सुंदर कमला नगर की कहानी, जिसे धारावी जैसे पुनर्विकास की उम्मीद है  

एसकेएन के नाम से मशहूर सुंदर कमला नगर,मुंबई के किंग्स सर्किल रेलवे स्टेशन के पास 10 एकड़ में फैली एक झुग्गी बस्ती है.इस झुग्गी बस्ती में जीवन की कहानी बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र बंदबे.

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मुंबई:

बीएमसी-650, सुंदर कमला नगर. यह 20 साल से अधिक समय तक मेरा पता था. छह गुणा आठ फुट की यह जगह मेरे घर का पता था, जहां मैं पला-बढ़ा था.

एसकेएन के नाम से मशहूर सुंदर कमला नगर,मुंबई के किंग्स सर्किल रेलवे स्टेशन के पास 10 एकड़ में फैली एक झुग्गी बस्ती है. मेरे पिता ने 1975 में एक स्थानीय झुग्गी माफिया से 48 वर्ग फुट की यह जगह 300 रुपये में खरीदी थी. छह लोगों का मेरा परिवार रत्नागिरी से विस्थापित होकर मुंबई (तत्कालीन बंबई) आया था. मेरे पिता चिंचपोकली में इलेक्ट्रानिक्स की एक दुकान पर हेल्पर का काम करते थे.  

मेरे घर, सुंदर कमला नगर में आपका स्वागत है.

उस समय सुंदर कमला नगर एक बंजर जमीन थी, जहां हार्बर लाइन रेलवे ट्रैक के किनारे कुछ झुग्गियां बनी हुई थीं. समय के साथ इसका विस्तार होता गया. लोहे की चादरों से बनी ये झुग्गियां धीरे-धीरे ईंटों की दीवारों से बनी स्थायी संरचना में बदल गईं.

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नरेंद्र बंदबे 20 साल से अधिक समय तक सुंदर कमला नगर में रहे.

मुंबई की दूसरी झुग्गी बस्तियों की ही तरह सुंदर कमला नगर के निवासियों ने भी खुद को मंडलों में बांट लिया था. हर मंडल में 80 से 100 तक सदस्य होते थे. आज सुंदर कमला नगर में 30 से अधिक मंडल हैं. मेरा परिवार तरुण मित्र मंडल का सदस्य था, जिसके आज करीब 140 सदस्य हैं.

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ये मंडल समुदायिक और एकता की भावना को बढ़ावा देते हैं. ये स्थानीय लोगों को एक करते हैं, खासकर तब जब उन्हें एसकेएन के मामलों में बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) या रेलवे प्राधिकरण के अधिकारियों से निपटना होता है. ये मंडल अक्सर एसकेएन के निवासियों के लिए सफाई और अन्य सुविधाओं में सुधार के लिए मिलकर-जुलकर काम करते हैं.

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मित्र मंडल: झुग्गी बस्तियों की जीवन रेखा

विट्ठल भोस्तकर एसकेएन में कई सालों तक हमारे पड़ोसी थे. वो माटुंगा के एक डेकोरेशन कॉन्ट्रैक्टर के दफ्तर में काम करते थे. उन्होंने कई सालों तक हमारे तरुण मित्र मंडल के सचिव के रूप में भी काम किया. वो एसकेएन के सामाजिक और राजनीतिक जीवन के सक्रिय भागीदार थे. विवाहित, तीन बेटियों और एक बेटे के पिता. विट्ठल ने अपना पूरा जीवन यहीं बिताया.

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सुंदर कमला नगर के मित्र मंडल वहां के निवासियों को एक कर उनकी समस्याओं को अधिकारियों तक पहुंचाने का काम करते हैं.

जब उनसे झुग्गी बस्ती के विकास के बारे में पूछा गया तो उन्होंने अपने कड़वे अनुभव साझा किए. उन्होंने कहा, "सचिव के रूप में मैं नियमित रूप से बीएमसी और दूसरे सरकारी दफ्तरों में जाया करता था. हमें पता था कि हमारा इलाका रेलवे अथॉरिटी के तहत आता है, लेकिन फिर भी हमने किसी तरह गुजारा किया. हमने लोगों के लिए बिजली, पानी के कनेक्शन और सार्वजनिक शौचालय की व्यवस्था करवाई.''

