Exclusive : “एक इंडस्ट्रियल ग्रुप को टारगेट किया गया”- अदाणी ग्रुप पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट को लेकर NCP प्रमुख शरद पवार

शरद पवार ने हिंडनबर्ग मामले में कहा, "विपक्ष ने एक फर्म की रिपोर्ट को जरूरत से ज्यादा महत्व दिया. इस फर्म का बैकग्राउंड किसी को नहीं पता. इसका नाम भी नहीं सुना है."

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शरद पवार ने कहा, हिंडनबर्ग मामले में JPC की आवश्यकता ही नहीं है, उसका कोई महत्त्व नहीं होगा.

नई दिल्ली:

भारत की राजनीति के दिग्गज राजनेता शरद पवार का मानना है कि अदाणी समूह के खिलाफ अमेरिकी शॉर्टसेलर हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद उपजे विवाद की संसद की संयुक्त संसदीय समिति (JPC) से जांच की मांग व्यर्थ है, और इससे मामला कतई नहीं सुलझ सकता. NDTV से खास बातचीत में शरद पवार ने कहा कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को आवश्यकता से अधिक महत्व दिया गया, और इस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट कमेटी से ही करवाई जानी चाहिए.

कांग्रेस की हिंडनबर्ग रिपोर्ट की जेपीसी जांच की एकतरफा मांग पर शरद पवार ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह अपने महाराष्ट्र सहयोगी के विचारों से सहमत नहीं हैं. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के प्रमुख और देश के सबसे बड़े राजनेताओं में से एक, शरद पवार ने भी अदाणी ग्रुप का मजबूती दृढ़ता से समर्थन किया. इसके साथ ही उन्होंने Hindenburg रिपोर्ट से बनाए गए नैरटिव की आलोचना की. 

पूर्व केंद्रीय मंत्री तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के मुखिया शरद पवार ने NDTV के एडिटर-इन-चीफ संजय पुगलिया के साथ खास बातचीत में यह भी कहा कि किसी भी मुद्दे पर चर्चा होना बेहद ज़रूरी होता है, और विचार-विमर्श को नज़रअंदाज़ करने से समूचे सिस्टम को नुकसान होगा. अदाणी-हिंडनबर्ग विवाद में उनका कहना था, "विपक्ष द्वारा हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को ज़रूरत से ज़्यादा अहमियत दी गई, जबकि इस फर्म का बैकग्राउंड किसी को भी नहीं पता. हमने तो इनका नाम भी नहीं सुना."

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शरद पवार ने कहा, "ऐसा लगता है, इस मामले में एक इंडस्ट्रियल ग्रुप को टारगेट किया गया. लेकिन JPC अप्वाइंट करने से मामला नहीं सुलझेगा, बल्कि सुप्रीम कोर्ट की कमेटी से ही सच्चाई देश के सामने आएगी. इस मामले में JPC की आवश्यकता ही नहीं है, उसका कोई महत्त्व नहीं होगा."

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उन्होंने कहा, "मेरा मानना अलग है. कई मामलों पर JPC अप्वाइंट हुई थी. एक बार कोका कोला के मामले पर JPC अप्वाइंट हुई थी, जिसका चेयरमैन मैं था. तो JPC इससे पहले कभी नहीं हुई, ऐसी बात नहीं है. JPC की डिमांड गलत नहीं होती, लेकिन JPC की डिमांड क्यों की गई.? JPC की डिमांड इसलिए की, क्योंकि किसी Industrial Organization की जांच होने की आवश्यकता है."

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JPC को इस मामले में उचित नहीं करार देते हुए शरद पवार ने कहा, "जांच करने के लिए डिमांड होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पहल कर रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जजों, एक्सपर्ट प्रशासकों, एक्सपर्ट इकोनॉमिस्ट की टीम को गाइडलाइन भेजी, समय दिया और जांच करने के लिए कहा. दूसरी तरफ विपक्ष की मांग थी कि संसद की समिति नियुक्त की जाए. अगर संसदीय समिति नियुक्त की जाती है, तो संसद में तो सत्तारूढ़ दल का ही बहुमत है. मांग भी सत्तापक्ष के ख़िलाफ़ थी, सो, जब सत्तारूढ़ दल के ख़िलाफ़ मांग होने पर उसकी जांच करने के लिए अगर सत्तारूढ़ दल के लोग ही रहेंगे, तो सच्चाई कहां तक सामने आएगी, इस बारे में आशंका पैदा हो सकती है. इससे तो सुप्रीम कोर्ट, जिसमें किसी का प्रभाव नहीं, वह जांच करती, तो शायद ज़्यादा सच्चाई देश के सामने आती. इसलिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा जांच का ऐलान करने के बाद JPC का महत्त्व रहा नहीं. इसकी आवश्यकता नहीं रही."

