फर्जी जमानती देकर फरार हो रहे विदेशी, SC ने केंद्र-UIDAI से पूछा- वेरिफाई करने का क्या सिस्टम?

अदालत में पेश आंकड़ों के मुताबिक, एनसीबी के 38 और डीआरआई के 9 मामलों के आरोपी फर्जी जमानतदारों के आधार पर जमानत लेकर लापता हो चुके हैं.

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  • SC ने फर्जी जमानतियों के वेरिफिकेशन सिस्टम पर केंद्र और UIDAI से जवाब तलब किया है
  • NCB के 38 और DRI के 9 मामलों के आरोपी फर्जी जमानतदारों के आधार पर बेल लेकर लापता हो चुके हैं
  • SC ने कहा कि यह जांचने की जरूरत है कि जमानतियों के वेरिफिकेशन का सिस्टम प्रभावी है या नहीं
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नई दिल्ली:

फर्जी जमानतदारों के सहारे जमानत लेकर फरार होने वाले विदेशी आरोपियों के बढ़ते मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है और केंद्र सरकार और UIDAI से पूछा है कि जमानतियों के दस्तावेज़ वेरिफाई करने का क्या सिस्टम है. जस्टिस संजय करोल और जस्टिस विपुल एम. पंचोली की बेंच ने कहा कि कई राज्यों में जमानतियों के फर्जी पहचान के मामले हैं. हैरानी की बात है कि अदालतें फर्जी पहचान को स्वीकार भी कर लेती हैं. 

NCB-DRI के 47 आरोपी विदेशी हो चुके फरार

अदालत में पेश आंकड़ों के मुताबिक, एनसीबी के 38 और डीआरआई के 9 मामलों के आरोपी फर्जी जमानतदारों के आधार पर जमानत लेकर लापता हो चुके हैं. इनमें मुख्य रूप से नाइजीरिया और नेपाल के नागरिक हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह समस्या आपराधिक न्याय प्रणाली पर गंभीर असर डालती है. यह जांचने की जरूरत है कि NIC द्वारा जमानतियों के वेरिफिकेशन का सिस्टम श्‍योरिटी वेरिफ़िकेशन मॉड्यूल जैसी तकनीकें प्रभावी हैं या नहीं. 

सुप्रीम कोर्ट ने जिस मामले को लेकर यह टिप्पणी की, वह डीआरआई की 4.9 किलोग्राम हेरोइन बरामदगी से जुड़ा है. आरोपी चिडीबेरे किंग्सली नावचारा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने मई 2025 में दो साल से अधिक समय तक हिरासत में रहने के आधार पर जमानत दे दी थी. 

लुकआउट सर्कुलर के बावजूद सुराग नहीं

केंद्र सरकार ने आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने जमानत पर रोक लगाई और महाराष्ट्र पुलिस को आरोपी की गिरफ्तारी का निर्देश दिया. जरूरी होने पर लुकआउट सर्कुलर जारी करने को भी कहा, लेकिन अक्टूबर तक आरोपी फरार हो चुका था. FRRO और पुलिस के प्रयासों के बावजूद उसका कोई सुराग नहीं मिला. इसके बाद कोर्ट ने जमानतदार से संपर्क करने का निर्देश दिया.  

झूठी डिटेल देकर कराई थी जमानत

डीआरआई द्वारा दाखिल हलफ़नामे से खुलासा हुआ कि जमानतदार द्वारा दी गई सभी डिटेल्स झूठी थीं. परेल के जिस पते का उल्लेख किया गया था, वहां कोई उसे नहीं जानता था. जिस कंपनी में उसके काम करने का दावा किया गया था, वहां बताया गया कि ऐसा कोई कर्मचारी है ही नहीं. यहां तक कि जिस बैंक खाते के बारे में बताया गया था, वह भी अस्तित्व में नहीं था. डीआरआई ने अब ट्रायल कोर्ट में जमानती बॉन्ड की जब्ती, जमानतदार के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी करने और उस वकील से पूछताछ की अनुमति मांगी है जिन्होंने जमानतदार की पहचान कराई थी. 

सिस्टम की खामियों से सुप्रीम कोर्ट चिंतित

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह समस्या सिर्फ एक मामले तक सीमित नहीं है. अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू और एस. द्वारकानाथ ने वरिष्ठ वकील निशा बागची व वकील पद्मेश मिश्रा की सहायता से बताया कि कई एजेंसियों को इसी तरह के पैटर्न दिखे हैं, जो सिस्टम की खामियों की ओर संकेत करते हैं. 

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आरोपी के वकील को भी बनाया पक्षकार

इसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने UIDAI को मामले में पक्षकार बनाया और पूछा कि जमानतदारों के साथ लगाए जाने वाले आधार डिटेल्स की जांच के लिए कौन-सी सिस्टम है. कोर्ट ने जमानतदार के दस्तावेज़ दाखिल करने वाले आरोपी के वकील को भी पक्षकार बनाकर नोटिस जारी किया है. बेंच ने ट्रायल जज से भी डिटेल्ड रिपोर्ट मांगी है कि जमानतदार को किस प्रक्रिया के तहत स्वीकार किया गया था. मामले पर अगली सुनवाई 17 दिसंबर को होगी. अदालत ने सभी पक्षों से व्यापक मुद्दों पर लिखित दलीलें दाखिल करने को कहा है.

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