SC/ST Act में आरोपी को Supreme Court ने दी राहत, 1994 से काट रहा था कोर्ट के चक्कर

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जाति सूचक शब्द संपत्ति विवाद के कारण हताशा में दिए गए थे. न कि जाति के आधार पर नीचा दिखाने का इरादा था. 1994 की घटना के बाद कोई अन्य विवाद नहीं हुआ है.

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कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए फैसला दिया
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पड़ोसी पर जातिवादी सूचक शब्दों का इस्तेमाल करने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई रद्द कर दी है. इसके साथ ही कोर्ट ने कानून में प्रावधान ना होने पर भी फैसला दिया. उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए फैसला दिया. कोर्ट ने कहा कि आरोपी और शिकायतकर्ता एक ही गांव के हैं और दोनों ने मर्जी से समझौता किया है. ऐसे में उनके पुराने घाव कुरेदने से कोई फायदा नहीं है और उनके बीच सौहार्द व सद्भावना बनाए रखने के लिए ये कदम उठाया जा रहा है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने  इस बात पर प्रकाश डाला  कि SC/ST समुदाय के लोग कमजोर वर्गों से संबंधित हैं, जो संवेदनशील हैं और उन्हें उच्च सुरक्षा की आवश्यकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि जाति सूचक शब्द संपत्ति विवाद के कारण हताशा में दिए गए थे. न कि जाति के आधार पर नीचा दिखाने का इरादा था. आरोपी और पीड़ित दोनों एक ही सामाजिक और आर्थिक स्तर के हैं. आरोपी की आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है. 1994 की घटना के बाद कोई अन्य विवाद नहीं हुआ है. लेकिन CJI एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की तीन जजों की बेंच ने साफ किया है कि अगर अदालतों को ऐसे मामलों में मजबूरी या बल का संकेत भी मिलता है तो आरोपी पक्ष को कोई राहत नहीं दी जा सकती है. SC/ST कानून के पीछे का उद्देश्य जाति आधारित अपमान और धमकियों को रोकना है. जब उनका उपयोग अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति समुदाय से संबंधित होने के कारण पीड़ित को नीचा दिखाने के इरादे से किया जाता है. वर्तमान मामले में पक्षकारों के बीच एक निर्विवाद रूप से एक सिविल  विवाद था. 

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उन्होंने कहा कि SC/ST कानून  का उद्देश्य समाज के ऊपरी तबके के अत्याचारी कृत्यों से दलित वर्गों के सदस्यों की रक्षा करना है. हमें ऐसा प्रतीत होता है कि अपीलकर्ता उसी जाति से संबंधित नहीं है जिसका शिकायतकर्ता है, लेकिन वह भी अपेक्षाकृत कमजोर/पिछड़े वर्ग का है. पीड़ित की तुलना में उसका वर्ग निश्चित रूप से किसी भी बेहतर आर्थिक या सामाजिक स्थिति में नहीं है. यह देखा गया है कि वर्तमान मामले में अपीलकर्ता और शिकायतकर्ता आसपास के घरों में रहते थे. इसलिए, अपीलकर्ता की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए हमारी राय है कि यदि वर्तमान कार्रवाई को रद्द कर दिया जाता है तो SC/ST अधिनियम का अधिभावी उद्देश्य प्रभावित नहीं होगा. 

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गौरतलब है कि घटना 1994 में मध्य प्रदेश के पन्ना में हुई थी. राम अवतार नामक एक व्यक्ति और उसकी पड़ोसी प्रेमबाई के बीच भूमि के एक टुकड़े के स्वामित्व और स्वामित्व अधिकारों को लेकर सिविल  विवाद ने एक बदसूरत मोड़ ले लिया. उसने कथित तौर पर न केवल उस पर एक ईंट फेंकी बल्कि उसकी जाति पर गंदी और भद्दी टिप्पणी भी की. महिला अनुसूचित जाति से है. महिला ने तब SC/ST अधिनियम के तहत मामला दर्ज कराया था और अंततः रामअवतार को दोषी ठहराया गया. कोर्ट द्वारा  छह महीने के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई और 1000 रुपये का जुर्माना लगाया गया.

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रामअवतार ने मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय, जबलपुर बेंच के समक्ष अपनी सजा  को चुनौती दी थी, लेकिन उनकी अपील 2 अगस्त, 2010 को खारिज कर दी गई थी. बाद में आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और अदालत को सूचित किया कि मामला दोनों पक्षों के बीच सुलझा लिया गया है. महिला ने समझौता करने के लिए एक आवेदन दायर किया था. आरोपी ने कोर्ट को बताया कि दोनों पक्ष एक ही गांव के रहने वाले हैं और उनके बीच कोई दुश्मनी नहीं है. यह प्रस्तुत किया गया था कि पक्ष अपने विवाद को सुलझाना चाहते थे ताकि वे सौहार्दपूर्ण संबंध जारी रख सकें.

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