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उन्होंने अदाणी समूह की तुलना परोक्ष रूप से टाटा-बिरला से करते हुए कहा, "जब हम राजनीति में आए थे, तब सरकार पर हमला करने के लिए टाटा-बिरला पर हमले किया करते थे. बाद में पता चला कि टाटा का इस देश में कितना योगदान है. आजकल टाटा-बिरला के जगह अदाणी-अंबानी पर हमला किया जा रहा है, जबकि बिजली क्षेत्र में अदाणी का अहम योगदान है."

शरद पवार ने कहा, "ऐसा लगता है, देश के Individual Industrial Group पर हमला किया गया. अगर उन्होंने कुछ गलत किया होगा, तो इंक्वायरी करो. यह Anti-Business बात हुई. ऐसा देश में कई सालों से हो रहा है. मुझे याद है, कई साल पहले जब हम राजनीति में आए थे, तब सरकार के खिलाफ बात करनी होती थी, तो हम टाटा-बिरला के खिलाफ बात किया करते थे. टारगेट कौन था? टाटा-बिरला. जब समझदारी आ गई हम लोगों को, तो फिर टाटा का क्या योगदान है, यह जानने के बाद हम क्यों टाटा-बिरला किया करते थे, यह समझा नहीं. किसी को टारगेट करना चाहिए, इसलिए टाटा-बिरला को टारगेट करते थे. आज टाटा-बिरला का नाम सामने नहीं आ रहा, क्योंकि लोगों के सामने दूसरे टाटा-बिरला आ गए, और इसलिए अगर आजकल सरकार के खिलाफ हमला करना होता है, तो अदाणी-अंबानी का नाम सामने आता है. सवाल यह है कि आप जिन पर हमला कर रहे हैं, अगर उन्होंने अधिकारों का दुरुपयोग कर कोई गलत काम किया, तो लोकतंत्र में उनके ख़िलाफ़ बोलने का अधिकार आपको ज़रूर है, लेकिन किसी सबूत के बिना हमला करना मैं नहीं समझ सकता."

उनका कहना था, "आज पेट्रोकेमिकल सेक्टर में अंबानी का योगदान है. आज देश को उनकी आवश्यकता है या नहीं.? बिजली के क्षेत्र में अदाणी का योगदान है, आज बिजली की आवश्यकता देश में है या नहीं.?"

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री ने चर्चा को भी बेहद अहम बताया. उन्होंने कहा, "विपक्ष विरोध कर सकता है, संस्थाओं के बारे में सख्ती से बोल सकता है, लेकिन चर्चा होना ज़रूरी है. चर्चा और डायलॉग लोकतंत्र में ज़रूरी है, जिसे नजरअंदाज़ करना सिस्टम के लिए हानिकारक है. जो डायलॉग होना चाहिए, वह आजकल नहीं हो रहा है."

उन्होंने कहा, "संसद में गतिरोध को लेकर मुझे लगता है, जो कुछ हो रहा है, वह ठीक नहीं है, लेकिन हम यह भी नजरअंदाज़ नहीं कर सकते कि इससे पहले भी यह हुआ था. डॉक्टर मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे, मैं खुद उनकी सरकार में था. तब 2G मुद्दे पर कई दिन पूरा सेशन बाधित हुआ था और जब यह हुआ, तब जिम्मेदार लोग एक साथ बैठे थे, हमने यह चर्चा की थी कि चाहे जो भी हो, मतभेद हों, आरोप हो सकते हैं, लेकिन फोरम लोगों की समस्याएं रखने के लिए महत्त्वपूर्ण है. मुझे याद है, गुलाम नबी आज़ाद पार्लियामेंट अफेयर मिनिस्टर थे, विपक्ष तगड़ा था, कई मामलों पर विपक्ष सदन का कारोबार नहीं चलने देता था, लेकिन गुलाम नबी विपक्षी नेताओं के साथ बैठकर कुछ न कुछ रास्ता निकालने की कोशिश करते थे और हाउस चलता था."

