सोनम वांगचुक की NSA हिरासत मामला: जानिए केंद्र सरकार ने किस बात का विरोध किया और क्यों

याचिका में वांगचुक की रिहाई मांगी गई है.प्रतिवादी के रूप में केंद्र सरकार, लद्दाख प्रशासन और जोधपुर केंद्रीय जेल के अधीक्षक को पक्षकार बनाया गया है.

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  • केंद्र सरकार ने वांगचुक को जोधपुर जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश करने के अनुरोध का कड़ा विरोध किया
  • याचिका में वांगचुक की रिहाई और हिरासत की वैधता को चुनौती देने के लिए दस्तावेज़ उपलब्ध कराने की मांग की गई है
  • लेह जिला मजिस्ट्रेट और जोधपुर जेल अधीक्षक ने हिरासत को वैध बताते हुए समय पर आधार उपलब्ध कराने की पुष्टि की
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लद्दाख के सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत की गई हिरासत को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टल गई. इसी दौरान, केंद्र सरकार ने वांगचुक को जोधपुर जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अदालत में पेश करने के अनुरोध का विरोध किया.  यह याचिका वांगचुक की पत्नी डॉ. गीतांजलि आंगमो ने दायर की है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि लद्दाख में राज्य का दर्जा मांगने के लिए हुए प्रदर्शनों के बाद (जो सितंबर में हिंसक हो गए थे) वांगचुक को ग़ैर-क़ानूनी तरीके से हिरासत में लिया गया. 

केंद्र सरकार ने क्यों किया विरोध

जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ आज विस्तृत सुनवाई नहीं कर सकी, क्योंकि दोनों पक्षों के वकील एक अन्य मामले में व्यस्त थे. वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल सुनवाई के दौरान डॉ. आंगमो की ओर से पेश हुए. सिब्बल ने कहा कि अदालत को वांगचुक की वीडियो लिंक उपस्थिति का आदेश पारित कर देना चाहिए, लेकिन सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस अनुरोध का कड़ा विरोध किया. 

मेहता ने कहा कि इसका हम विरोध करेंगे, क्योंकि अगर यह अनुमति दी गई, तो हमें देशभर में सभी कैदियों के लिए यही सुविधा देनी पड़ेगी. जहां-जहां लाइव-स्ट्रीमिंग है, वहां हर आरोपी और दोषी को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से जोड़ने की मांग उठेगी. 

याचिका में क्या है मांग

याचिका में वांगचुक की रिहाई मांगी गई है.प्रतिवादी के रूप में केंद्र सरकार, लद्दाख प्रशासन और जोधपुर केंद्रीय जेल के अधीक्षक को पक्षकार बनाया गया है. 6 अक्टूबर को नोटिस जारी करते समय सिब्बल ने कहा था कि हिरासत के आधार उन्हें उपलब्ध नहीं कराए गए. इसी पर SG मेहता ने कहा था कि कानून में पत्नी को आधार उपलब्ध कराने की बाध्यता नहीं है. सिब्बल ने स्पष्ट किया था कि वह इस मुद्दे पर अपनी चुनौती आधारित नहीं कर रहे, बल्कि हिरासत की वैधता को चुनौती देने के लिए दस्तावेज़ चाहते हैं. 

बाद में लेह के जिला मजिस्ट्रेट ने हलफ़नामा दायर कर हिरासत को वैध बताया और कहा कि वांगचुक को समय पर आधार उपलब्ध करा दिए गए हैं तथा उन्होंने अब तक कोई प्रतिनिधित्व भी नहीं दिया है. एक अलग हलफ़नामे में जोधपुर जेल अधीक्षक ने कहा कि वांगचुक की पत्नी, भाई और वकीलों को उनसे मिलने की अनुमति दी गई.अतिरिक्त आधारों में डॉ. आंगमो ने कहा कि हिरासत आदेश क़ानून के लिहाज से टिकाऊ नहीं है, क्योंकि यह ग़ैर-प्रासंगिक तथ्यों, पुराने मुकदमों, अप्रासंगिक सामग्री, आत्म-प्रशंसात्मक बयानों और कई महत्वपूर्ण तथ्यों को दबाने पर आधारित है. उन्होंने यह भी कहा कि वांगचुक को अधूरे दस्तावेज़ दिए गए और वह भी 29 सितंबर को “ग़ैर-क़ानूनी हिरासत” के तीन दिन बाद.

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