सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 'दिल्ली के फेफड़े' यानी रिज क्षेत्र को लेकर प्रशासनिक सुस्ती पर हैरानी जताई है. अदालत से कहा गया कि मई 1994 में रिज वन क्षेत्र 7,784 हेक्टेयर आंका गया था, लेकिन आज तक केवल 103 हेक्टेयर को ही रिज यानी आरक्षित वन (reserved forest) अधिसूचित किया गया है. इस पर जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि यह एक चौंकाने वाली स्थिति है.
उन्होंने कहा कि, हमें दिखाया गया कि यद्यपि भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत 24 मई, 1994 को 7,784 हेक्टेयर रिज को आरक्षित वन घोषित करने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए अधिसूचना जारी की गई, लेकिन अब तक जारी अधिसूचनाएं केवल 103 हेक्टेयर को कवर करती हैं.
कोर्ट ने कहा कि, कुल रिज क्षेत्र का 5% अतिक्रमण के अधीन है और अन्य प्रयोजनों के लिए वन भूमि के डायवर्जन की दर 5% है. हम केंद्र सरकार, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की सरकार और दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) को केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति की रिपोर्ट पर 10 जुलाई या उससे पहले जवाब दाखिल करने का निर्देश देना उचित समझते हैं. पीठ ने कहा कि अगली सुनवाई 24 जुलाई को होगी.
दरअसल अमिकस क्यूरी के परमेश्वर ने दिल्ली रिज पर CEC की स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत की थी. इसमें उत्तरी रिज (87 हेक्टेयर), केंद्रीय रिज (864 हेक्टेयर), दक्षिणी मध्य रिज (महरौली 626 हेक्टेयर) और दक्षिणी रिज 6200 हेक्टेयर शामिल हैं. CEC ने कहा है कि 1994 में धारा 4 अधिसूचना जारी होने के बाद भारतीय वन अधिनियम के तहत इसकी प्रगति लगभग शून्य है. विभिन्न अदालतों से कई न्यायिक हस्तक्षेप हुए हैं, फिर भी निपटान में ठोस प्रगति नहीं हो पाई है.