धारावी के रिडेवलेपमेंट से जुड़े सवाल पर शरद पवार ने कहा, "धारावी हो, मोतीलाल नगर हो, वहां रिडेवलेपमेंट करके एक तो वहां रहने वाले लोगों को अच्छा मकान मिलेगा. मुंबई का जो चेहरा अलग दिखाई देता है, उसमें सुधार होगा. धारावी में छोटे-मोटे उद्योग बहुत हैं, लोग वहां पर अलग-अलग तरह के बिज़नेस करते हैं, इंडस्ट्री चलाते हैं, कारोबार करते हैं. उन लोगों को एक अच्छा इंफ़्रास्ट्रक्चर मिलेगा, सुविधा मिलेगी, उनकी प्रोडक्टिविटी बढ़ेगी, तो शहर के लिए इस क्षेत्र के लिए फ़ायदे की बात है. आज जो धारावी के बारे में, हमारे मन में हमेशा एक बात आती है कि प्लेन बॉम्बे में लैंड होते समय धारावी के स्लम दिखाई देते हैं. ये दूर करने के लिए वहां रिडेवलेपमेंट कई सालों से चालू है, तो मुझे लगता है ये अच्छी बात है."

विपक्ष को एक मकसद के साथ साथ आना होगा

विपक्षी एकता की ज़रूरत है. मगर इश्यूज़ के बारे में क्लियरिटी होनी चाहिए. आज क्या हो रहा है, देश का जो विपक्ष है, उसमें अलग एलग इश्यूज़ हैं. हमारे जैसे लोगों को हम विपक्षी एकता चाहते हैं, मगर हमारा ज़ोर विकास पर है. विपक्षा एकता में हमारे दूसरे भी साथी हैं, और भी चाहते हैं कि विपक्षा एकता हो. मगर उनके मन में एक लेफ़्टिस्ट थिंकिंग कई सालों से रहा है. इससे वो दूर जाने के लिए तैयार नहीं हैं. विपक्षी एकता विद स्पेसिफ़िक प्रोग्राम, स्पेसिफ़िक डायरेक्शन, ये होगी तो कामयाब होगी. यदि स्पेसिफिक प्रोग्राम और डायरेक्शन नहीं होगा तो विपक्षी एकता देश के लिए लाभदायक नहीं होगी. 


कांग्रेस को नजरअंदाज नहीं कर सकते

शरद पवार ने कहा कि नहीं ये बात सच है कि पुरानी कांग्रेस पार्टी और आज की कांग्रेस पार्टी में फ़र्क है. मगर साथ साथ कांग्रेस को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते. देश के कई राज्यों में आज भी कांग्रेस है, चाहें, 4 हो 5 हो 6 हो कुछ न कुछ राज्यों में. मगर ये सभी पार्टी नॉन कांग्रेसी, नॉन बीजेपी इनमें से नॉन कांग्रेस लोगों को खाली एक करना चाहिए. ऐसी बात हमारे कुछ साथी करते हैं. मुझे लगता है, इससे ज़्यादा ज़रूरी है कि विपक्षी एकता क्यों है, क्या प्रोग्राम लेंगे, किस रास्ते से जाना है, इसमें क्लैरिटी हो, तो रास्ता निकल सकता है. देश के फ़ायदे की बात हो सकती है मगर अभी तक हम वहां नहीं पहुंचे. ये बात हमें स्वीकार करनी चाहिए.


देश के लिए साथ आए हैं

NCP प्रमुख ने कहा कि ऐसी बात है कि नागालैंड में हमारे 6-7 लोग चुनकर आ गए. नागालैंड मैंने एज़ ए डिफ़ेंस मिनिस्टर एज़ एन सेंट्रल मिनिस्टर वहां की स्थितियां हैंडल की थीं. सेंसेटिव है. वहां कुछ फ़ोर्सेज़ ऐंटी इंडियन है, एक ज़माने में लालडेंगा और कुछ लोग भारत के ख़िलाफ़ कुछ करते थे, जब कुछ ऐसी शक्तियां होती हैं. ऐसे छोटे राज्य में पॉलिटिकल इंटरेस्ट दूर रखकर नेशनल इंटरेस्ट को सामने रखकर कुछ कदम उठाने की ज़रूरत होती है. ये मणिपुर रहता था, मेघालय रहता था, या और कोई राज्य रहते थे, यहां कई फ़ोर्सेज़ ने एक अलगाववाद की भूमिका लेकर एक अलग रास्ता देश के सामने रखने की कोशिश की है और आज भी करते हैं. ऐसे समय मिलकर वहां मज़बूती की हुकूमत वहां देने की आवश्यकता है. कोई छोटे राज्य में इतना कोई देश के ऊपर असर होगा नहीं पॉलिटिकल, मगर ठीक तरह से यदि यहां ध्यान नहीं देंगे तो इसकी क़ीमत देश को और ख़ास तौर से नॉर्थ ईस्ट को चुकानी पड़ेगी.

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