SC ने केंद्र से EWS के लिए 8 लाख रुपये की वार्षिक आय मानदंड तय करने का कारण पूछा

पीठ ने कहा कि जब हम पूछ रहे हैं कि EWS पात्रता के लिए आठ लाख रुपए का आधार क्या है तो आप यह नहीं कह सकते कि यह नीति का मामला है.

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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से EWS पर पूछा सवाल. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए आठ लाख रुपये की वार्षिक आय मानदंड तय करने का कारण पूछा है. कोर्ट ने केंद्र से कहा कि आप यह नहीं कह सकते कि यह नीति का मामला है. शीर्ष अदालत ने कहा कि आखिर आय के मानदंड को पूरे देश में समान रूप से कैसे लागू किया जा सकता है? जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे ASG केएम नटराज से पूछा कि आठ लाख रुपए का मानदंड तय करने के लिए आपने क्या अभ्यास किया? या आपने OBC पर लागू होने वाले मानदंड को स्वीकार कर लिया. पीठ ने कहा कि आय के मानदंड को पूरे देश में समान रूप से लागू नहीं किया जा सकता है क्योंकि मुंबई और बेंगलुरु जैसे बड़े महानगरों में रहने वाले व्यक्ति की वार्षिक आय को उत्तर प्रदेश के एक दूरस्थ गांव में रहने वाले लोगों के साथ तुलना नहीं की जा सकती है, भले ही उनकी आय एकसमान क्यों न हो. 

शीर्ष अदालत ने यह सवाल नील ऑरेलियो नून्स और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उठाया जिसमें देशभर के मेडिकल कॉलेजों में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में वर्तमान शैक्षणिक सत्र से अखिल भारतीय कोटा में OBC व EWS कोटा को लागू करने के लिए केंद्र की 29 जुलाई की अधिसूचना को चुनौती दी गई है. NEET के माध्यम से चयनित उम्मीदवारों में से मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस में 15 फीसदी सीटें और एमएस व एमडी कोर्स में 50 फीसदी सीटें अखिल भारतीय कोटे से भरी जाती हैं. वहीं एएसजी नटराज ने तर्क दिया कि आरक्षण लागू करना नीति का विषय है. इस पर पीठ ने पूछा कि आठ लाख रुपए के आंकड़े तक पहुंचने के लिए आपने क्या अभ्यास किया या आपने सिर्फ वही किया जो OBC के लिए लागू था. 

पीठ ने इंद्रा साहनी (मंडल मामला) के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि जिनकी आय आठ लाख रुपये से कम है, वे शैक्षिक और सामाजिक रूप से पिछड़ेपन व आर्थिक पिछड़ेपन के मानदंड को पूरा करते हैं. यहां हम शुद्ध आर्थिक पिछड़ेपन से निपट रहे हैं. हम जानना चाहते हैं कि केंद्र ने क्या अभ्यास किया है? अधिसूचना में विशेष रूप से आठ लाख रुपए का जिक्र है लेकिन अब आपके पास 17 जनवरी का कार्यालय ज्ञापन है जिसमें संपत्ति के साथ आठ लाख रुपये शामिल हैं. क्या आप संपत्ति सह आय को लागू कर रहे हैं. नटराज ने इस संबंध में हलफनामा दाखिल करने के लिए समय मांगा.

पीठ ने कहा कि जब हम पूछ रहे हैं कि EWS पात्रता के लिए आठ लाख रुपए का आधार क्या है तो आप यह नहीं कह सकते कि यह नीति का मामला है. नटराज ने कहा कि इसके लिए विचार-विमर्श किया गया था. लेकिन अदालत ने उनसे डेटा या इसके लिए किए गए अध्ययन को प्रदर्शित करने के लिए कहा. सुप्रीम कोर्ट  अब इस मामले पर 20 अक्टूबर को विचार करेगा.

पिछली सुनवाई में मेडिकल नीट (NEET) और डेंटल कोर्स के लिए अखिल भारतीय कोटे में ओबीसी के लिए 27 फीसदी और ईडब्लूएस के लिए 10 फीसदी सीटों की नई आरक्षण नीति के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को 6 अक्टूबर तक जवाब दाखिल करने को कहा था. इससे पहले 6 सितंबर को पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा था कि इसकी जांच करनी होगी. दरअसल, जुलाई में केंद्र सरकार ने मेडिकल दाखिलों के लिए ओबीसी के लिए 27 फीसदी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (10 फीसदी के लिए आरक्षण लागू किया है. यानी अंडर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल कोर्सेज में ओबीसी स्टूडेंट्स को 27 फीसदी और इकॉनोमिकली वीकर सेक्शन के लिए 10 फीसदी आरक्षण मिलेगा. केंद्र सरकार के ऐलान के बाद नई आरक्षण नीति इस साल से ही लागू हो गई है. इसी नीति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.

पिछली बार में मेडिकल नीट (NEET) दाखिले में ईडब्लूएस (EWS) कोटा पर केंद्र को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली थी. सुप्रीम कोर्ट ने ईडब्लूएस (EWS) कोटा लागू करने से पहले शीर्ष अदालत की मंजूरी लेने की मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणियों को रद्द कर दिया. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह मेरिट के आधार पर हाईकोर्ट के निर्देश को रद्द नहीं कर रहा है. बल्कि इस आधार पर किया है कि डीएमके द्वारा दायर अवमानना ​​याचिका का फैसला करते हुए हाईकोर्ट को ये आदेश पारित नहीं करना चाहिए था. वहीं, केंद्र की ओर से मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें कोर्ट अखिल भारतीय कोटा (एआईक्यू) में पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के लिए 27 फीसदी आरक्षण लागू करने के लिए कहा था.

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हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि मेडिकल कॉलेज में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को दिया गया 10 फीसदी अतिरिक्त आरक्षण की अनुमति केवल सुप्रीम कोर्ट फैसले के अधीन ही दी जा सकती है. केंद्र के खिलाफ तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी डीएमके की अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने अपना आदेश जारी किया था. इसके बाद तीन सितंबर को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी. बता दें, मद्रास हाईकोर्ट ने 25 अगस्त को को केंद्र द्वारा जारी उस अधिसूचना को मंजूरी दे दी, जिसमें मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए अखिल भारतीय कोटे (एआईक्यू) के तहत अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया था.

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