'...तो ये मान लिया जाता है न्याय नहीं होगा', जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस मामले में लगाई फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने देखा है कि आजकल वकीलों के बीच हाईकोर्ट और निचली अदालतों के जजों की आलोचना करना एक चलन बन गया है. यह एक चलन बन गया है कि जब मामला किसी राजनीतिक व्यक्ति से जुड़ा होता है तो यह मान लिया जाता है कि हाईकोर्ट में न्याय नहीं हो सकता.

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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस प्रवृत्ति की आलोचना की कि जब किसी राजनीतिक व्यक्ति से जुड़े मामले की सुनवाई हाईकोर्ट में होती है तो यह मान लिया जाता है कि न्याय नहीं होगा. अदालत एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रही थी जिसमें उसने हाल ही में एक वादी पेड्डी राजू और उनके वकीलों को नोटिस जारी किया था और उनसे यह बताने को कहा था कि तेलंगाना हाईकोर्ट की जज जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य के खिलाफ कथित रूप से अपमानजनक आरोप लगाने के लिए उनके खिलाफ अदालती अवमानना का मुकदमा क्यों न चलाया जाए.

ये आरोप उस याचिका में लगाए गए थे, जिसमें तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी को राहत मिली थी और इसे तेलंगाना हाईकोर्ट  के अलावा किसी अन्य अदालत में ट्रांसफर करने का अनुरोध किया गया था. हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC /ST  अधिनियम) के तहत उनके खिलाफ दर्ज कुछ आपराधिक आरोपों को रद्द कर दिया था.

सोमवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई, जस्टिस विनोद चंद्रन और जस्टिस अतुल एस चंदुरकर की पीठ ने राजू और उनके वकीलों से जस्टिस भट्टाचार्य के समक्ष माफी मांगने को कहा. पीठ ने आगे कहा कि यह हाईकोर्ट भट्टाचार्य पर निर्भर करेगा कि वे माफी स्वीकार करें या नहीं, हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि 
हाल ही में इस अदालत की तीन जजों की पीठ, जिसमें हम दोनों शामिल थे, ने इस न्यायालय के दो  जजों के संबंध में मतभेद के संदर्भ में निर्णय देते हुए यह माना कि ऐसे मामलों में दंड देने के बजाय क्षमा करना ही समझदारी है और वकील की माफ़ी स्वीकार कर ली गई.

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 शीर्ष न्यायालय ने यह भी कहा कि याचिका में इस तरह के आरोप अदालत की अवमानना के समान हैं. हमने देखा है कि आजकल वकीलों के बीच हाईकोर्ट और निचली अदालतों के जजों की आलोचना करना एक चलन बन गया है. यह एक चलन बन गया है कि जब मामला किसी राजनीतिक व्यक्ति से जुड़ा होता है तो यह मान लिया जाता है कि हाईकोर्ट में न्याय नहीं हो सकता. अदालत ने आगे टिप्पणी की कि संवैधानिक प्राधिकारी के रूप में हाईकोर्ट के जजों को भी सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के समान छूट प्राप्त है.

CJI  की अगुवाई वाली पीठ ने जोर देकर कहा कि संवैधानिक योजना के तहत उन्हें सुप्रीम कोर्ट के समान सम्मान प्राप्त है. सुप्रीम कोर्ट का हाईकोर्ट या हाईकोर्ट के जजों पर कोई प्रशासनिक नियंत्रण नहीं है. जब हाई कोर्ट के जजों के खिलाफ ऐसे आरोप लगाए जाते हैं तो उन्हें संरक्षण देना इस अदालत का कर्तव्य है.
 

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