सुप्रीम कोर्ट ने मां की हत्या के आरोपी को बरी किया, कहा – “आत्महत्या की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता”

अभियोजन ने दावा किया कि आरोपी मां के साथ रहता था और उसने जल्दबाजी में दाह संस्कार की व्यवस्था की थी, जो हत्या का संकेत माना गया. ट्रायल कोर्ट ने निलेश को उम्रकैद की सजा सुनाई, जिसे बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा था.

विज्ञापन
Read Time: 3 mins
(फाइल फोटो)
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • SC ने महाराष्ट्र के अंबाजोगाई में मां की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा पाने वाले आरोपी को बरी कर दिया है
  • अदालत ने पाया कि मृत्यु हत्या थी या आत्महत्या, इस बात को साबित करने में अभियोजन विफल रहा है
  • मेडिकल सबूतों में विरोधाभास पाए गए, डॉक्टर ने गले पर लिगेचर निशान न होने को फांसी की स्थिति माना है
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने मां की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे दोषी को बरी कर दिया है. अदालत ने पाया कि मामला पूरी तरह परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित है और अभियोजन यह साबित नहीं कर सका कि मौत वास्तव में हत्या थी. दरअसल पेश मामले के अनुसार महाराष्ट्र के अंबाजोगाई के तालोनी गांव में वर्ष 2010 में हुई इस घटना में पुलिस को एक गुमनाम सूचना मिली थी कि एक महिला की “संदिग्ध मौत” हुई है.

जब पुलिस मौके पर पहुंची, तो भीड़ शव का जल्दबाज़ी में अंतिम संस्कार करने की कोशिश कर रही थी. पुलिस ने जब हत्या का शक जताया, तो भीड़ वहां से भाग गई. जांच के बाद मृतका सुनीता के बेटे निलेश को गिरफ्तार कर आरोपी बनाया गया था.

अभियोजन ने दावा किया कि आरोपी मां के साथ रहता था और उसने जल्दबाजी में दाह संस्कार की व्यवस्था की थी, जो हत्या का संकेत माना गया. ट्रायल कोर्ट ने निलेश को उम्रकैद की सजा सुनाई, जिसे बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट की दो-जजो की पीठ जस्टिस के.वी. विश्वनाथन और जस्टिस के. विनोद चंद्रन ने कहा कि इस मामले की मूल धारणाएं ही संदिग्ध हैं और यह तक स्पष्ट नहीं है कि मौत हत्या थी या आत्महत्या.

अदालत ने कहा कि मेडिकल सबूतों में गंभीर विरोधाभास है. डॉक्टर ने कहा कि मृत्यु “गला घोंटने से हुई एस्फिक्सिया” है , लेकिन जिरह के दौरान उन्होंने माना कि गर्दन के पीछे लिगेचर मार्क न होना “फांसी की स्थिति में संभव” है. उन्होंने यह भी कहा कि यदि वास्तव में गला घोंटा गया होता, तो निशान पूरे गले के चारों ओर होना चाहिए था.

पीठ ने कहा, डॉक्टर की गवाही के आधार पर हमें गंभीर संदेह है कि मृत्यु वास्तव में हत्या थी या नहीं. डॉक्टर की स्पष्ट स्वीकारोक्ति से यह संभावना पूरी तरह नकारी नहीं जा सकती कि यह आत्महत्या का मामला हो. अदालत ने यह भी कहा कि पुलिस ने यह जांच ही नहीं की कि भीड़ में से किसने अंतिम संस्कार की व्यवस्था की थी, और कोई भी गवाह यह नहीं कह सका कि आरोपी निलेश घटनास्थल पर मौजूद था.

अभियोजन यह साबित नहीं कर सका कि आरोपी या उसके किसी रिश्तेदार को उस समय दाह-संस्कार स्थल पर देखा गया था. मेडिकल रिपोर्ट भी हत्या की पुष्टि नहीं करती. बरामदगी और कथित सबूत भरोसेमंद नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अदालतों ने साक्ष्यों की गलत व्याख्या की और अभियोजन की कहानी में भारी खामियां हैं. अदालत ने अपील स्वीकार करते हुए दोषसिद्धि और सजा दोनों को रद्द कर दिया.

Advertisement
Featured Video Of The Day
Akhilesh-Azam Meeting: SP Chief Akhilesh Yadav और Azam Khan की मुलाकात के मायने क्या हैं?