वो कहते हैं,''पिछले 50 सालों से हम पुनर्विकास के बारे में सुनते आ रहे हैं. लेकिन आज तक हुआ कुछ नहीं है. हमारे घरों का सर्वेक्षण किया गया. उन्हें नंबर भी दिए गए, लेकिन बात उससे आगे नहीं बढ़ पाई. मेरी बेटियां, जिनमें से कुछ की अब शादी हो चुकी है, घर छोड़कर चली गई हैं. लेकिन मैं अभी भी यहां हूं, पुनर्विकास का इंतजार कर रहा हूं.''

धारावी का विकास हुआ, एसकेएन का क्या होगा?

वो कहते हैं,"हमने धारावी विकास परियोजना के बारे में सुना है. धारावी हमसे केवल 800 मीटर की दूरी पर है. हालांकि वहां भी कई मुद्दे हैं, लेकिन विकास के मामले में कम से कम कुछ सकारात्मक तो हो रहा है. अब, हमारी अगली पीढ़ी सुंदर कमला नगर में अपने भविष्य को लेकर चिंतित और असुरक्षित है. उन्हें लगता है कि विकास का उनका सपना कभी पूरा नहीं होगा."

सुंदर कमला नगर की गलियां. यहां के निवासियों को उम्मीद है कि एक दिन एसकेएन का भी धारावी की तरह विकास होगा.

पिछले कुछ दशक में, एसकेएन एक झुग्गी बस्ती होने के बाद भी एक पसंदीदा स्थान बन गया है. मुझे याद है कि जब मेरा परिवार पहली बार यहां आया था, तो हमें पानी बाहर से लाना पड़ता था. बीएमसी ने पहली बार 1980 के दशक के अंत में वाटर कनेक्शन और बिजली उपलब्ध कराया था. वहीं 1990 के दशक की शुरुआत में घरों को व्यक्तिगत रूप से वाटर कनेक्शन दिए जाने लगे थे.

उस समय एसकेएन के ज्यादातर निवासी दिहाड़ी मजदूर थे. वे महाराष्ट्र के दूसरे हिस्सों से आए थे. हमारे तरुण मित्र मंडल में रत्नागिरी, रायगढ़ और सिंधुदुर्ग जिलों से आए प्रवासी शामिल थे.इनमें से ज्यादातर या तो एक-दूसरे के रिश्तेदार थे या एक ही गांव के रहने वाले थे. आज भी अधिकतर पुरुष हेल्पर, दिहाड़ी मजदूर या अधिक से अधिक ऑफिस क्लर्क के रूप में काम करते हैं. महिलाएं अभी भी घरों में नौकरानी का काम करती हैं. करीब-करीब सभी लोग पास के माटुंगा इलाके में काम करते हैं.

जमीन का मालिकाना, एक प्रमुख बाधा

विट्ठल कहते हैं कि दशकों से एसकेएन में रह रहे लोग इससे बेहतर के हकदार हैं. तरुण मित्र मंडल के पूर्व पदाधिकारी बताते हैं कि एक बड़ी बाधा जमीन के मालिकाने की है. रेलवे ट्रैक के पास की जमीन रेलवे प्राधिकरण के अधीन है, लेकिन एसकेएन की जमीन का एक बड़ा हिस्सा राज्य सरकार का भी है. उन्होंने बताया कि बीएमसी अधिकारियों ने इस इलाके की पहचान हरित क्षेत्र के रूप में की है.

सुंदर कमला नगर के विकास की कई योजनाओं की घोषणा तो हुई, लेकिन विकास आज तक नहीं हुआ.

वो कहते हैं, "आज तक, हमें यह नहीं पता है कि हमारी जमीन की सही स्थिति क्या है. हमें नहीं पता कि वहां और क्या मुद्दे हैं, लेकिन हमारे लिए विकास की कमी बुनियादी समस्या बनी हुई है."

वो कहते हैं, "धारावी हमारे सुंदर कमला नगर से अधिक घनी और अधिक जटिल है, खासकर वहां के उद्योगों के कारण. हमारा इलाका धारावी जितना जटिल नहीं है. दरअसल हम रेलवे अधिकारियों और राज्य सरकार के बीच जमीन के मालिकाने वाले विवादों में फंसे हुए हैं, इसलिए मुझे लगता है कि पुनर्विकास हमारे लिए एक सपना ही रहेगा."

वो कहते हैं,''समय के साथ, एसकेएन के निवासियों ने अधिकारियों के साथ विकास कार्यों की पैरवी करने के लिए कोऑपरेटिव हाउसिंग समूह भी बनाए. लेकिन इन समूहों में एकता की कमी के कारण, वे सफल नहीं हो पाए.'' विट्टठल बताते हैं, "कई लोगों ने अपने घर बेच कर विरार, पनवेल और अंबरनाथ जैसे दूर-दराज के उपनगरों में चले गए हैं. इससे लोगों के घरों के रिकॉर्ड में भी समस्या आई है."

