिम महिला की याचिका पर करेगा सुनवाई

पीड़िता बेनजीर हिना ने याचिका दाखिल कर तलाक-ए-हसन को एकतरफा, मनमाना और समानता के अधिकार के खिलाफ बताया है. याचिकाकर्ता के मुताबिक- ये परंपरा इस्लाम के मौलिक सिद्धांत में शामिल नहीं है.

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तलाक-ए-हसन के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई (फाइल फोटो)

तलाक-ए-हसन के खिलाफ मुस्लिम महिला की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट चार दिन बाद सुनवाई को तैयार है. महिला की ओर से इस पर जल्द सुनवाई की मांग की गई थी.  CJI ने भरोसा दिलाया कि वो चार दिन बाद मामले की सुनवाई करेंगे. याचिका में केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई है कि वह सभी के लिए लिंग तटस्थ धर्म, तलाक के तटस्थ समान आधार और तलाक की समान प्रक्रिया के लिए दिशानिर्देश तैयार करे. यह याचिका गाजियाबाद की पत्रकार बेनजीर हिना ने दायर की है. उन्होंने याचिका में आरोप लगाया है कि उनका पति और पति का परिवार उन्हें दहेज के लिए प्रताड़ित करता था, जब उन्होंने इनकार किया तो उसने एक वकील के माध्यम से उसे एकतरफा अतिरिक्त न्यायिक तलाक-ए-हसन दिया.

याचिकाकर्ता बेनज़ीर की ओर से पिंकी आनंद ने कहा था कि पीड़िता का 8.5 साल का बेटा है. पहला नोटिस 20 अप्रैल को मिला था. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने जल्द सुनवाई से इंकार कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता अगले हफ्ते सुनवाई के लिए मेंशन करें. मुस्लिम महिला की ओर से पिंकी आनंद ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि 19 अप्रैल को पति ने तलाक ए हसन के तहत उसे पहला नोटिस जारी किया. इसके बाद 20 मई को दूसरा नोटिस जारी किया गया. अगर अदालत ने दखल नहीं दिया तो 20 जून तक तलाक की कार्यवाही पूरी हो जाएगी.

लेकिन जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था ,19 अप्रैल को पहला नोटिस जारी किया गया था, लेकिन आपने दूसरे नोटिस तक इंतजार किया. हम मामले पर कोर्ट खुलने के बाद सुनवाई करेंगे. महिला की तलाक ए हसन को चुनौती देने वाली याचिका पर जल्द सुनवाई की जरूरत नहीं है. जज ने ये भी पूछा था कि इस मामले में जनहित याचिका क्यों दायर की गई, हालांकि याचिकाकर्ता के गुहार लगाने के बाद अदालत ने कहा कि वो अगले हफ्ते मेंशन करें.

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पीड़िता ने याचिका में किया ये जिक्र

बेनजीर हिना ने याचिका दाखिल कर तलाक-ए-हसन को एकतरफा, मनमाना और समानता के अधिकार के खिलाफ बताया है. याचिकाकर्ता के मुताबिक ये परंपरा इस्लाम के मौलिक सिद्धांत में शामिल नहीं है. याचिकाकर्ता की कोर्ट से गुहार है कि उसके ससुराल वालों ने निकाह के बाद दहेज के लिए उसे प्रताड़ित किया, दहेज की लगातार बढ़ती मांग पूरी न किए जाने पर उसे तलाक दे दिया. ये प्रथा सती प्रथा की तरह ही सामाजिक बुराई है. कोर्ट इसे खत्म कराने के लिए इसे गैरकानूनी घोषित करें, क्योंकि हजारों मुस्लिम महिलाएं इस कुप्रथा की वजह से पीड़ित होती हैं.

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जानें क्या है तलाक-ए-अहसन
इस्लाम में तलाक़ के तीन तरीके ज्यादा प्रचलन में थे. एक है तलाक़-ए-अहसन. इस्लाम की व्याख्या करने वालों के मुताबिक- तलाक़-ए-अहसन में शौहर बीवी को तब तलाक दे सकता है जब उसका मासिक धर्म चक्र न चल रहा हो (तूहरा की समयावधि). इसके बाद तकरीबन तीन महीने एकांतवास की अवधि यानी इद्दत के बाद चाहे तो वह तलाक वापस ले सकता है. यदि ऐसा नहीं होता तो इद्दत के बाद तलाक को स्थायी मान लिया जाता है, लेकिन इसके बाद भी यदि यह जोड़ा चाहे तो भविष्य में निकाह यानी शादी कर सकता है इसलिए इस तलाक़ को अहसन यानी सर्वश्रेष्ठ कहा जाता है.

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जानें क्या है तलाक-ए-हसन
दूसरे प्रकार का तलाक़ है तलाक़-ए-हसन. इसकी प्रक्रिया भी तलाक़-ए-अहसन की तरह है,  लेकिन इसमें शौहर अपनी बीवी को तीन अलग-अलग बार तलाक कहता है वो भी तब जब बीवी का मासिक धर्म चक्र न चल रहा हो. यहां शौहर को अनुमति होती है कि वह इद्दत की समयावधि खत्म होने के पहले तलाक वापस ले सकता है, यह तलाकशुदा जोड़ा चाहे तो भविष्य में फिर से निकाह यानी शादी कर सकता है. इस प्रक्रिया में तीसरी बार तलाक़ कहने के तुरंत बाद वह अंतिम मान लिया जाता है. यानी तीसरा तलाक बोलने से पहले तक निकाह पूरी तरह खत्म नहीं होता. तीसरा तलाक बोलने और तलाक पर मुहर लगने के बाद तलाक़शुदा जोड़ा फिर से शादी तब ही कर सकता है, जब बीवी इद्दत पूरी होने के बाद किसी दूसरे व्यक्ति से निकाह यानी शादी कर ले. इस प्रक्रिया को हलाला कहा जाता है. अगर पुराना जोड़ा फिर शादी करना चाहे तो बीवी नए शौहर से तलाक लेकर फिर इद्दत में एकांतवास करे, फिर वो पिछले शौहर से निकाह कर सकती है.

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