बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा द्वारा 'स्किन-टू-स्किन' फैसले (Skin To Skin Judgment) के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने महाराष्ट्र सरकार और राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की अपील पर भी नोटिस जारी किया है. SC ने कहा कि ये आपराधिक मामला है और आरोपी के जमानत पर बाहर आने पर पहले ही रोक लगा दी गई है. प्रधान न्यायाधीश (CJI) एसए बोबडे ने कहा कि स्त्री शक्ति की याचिका का कोई मतलब नहीं है जब सरकार गौर कर रही है. राष्ट्रीय महिला आयोग की वकील गीता लूथरा ने भी याचिका पर विचार की मांग की. CJI ने कहा यह आपराधिक मामला है, लेकिन हम आपकी याचिका पर नोटिस जारी कर रहे हैं.वकील गीता लूथरा ने कहा कि महिलाओं को प्रभावित करने के मामले कानूनों पर पुनर्विचार होना चाहिए क्योंकि ये खतरनाक है.
नदी के तल से पत्थरों को हटाने की प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता
अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि आरोपी जेल में ही है. इस मामले में अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल, राष्ट्रीय महिला आयोग, यूथ बार एसोसिएशन और स्त्री शक्ति संगठन आदि ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर फैसले को रद्द करने की मांग की है. हालांकि बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा द्वारा 'स्किन-टू-स्किन' फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने 27 जनवरी को रोक लगा दी थी. पोक्सो के एक मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट से बरी किए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में CJI ने कहा था कि हाईकोर्ट से विस्तृत जानकारी तलब करेंगे. बता दें कि अटॉर्नी जनरल ने अदालत में इस मामले को उठाया था. इस फैसले में आरोपी को हाईकोर्ट ने बरी कर दिया था, जो पॉक्सो के तहत आरोपी था, सिर्फ इस आधार पर, उसका बच्चे के साथा सीधा शारीरिक संपर्क नहीं हुआ है. इस पर अटॉर्नी जनरल ने सवाल उठाते हुए इसे खतरनाक बताया था. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगाते हुए आरोपी को बरी करने पर भी रोक लगा दी है.
INS विराट को डिस्मैन्टल करने पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, खरीदार को भी भेजा नोटिस
बता दें हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा है कि किसी नाबालिग की ब्रेस्ट को बिना 'स्किन टू स्किन' कॉन्टैक्ट के छूना POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) एक्ट के तहत यौन शोषण की श्रेणी में नहीं आएगा. हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जज पुष्पा गनेडीवाला ने अपने 19 जनवरी को पास किए गए आदेश में कहा है कि किसी भी छेड़छाड़ की घटना को यौन शोषण की श्रेणी में रखने के लिए घटना में 'यौन इरादे से किया गया स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट' होना चाहिए. उन्होंने कहा है कि नाबालिग को ग्रोप करना यानी टटोलना, यौन शोषण की श्रेणी में नहीं आएगा. बता दें कि एक सेशन कोर्ट ने एक 39 साल के शख्स को 12 साल की बच्ची का यौन शोषण करने के अपराध में तीन साल की सजा सुनाई थी, जिसे गनेडीवाला ने संशोधित किया.
गौरतलब है कि पोक्सो (POCSO) को लेकर दो फैसलों से विवादों में आईं बॉम्बे हाईकोर्ट की जज जस्टिस पुष्पा गनेदीवाला को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) कॉलेजियम ने फैसला किया है. कोलेजियम ने जस्टिस पुष्पा गनेदीवाला की परमानेंट जज के रूप में पुष्टि को होल्ड पर रखा है. कॉलेजियम ने 20 जनवरी को स्थायी न्यायाधीश के रूप में उनकी पुष्टि की सिफारिश की थी लेकिन बच्चों के साथ यौन शोषण के दो मामलों में विवादास्पद निर्णयों के बाद, एससी कोलेजियम ने अपनी सिफारिश को वापस लेते हुए अपने फैसले को पलट दिया है.