एसकेएन के लिए दूर का सपना है पुनर्विकास

विनोद दासवते, हमारे पड़ोसी थे. वो एक निजी कंपनी में एग्जीक्यूटिव के रूप में काम करते थे. वो कहते हैं, "बचपन से ही, हमने पुनर्विकास योजनाओं के बारे में सुना है. मेरे दादाजी परिवार के साथ यहां आकर बस गए थे. मैं अपने भाई-बहनों के साथ यहीं पैदा हुआ. हर दो साल पर हम सुनते हैं कि विकास की एक नई योजना आ रही है. वे हमारे घरों का सर्वेक्षण करते हैं, लेकिन हम सपने देखने के लिए इंतजार करते रह जाते हैं. पिछले 30 सालों से यही चलता आ रहा है."

दासवते कहते हैं, "तीन दशकों से, हम पुनर्विकसित इमारत में बुनियादी सुविधाओं वाले एक अच्छे घर का सपना देख रहे हैं. हम एक बड़ा घर नहीं मांग रहे हैं, बस एक सुरक्षित और आरामदायक जगह जहां समुदाय शांति से रह सकें. इसके बाद भी हर बार, हम अगले वादे का इंतजार करते रह जाते हैं."

बुजुर्ग निवासी अब और अधिक बेचैन हैं, क्योंकि उन्होंने धारावी विकास परियोजना के बारे में सुना है, जिसके तहत निवासियों और घरों का सर्वेक्षण शुरू हो गया है. दासवते कहते हैं, "सरकार उस परियोजना को लेकर सक्रिय है, हमें विश्वास है कि धारावी के निवासियों को अंततः उचित घर मिलेगा. हालांकि, हम अभी भी अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं.''

सुंदर कमला नगर में हिंदू मुस्लिम की मिश्रित आबादी होने के बाद भी कभी सांप्रदायिक तनाव नहीं हुआ.

कई योजनाएं,थोड़ी सफलता

मुंबई की झुग्गी-झोपड़ियों के निवासियों ने पहली बार 1976 में एक विकास परियोजना के बारे में सुना था, जब कांग्रेस सरकार ने झुग्गी सुधार योजना (एसआईपी) शुरू की थी. इससे पानी के कनेक्शन और साफ-सफाई की सुविधाओं में कुछ सुधार हुआ. इसके बाद 1980 के दशक के अंत में झुग्गी विकास योजना (एसडीएश) आई. इस योजना ने कुछ उम्मीदें जगाईं, लेकिन बहुत कुछ नहीं बदला.

साल 1995 में महाराष्ट्र में शिवसेना-बीजेपी गठबंधन सत्ता में आया था. उससे पहले सुंदर कमला नगर ने मुंबई दंगों और 1993 के मुंबई बम विस्फोटों का सामना किया था. धारावी में बहुत हिंसा हुई थी, लेकिन एसकेएन में 60 फीसदी हिंदू और 40 फीसदी मुसलमानों की मिश्रित आबादी होने के बाद भी दंगों के दौरान और उसके बाद भी माहौल शांतिपूर्ण बना रहा.

शिवसेना-बीजेपी गठबंधन ने झुग्गी पुनर्विकास प्राधिकरण (एसआरए) के तहत झुग्गी पुनर्विकास योजना शुरू की. पहली बार,सुंदर कमला नगर के निवासियों ने पुनर्विकास का सपना देखना शुरू किया. लोगों ने करीब 160 वर्ग फीट के घरों की कल्पना की. लेकिन जमीन पर ज्यादा कुछ हुआ नहीं.

धारावी विकास परियोजना के मास्टर प्लान की हाल में हुई घोषणा के साथ सुंदर कमला नगर के निवासी अब अपने घरों के भविष्य को लेकर चिंतित और अनिश्चितता महसूस कर रहे हैं.

लेखक  के बारे में: नरेंद्र बंदबे एक पत्रकार और फिल्म समीक्षक हैं जिनके पास 20 से अधिक वर्षों का अनुभव है. वह गोल्डन ग्लोब अवार्ड्स के अंतरराष्ट्रीय मतदाता और फिप्रेस्की के सदस्य हैं. वे सिनेमा, कला और साहित्य विषय पर लिखते हैं.
 

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