राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने के मामले में हस्तक्षेप अर्जी दाखिल कर कहा कि उसकी बात भी सुनी जाए. राजस्थान सरकार की ओर से दाखिल अर्जी में कहा गया है कि ये मामला महिलाओं के अधिकारों और आपराधिक न्याय प्रणाली पर गहरे प्रभाव को उजागर करता है. इस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला नागरिकों, विशेष रूप से महिलाओं के लिए प्रभावी होगा. सरकार उस मामले में वैवाहिक बलात्कार के पीड़ितों के हितों का प्रतिनिधित्व करना चाहती है, वो सुप्रीम कोर्ट की फैसला लेने में सहायता करना चाहती है. इस मामले की सुनवाई मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में होनी है.
राजस्थान की याचिका के मुख्य बिंदु
- आवेदन का उद्देश्य कोर्ट को वैवाहिक बलात्कार अपवाद की संवैधानिकता पर निर्णय लेने में सहायता करना है.
- यह मुद्दे के राष्ट्रीय महत्व और न्यायिक प्रक्रिया में विविध दृष्टिकोणों की आवश्यकता को उजागर करता है.
- राजस्थान राज्य का उद्देश्य सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक परिस्थितियों पर एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करना है, जो धारा 375 आईपीसी की व्याख्या को प्रभावित करती हैं.
- हस्तक्षेप प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप है और यह सुनिश्चित करने का उद्देश्य है कि कोर्ट अपने निर्णय के व्यावहारिक निहितार्थों पर विचार करे.
- इस मामले का परिणाम पूरे देश के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल स्थापित करने की उम्मीद है.
- राजस्थान की भागीदारी को एक संतुलित और सूचित न्यायिक समीक्षा के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है, जो विवाह के भीतर महिलाओं को यौन हिंसा से बचाने के लिए एक अधिक प्रभावी कानूनी ढांचे की ओर ले जा सकता है.
वैवाहिक बलात्कार अपवाद की संवैधानिकता पर सवाल
राजस्थान राज्य के एडिशनल एडवोकेट जनरल शिव मंगल शर्मा ने 1860 के भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत वैवाहिक बलात्कार अपवाद की संवैधानिकता के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप आवेदन दायर किया है. एडिशनल एडवोकेट जनरल ने हस्तक्षेप आवेदन दायर किया, जो वैवाहिक बलात्कार अपवाद को संबोधित करने के महत्व को रेखांकित करता है.
क्या कहता है मैरिटल रेप का मौजूदा कमान
वर्तमान में यह कानून कहता है कि अगर पति अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाता है, बशर्ते वह पंद्रह साल से कम उम्र की न हो, तो यह बलात्कार नहीं है. शर्मा ने आवेदन में कहा कि राज्य ने यह भी जोर दिया कि महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा से लड़ने के लिए उसके विधायी और नीतिगत उपाय अदालत को महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं.
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