समलैंगिक जोड़ों को सामाजिक लाभ कैसे मिलेगा? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा सवाल

Supreme Court ने पूछा कि केंद्र बताए कि समलैंगिक जोड़ों की शादी को कानूनी मान्यता के बिना सामाजिक मुद्दों की अनुमति दी जा सकती है?

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सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा कि लंबे समय तक साथ रहना विवाह के बराबर ही होता है
नई दिल्ली:

समलैंगिक शादी को मान्यता देने की याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में गुरुवार को भी सुनवाई हुई. अदालत ने केंद्र सरकार से सवाल पूछा कि समलैंगिक जोड़ों की  बैंकिंग, बीमा, दाखिले आदि जैसी सामाजिक आवश्यकताओं पर केंद्र का क्या रुख है?कोर्ट ने कहा कि समलैंगिक जोडों के लिए केंद्र को कुछ करना होगा. केंद्र बताए कि समलैंगिक जोड़ों की शादी को  कानूनी मान्यता के बिना सामाजिक मुद्दों की अनुमति दी जा सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने तीन मई तक इस मामले में सरकार से जवाब मांगा है. गौरतलब है कि सेम सेक्स मैरिज मामले में केंद्र सरकार ने अलग- अलग कानूनों पर प्रभाव का हवाला दिया है. इनमें घरेलू हिंसा, दहेज प्रताड़ना, रेप, शादी, कस्टडी, भरण पोषण और उत्तराधिकार के कानूनों पर सवाल उठाए.

सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने क्या कहा? 

CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि  हम गठबंधन की व्यापक भावना का कुछ तत्व चाहते है.  लंबे समय तक साथ रहना भी शादी ही होती है. क्योंकि हम इस तथ्य के बारे में भी सचेत हैं कि हमारे देश में प्रतिनिधि लोकतंत्र को भी इतना कुछ हासिल करना चाहिए.बैंकिंग, बीमा, प्रवेश आदि जैसी सामाजिक आवश्यकताएं होंगी जहां केंद्र को कुछ करना होगा. उन्होंने केंद्र सरकार से कहा कि आपने ये शक्तिशाली तर्क दिया है कि ये विधायिका का मामला है. अब सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए क्या करना है कि ये  रहने संबंधों में सुरक्षा, सामाजिक कल्याण की शर्तों के संदर्भ में मान्यता दी जानी चाहिए.ऐसा करके सुनिश्चित करें कि हम भविष्य के लिए भी सुनिश्चित करें कि ये रिश्ते समाज में बहिष्कृत न हों.

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केंद्र सरकार ने क्या कहा? 

केंद्र की तरफ से तुषार मेहता ने कहा कि सरकार कानूनी मान्यता दिए बिना कुछ ऐसे मुद्दों से निपटने पर विचार कर सकती है जिनका वे सामना कर रहे हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि प्रत्येक सामाजिक या व्यक्तिगत संबंध के रूप में मान्यता देने के लिए राज्य पर कोई सकारात्मक दायित्व नहीं है.बड़ी संख्या में रिश्ते हैं, सभी को मान्यता नहीं दी जा सकती है. राज्य को संबंधों को पहचानने में धीमा होना चाहिए. यह तभी पहचान सकता है जब वैध राज्य हित में उन्हें नियंत्रित करने की आवश्यकता हो.194 देशों में से कुछ ही देशों ने ऐसी शादियों को मान्यता दी है.

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जस्टिस भट्ट ने कहा कि सामाजिक मुद्दों को लेकर सरकार, विधायिका और न्यायपालिका के बीच तालमेल पुराना है.  इस पर सीजेआई ने कहा कि नजीर के लिए विशाखा मुद्दे पर आया फैसला ही देख लिया जाय. ये इस बेहतरीन तालमेल के श्रेष्ठ उदाहरण है. सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि लेकिन ये तो एक खास वर्ग और खास मुद्दे पर है.  इस पर सीजेआई ने कहा कि ये मुद्दा तो और ज्यादा पेचीदा है.  जस्टिस भट्ट ने कहा कि इन याचिकाओं में दर्ज मुद्दे के अलावा कानून में बदलाव की चर्चा लिव इन रिलेशनशिप को मान्यता तक पहुंच चुकी है.  यानी पारिवारिक कानून तक इसका अंतर्संबंध है. इस पर जस्टिस नरसिम्हा ने और स्पष्ट किया कि मौजूदा दौर में जब हम कानूनी मान्यता की बात करते हैं तो इसका मतलब विवाह को मान्यता देने से है. आपसी रिश्ते और पहचान मान लेने को विवाह की बराबर मान्यता नहीं दी जा सकती है.

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बार काउंसिल ऑफ इंडिया के प्रस्ताव का विरोध

LGBTQ+ के बीच समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के खिलाफ बार काउंसिल ऑफ इंडिया के रुख पर देश के 36 कॉलेजों  के  600 से ज्यादा छात्रों नाराजगी और निराशा जताई है.  इन छात्रों ने एक प्रस्ताव पास कर कहा है कि सरकार और बार काउंसिल का रुख संविधान की मूल भावना यानी आत्मा के खिलाफ है. समानता और अपनी इच्छा से जीवन जीने के अधिकारों का हनन है. बिना किसी आधार के  बीसीआई ने कह दिया कि देश में 99.9% लोग समलैंगिक विवाह के खिलाफ हैं. कौन से सर्वेक्षण का आधार दे रहा है बीसीआई?  क्वीर समुदाय के साथ अपनी एकजुटता जताने वालों में देश के जाने माने कई लॉ यूनिवर्सिटी, लॉ कॉलेज और अन्य शिक्षण संस्थानों में छात्रों के क्वीर क्लब और संगठनों के नाम शामिल हैं.

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