'हमेशा के लिए भूतपूर्व हो जाएंगे...', महाराष्ट्र में जारी सियासी संकट के बीच बागी विधायकों को शिवसेना की चेतावनी

Maharashtra Crisis: पार्टी मुखपत्र में कहा गया, " शिवसेना ने ऐसे कई प्रसंगों को पचाया है. ऐसे संकटों के सीने पर पांव रखकर शिवसेना खड़ी रही. जय-पराजय पचाया. सत्ता आई या गई, शिवसेना जैसे संगठन को फर्क नहीं पड़ता है."

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Maharashtra Crisis: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (फाइल फोटो)
मुंबई:

महाराष्ट्र कैबिनेट मंत्री व शिवसेना नेता एकनाथ के पार्टी से बगावत के बाद राज्य की राजनीति अस्थिर हो गई है. महाविकास अघाड़ी सरकार के गिरने की स्थिति बन गई है. गठबंधन में शामिल तीनों पार्टियां सरकार को किसी भी तरह बचा लेने की कवायद में लगी हुई है. इसी के तहत बुधवार की शाम सीएम उद्धव ठाकरे फेसबुक लाइव आए. सारे पद छोड़ने की पेशकश की और फिर देर शाम सीएम आवास 'वर्षा' छोड़कर पारिवारित आवास मातोश्री चले गए. इधर, इन्ही सियासी गतिविधियों के बीच पार्टी की ओर से बागी नेताओं को चेतावनी दी गई है कि वो समय रहते संभल जाएं और बीजेपी की चालों में ना फंस कर समझदारी का पहचान दें. 

विधायकों की इतनी भागदौड़ क्यों चल रही?

पार्टी मुखपत्र सामना में कहा गया है, " महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रमों का अंत क्या होगा ये कोई भी नहीं कह सकता है. उस पर से हमारे राज्यपाल कोरोना से ग्रस्त हो गए हैं. इसलिए राज्य के विपक्षियों का राजभवन में आना-जाना भी थोड़ा थम गया है. राजनीति में सब कुछ अस्थिर होता है और बहुमत उससे भी चंचल होता है. शिवसेना की टिकट और पैसों पर, निर्वाचित हुए मेहनतवीर विधायक बीजेपी की गिरफ्त में हैं. वे पहले सूरत और बाद में विशेष विमान से आसाम चले गए. इन विधायकों की इतनी भागदौड़ क्यों चल रही है? शिवसेना के अंतर्गत जो घटनाक्रम चल रहे हैं उससे हमारा संबंध नहीं, ऐसा मजाक बीजेपी को तो नहीं करना चाहिए."

पार्टी मुखपत्र में कहा गया है, " सूरत के जिस होटल में ये ‘महामंडल' था, वहां महाराष्ट्र बीजेपी के नेता उपस्थित थे. फिर सूरत से इन लोगों के आसाम जाते ही गुवाहाटी हवाई अड्डे पर आसाम के मंत्री स्वागत के लिए मौजूद रहते हैं. इसके पीछे का गूढ, दांव-पेंच न समझने जैसी राज्य की जनता मूर्ख नहीं है. होटल, हवाई जहाज, वाहन, घोड़े, विशेष सुरक्षा व्यवस्था बीजेपी सरकार की ही कृपा नहीं है क्या? हमें तो भारतीय जनता पार्टी के नैतिक अधिष्ठान की सराहना करने की इच्छा होती है."

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सत्ता स्थापना के लिए गुप्त बैठकें कर रही बीजेपी

बीजेपी पर निशाना साधते हुए सामना में कहा गया कि कल तक भ्रष्टाचार, आर्थिक कदाचार के आरोपों वाले शिवसेना विधायकों पर हमला करनेवाले, उन्हें ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स का डर दिखाकर ‘अब तुम्हारी जगह जेल में है' ऐसा बोलनेवाले किरीट सोमैया इसके बाद क्या करेंगे? ये सभी विधायक कल से बीजेपी के समूह में शामिल हो गए हैं और दिल्ली के राजनीतिक गागाभट्टों ने उन्हें पवित्र, शुद्ध कर लिया है. अब किरीट सोमैया को इन सभी शिवसेना विधायकों के चरणपूजन करने होंगे, ऐसा नजर आ रहा है. अकोला के विधायक नितीन देशमुख सूरत से मुंबई लौट आए और उन्होंने जो हुआ, इस बारे में सनसनीखेज सच्चाई बताई. भारतीय जनता पार्टी ने महाराष्ट्र में सत्ता स्थापना के लिए गुप्त बैठकें शुरू की हैं." 

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पार्टी मुखपत्र में कहा गया ," मुंबई के ‘सागर' बंगले में उत्साह की लहर उफान मार रही है. उस लहर की झाग कई लोगों की नाक और मुंह में गई, परंतु बीजेपी किसके बल पर सरकार स्थापना करना चाहती है. नगरविकास मंत्री शिंदे व उनके साथ मौजूद विधायकों को पहले मुंबई आना होगा. विश्वासमत प्रस्ताव के समय महाराष्ट्र की जनता की नजर से नजर मिलाकर विधानभवन की सीढ़ी चढ़नी पड़ती है. शिवसेना द्वारा उम्मीदवारी देकर मेहनत से जीतकर लाए व अब शिवसेना से बेईमानी कर रहे हो? इन सवालों के जवाब देने पड़ेंगे. विधिमंडल में जो होना है वो होगा, परंतु मुख्यमंत्री के रूप में उद्धव ठाकरे की लोकप्रियता शिखर पर है." 

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तूफान खत्म होगा और आकाश साफ होगा

सामना में कहा गया, " शिवसेना का संगठन मजबूत है इसलिए ‘अलग समूह' बनाकर आसाम में गए लोगों को विधायक, माननीय बनने का मौका मिला. ये सभी विधायक एक बार फिर चुनाव का सामना करते हैं तो जनता उन्हें पराजित किए बगैर नहीं रहेगी. इसका भान इन लोगों को नहीं होगा. इसलिए ये शिवसेना के विधायक व माननीय पुन: अपने घर लौट आएंगे. प्रवाह में शामिल होंगे. आज जो बीजेपी वाले उन्हें हाथों की हथेली पर आए जख्म की तरह संभाल रहे हैं, वे आवश्यकता समाप्त होते ही पुन: कचरे में फेंक देंगे. बीजेपी की परंपरा यही रही है. इसलिए कोई कितना भी जोर लगा रहा होगा फिर भी तूफान खत्म होगा और आकाश साफ होगा. " 

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पार्टी मुखपत्र में कहा गया, " शिवसेना ने ऐसे कई प्रसंगों को पचाया है. ऐसे संकटों के सीने पर पांव रखकर शिवसेना खड़ी रही. जय-पराजय पचाया. सत्ता आई या गई, शिवसेना जैसे संगठन को फर्क नहीं पड़ता है. फर्क पड़ता है तो भाजपा के प्रलोभन और दबाव के शिकार हुए विधायकों को. शिवसैनिकों ने तय किया तो सभी लोग हमेशा के लिए ‘भूतपूर्व' हो जाएंगे. इसके पहले की बगावतों का इतिहास यही कहता है. समय रहते सावधान हो जाओ, समझदार बनो." 

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